एल्गार परिषद केस: गौतम नवलखा नज़रबंदी से रिहा हुए

एल्गार परिषद मामले में वर्ष 2020 में गिरफ़्तार किए गए मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा 2022 से अपने नवी मुंबई स्थित घर में नज़रबंद थे. पिछले साल 19 दिसंबर को बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें ज़मानत दे दी थी, लेकिन एनआईए के अनुरोध पर आदेश को तीन सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया था. बाद में, सुप्रीम कोर्ट ने इस अवधि को बढ़ा दिया था.

गौतम नवलखा. (फोटो साभार: स्पेशल अरेंजमेंट)

नई दिल्ली: नवी मुंबई के अपने घर में नज़रबंद किए गए मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को शनिवार (18 मई) की देर शाम करीब साढ़े आठ बजे हिरासत से रिहा कर दिया गया.

रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (14 मई) को एल्गार परिषद मामले में उन्हें जमानत दे दी थी.

इस केस में वरिष्ठ वकील नित्या रामकृष्णन नवलखा की पैरवी कर रही थीं, जबकि अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की ओर से पेश हुए थे.

मालूम हो कि पिछले साल 19 दिसंबर को बॉम्बे हाईकोर्ट ने नवलखा को ज़मानत दे दी थी, लेकिन एनआईए के अनुरोध पर अदालत ने अपने आदेश को तीन सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस अवधि को बढ़ा दिया था.

एल्गार परिषद मामले में गौतम नवलखा को 14 अप्रैल, 2020 को गिरफ्तार किया गया था. शुरुआती कई वर्षों तक जेल में रहने के बाद, नवलखा सुप्रीम कोर्ट के आदेशनुसार 19 नवंबर, 2022 से अपने नवी मुंबई के घर में नजरबंद थे.

गौरतलब है कि एल्गार परिषद मामले में 16 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिसमें मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, लेखक और शिक्षाविद शामिल थे. जांच एजेंसियों पर आरोपियों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में सबूत प्लांट करने के लिए हैकर्स का इस्तेमाल करने का आरोप भी लगा है.

किन लोगों को ज़मानत मिल गई है?

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी तेलुगु कवि वरवरा राव को फरवरी 2021 में चिकित्सा आधार पर छह महीने के लिए ज़मानत दे दी गई थी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि ज़मानत की अवधि बढ़ा दी गई थी, लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट ने अप्रैल 2022 में वरवरा राव की स्थायी ज़मानत याचिका खारिज कर दी थी. बाद में, अगस्त 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने राव को चिकित्सा आधार पर जमानत दे दी थी. अदालत का तर्क था कि वह पहले ही विचाराधीन कैदी के रूप में दो साल से अधिक समय जेल में बिता चुके थे.

इस साल अप्रैल में शोमा सेन को भी इस मामले में ज़मानत मिल गई थी. इससे पहले 2021 में नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और वकील सुधा भारद्वाज को ज़मानत मिली थी. 2022 में एक्टिविस्ट आनंद तेलतुंबडे को ज़मानत मिली थी.

2023 में वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा को भी ज़मानत मिल गई थी. बॉम्बे हाईकोर्ट ने मेरिट के आधार पर महेश राउत को भी ज़मानत दी थी, लेकिन अदालत ने अपने ही आदेश पर रोक लगा दी थी और सुप्रीम कोर्ट ने इसे बढ़ा दिया था.

कौन अभी भी जेल में हैं?

इस मामले से जुड़े जो लोग अभी भी जेल में हैं, उनमें पत्रकार-एक्टिविस्ट सुधीर धावले, एक्टिविस्ट रोना विल्सन, वकील सुरेंद्र गाडलिंग, दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू, सांस्कृतिक कलाकार और एक्टिविस्ट सागर गोरखे, रमेश गाइचोर और ज्योति जगताप शामिल हैं.

इस संबंध में विल्सन, गाडलिंग और धवले की अपीलें एक विशेष अदालत द्वारा खारिज होने के बाद फिलहाल हाईकोर्ट में लंबित हैं. वहीं, हनी बाबू की जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. जबकि 17 अक्टूबर 2023 को हाईकोर्ट ने ज्योति जगताप की जमानत याचिका खारिज कर दी थी.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले साल 21 सितंबर को एक्टिविस्ट महेश राउत को जमानत दे दी थी, लेकिन अभी तक उन्हें रिहा नहीं किया गया है.