उत्तर प्रदेश: भाजपा समर्थक रहा सैंथवार मल्ल समाज अपना रास्ता क्यों बदल रहा है?

उत्तर प्रदेश में राजनीतिक ताक़त हासिल करने के आकांक्षी जाति समूहों में अब एक नया नाम सैंथवार समुदाय का जुड़ गया है. सियासी भागीदारी को लेकर गोरखपुर मंडल में सक्रिय यह समुदाय भाजपा का समर्थक माना जाता था, लेकिन टिकट न मिलने पर अब असंतुष्ट है.

11 फरवरी 2024 को गोरखपुर में हुई सैंथवार मल्ल भागीदारी संकल्प महारैली. (सभी फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

गोरखपुर: उत्तर प्रदेश में जाति और जाति समूहों की राजनीतिक ताकत हासिल करने की आकांक्षा प्रबल होती जा रही है. विशेषकर ओबीसी में हाल के वर्षो में कई जातियों ने भागीदारी के सवाल को लेकर नए राजनीतिक दल बनाए हैं और कभी अलग चुनाव लड़कर तो कभी मुख्य राजनीतिक दलों से गठबंधन कर सरकार और राजनीति में अपनी भागीदारी बढ़ाई है.

अपना दल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, जन अधिकार पार्टी, जनवादी पार्टी सोशलिस्ट, निषाद पार्टी, अपना दल (कमेरावादी), राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी, महान दल आदि राजनीतिक दलों का बनना इसी राजनीतिक प्रक्रिया का हिस्सा है. कई ऐसे जातीय समूह हैं जो राजनीतिक दल तो नहीं बने लेकिन भागीदारी और पहचान को लेकर सियासत में सीधे अपनी दखल बढ़ा रहे हैं. इस सिलसिले में अब सैंथवार मल्ल महासभा ने इस लोकसभा चुनाव में गोरखपुर मंडल में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है.

सैंथवार मल्ल महासभा अभी राजनीतिक दल नहीं बना है लेकिन वह राजनीति से दूर नहीं है. इस संगठन ने लोकसभा चुनाव के ठीक पहले 11 फरवरी को गोरखपुर में चंपा देवी पार्क में बड़ी रैली कर कहा था कि मुख्य राजनीतिक दल सैंथवारों को राजनीतिक भागीदारी देने में कोताही न बरतें नहीं तो वह उनका विरोध करेगा. भाजपा और बसपा ने उनकी मांग को अनसुना किया लेकिन सपा ने कुशीनगर से इस बिरादरी के अजय सिंह उर्फ पिंटू सैंथवार को टिकट देकर अपने लिए इस बिरादरी में सहानुभूति पैदा कर ली है.

अब महासभा और सैंथवार बिरादरी के बड़े हिस्से में सपा के प्रति झुकाव देखा जा रहा है.

महासभा के अध्यक्ष गंगा सिंह सैंथवार 20 मई को संत कबीर नगर में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव के मंच पर दिखे. बस्ती मंडल की दो लोकसभा सीटों- बस्ती और संत कबीर नगर पर महासभा ने सपा का समर्थन भी कर दिया है.

कौन हैं सैंथवार 

सैंथवार बिरादरी के लोग उपनाम में सिंह, सैंथवार और मल्ल लिखते हैं और खुद को महात्मा बुद्ध का वंशज मानते हैं. इस बिरादरी के लोगों के पास ठीकठाक खेती बारी है और समुदाय के लोग सरकारी नौकरियों में भी हैं. सामाजिक, शैक्षणिक व आर्थिक स्थिति कमोबेश ठीक है. दो दशक पहले इस बिरादरी को कुर्मी जाति के साथ ओबीसी में शामिल किया गया. अब सैंथवार मल्ल समाज के कुछ नेताओं की मांग है कि सैंथवार को कुर्मी की उपजाति के रूप में नहीं बल्कि सह जाति के रूप में उन्हीं के नाम से ओबीसी का आरक्षण मिलना चाहिए.

सैंथवार मल्ल समाज की एक सामाजिक संस्था दीपदान महोत्सव आयोजन समिति का कहना है कि गौतम बुद्ध ने खुद को खत्तीय कहा है. शाक्य, कोलिय, मल्ल सैंथवार, मौर्या आदि खेतिहर समाज खत्तीय कहलाते हैं. संस्था इन सभी को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से एकजुट करने का प्रयास कर रही है.

सैंथवार मल्ल समाज की आबादी गोरखपुर, संतकबीरनगर, महराजगंज, कुशीनगर देवरिया जिले में सर्वाधिक है. इन जिलों की कई विधानसभा क्षेत्रों में सैंथवार जाति हार-जाति में निर्णायक भूमिका निभाती है.

भाजपा की तरफ रहा है झुकाव

सैंथवार मल्ल समाज राजनीति में सक्रिय रूप से भागीदारी करता रहा है और बड़ी संख्या में पंचायत प्रतिनिधि हैं. विधानसभा चुनाव में भाजपा से महराजगंज जिले में पनियरा और पिपराइच से इसी बिरादरी के नेता विधायक बने. सपा ने भी पनियरा और देवरिया में सैंथवार उम्मीदवारों को टिकट दिया था. बसपा भी विधानसभा में इस जाति के नेताओं को टिकट देती रही है.

सैंथवार समाज का झुकाव भाजपा के प्रति अधिक देखा गया है लेकिन इस चुनाव में माहौल एकदम बदला हुआ है. कुछ वर्षों से सैंथवार समाज को महसूस होने लगा था कि आबादी के हिसाब से उनके समाज को भाजपा भागीदारी नहीं दे रही है. विधानसभा में कुछ सीट दे देती है लेकिन लोकसभा में कोई तवज्जो नहीं जाती है. समुदाय के नेता ऐसा मान रहे हैं कि भाजपा को लगता है कि सैंथवार समाज उन्हें छोड़कर कहां जाएगा. यह भावना धीरे-धीरे बलवती होती गई और अब उसने अपनी मांगों के लिए आर-पार करने का निर्णय ले लिया है.

प्रतिनिधित्व की मांग

इसकी शुरुआत इस वर्ष फरवरी महीने की 11 तारीख को गोरखपुर में रामगढ़ ताल के किनारे चंपा देवी पार्क में सैंथवार मल्ल महासभा की एक बड़ी रैली से हुई. इस रैली को सैंथवार मल्ल भागीदारी संकल्प महारैली का नाम दिया गया था. रैली का खूब प्रचार किया गया. लखनऊ, गोरखपुर और गोरखपुर से देवरिया, सिद्धार्थनगर, महराजगंज, कुशीनगर को जाने वाले मुख्य मार्गों पर बड़े-बड़े होर्डिंग लगाए गए. इस रैली में सभी दलों के सैंथवार नेता शामिल हुए और अपने समाज की उपेक्षा पर असंतोष जताते हुए कहा कि अब यदि उनके समाज को प्रतिनिधित्व देने से इनकार किया गया तो वे उस दल को हराने-जिताने के बारे में स्पष्ट फैसला लेंगे.

इस रैली के बाद सैंथवार मल्ल महासभा के अध्यक्ष गंगा सिंह सैंथवार और महामंत्री जर्नादन सिंह फौजी ने एक अप्रैल को प्रेस क्लब गोरखपुर में पत्रकार वार्ता कर आठ लोकसभा क्षेत्रों में अपनी जाति की संख्या जारी करते हुए भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस से टिकट की मांग की.

महासभा के नेताओं ने कहा कि गोरखपुर (3.5 लाख), बांसगांव (3.5 लाख), महराजगंज ( 2.5 लाख), कुशीनगर ( 4.5 लाख), देवरिया (2.5 लाख), सलेमपुर (एक लाख), संतकबीर नगर (2.5 लाख), घोसी (एक लाख) सैंथवार मल्ल समाज की आबादी है. पत्रकार वार्ता में दोनों पदाधिकारियों ने कहा कि उनका समाज भाजपा को वोट देता रहा है, लेकिन भाजपा उनको लोकसभा चुनाव में भागीदारी नहीं दे रही है जिससे समाज के लोगों में असंतोष है.

बीते 20 मई को संतकबीर नगर ज़िले में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ सैंथवार मल्ल महासभा के अध्यक्ष गंगा सिंह सैंथवार.

लोकसभा चुनाव में जब भाजपा ने प्रत्याशियों की घोषणा की, तो इन आठ लोकसभा सीटों में से किसी भी सीट पर सैंथवार समाज को टिकट नहीं दिए बल्कि दो को छोड़ सभी पुराने प्रत्याशियों को टिकट दे दिया. बसपा ने भी सैंथवार समाज के किसी नेता को टिकट नहीं दिया. अलबत्ता ‘इंडिया’ गठबंधन की ओर से कुशीनगर लोकसभा क्षेत्र में सपा ने अजय सिंह उर्फ पिंटू सैंथवार को टिकट दे दिया.

ऐसा लगता है कि समाजवादी पार्टी ने सैंथवार समाज के असंतोष को भांप लिया था और पहले से यह नाम तय कर लिया था. सपा ने आखिरी समय में पिंटू सैंथवार के नाम की घोषणा की.

अजय सिंह उर्फ पिंटू सैंथवार देवरिया से भाजपा से दो बार विधायक रहे जनमेजय सिंह के बेटे हैं. जनमेजय सिंह 2012 और 2017 में भाजपा से देवरिया के विधायक रहे. इसके पहले वह 1996 व 2002 में बसपा के टिकट पर तथा 2007 में भाजपा के टिकट पर गौरीबाजार विधानसभा से चुनाव लड़े थे लेकिन हार का सामना करना पड़ा था. 2020 में उनका निधन हो गया था, जिसके बाद 2020 में हुए उपचुनाव में भाजपा ने अजय प्रताप सिंह को टिकट नहीं दिया.

सिंह नाराज होकर निर्दलीय चुनाव लड़ गए. उन्हें 19,282 वोट मिले और उन्हें हार का सामना करना पड़ा. दो वर्ष बाद 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा ने पिंटू सिंह को उम्मीदवार बनाया. इस बार उन्हें भाजपा के प्रत्याशी शलभ मणि त्रिपाठी से पराजित होना पड़ा. पिंटू सिंह को 66,046 वोट मिले.

सपा को समर्थन 

कुशीनगर से अपने समाज के नेता को टिकट मिलने से सैंथवार समाज प्रसन्न है. देवरिया के गौरीबाजार में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की सभा में जाने के बजाय एक दुकान पर सैंथवार बिरादरी के तीन व्यक्ति इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि उनके समर्थ से कहां-कहां जीत हो सकती है. तीनों इस बात पर सहमत थे कि उनकी बिरादरी कुशीनगर सीट पर पूरी तरह सपा के साथ है.

देवरिया सीट के बारे में उनका कहना था कि यहां बिरादरी के लोग असमंजस में दिख रहे हैं कि किसके साथ जाएं? भाजपा के साथ जाएं या कांग्रेस के साथ? एक व्यक्ति का कहना था कि बिरादरी के लोगों में अभी भी भाजपा के प्रति अच्छा-खासा रुझान है.

कुशीनगर के सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता राधेश्याम सिंह सैंथवार ने कहा कि सैंथवार समाज अपना पूरा समर्थन सपा प्रत्याशी को देता दिख रहा है.

अक्टूबर 2023 में सैंथवार मल्ल महासभा के अध्यक्ष बने गंगा सिंह सैंथवार 20 मई को संत कबीर नगर में पूर्व मंत्री अखिलेश सिंह के साथ मंच पर दिखें.

गंगा सिंह सैंथवार ने बताया, ‘हमारे समाज ने सभी राजनीतिक दलों से कहा था कि हमें एक टिकट दे दो लेकिन सपा को छोड़ किसी ने भी हमारी नहीं सुनी. इससे हमारे समाज के लोग सपा से प्रभावित हैं. हम राजनीतिक दल नहीं है लेकिन हमने बस्ती और संतकबीरनगर में सपा प्रत्याशी को समर्थन दिया है. गोरखपुर संसदीय क्षेत्र के बारे में भी हम जल्द निर्णय करेंगे. देवरिया और घोसी में हमारे समाज के दो नेता निर्दल प्रत्याशी के रूप में लड़ रहे हैं. हम उनका समर्थन कर रहे हैं.’

उन्होंने भाजपा में सैंथवार समाज की उपेक्षा का सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर क्या कारण है कि केंद्र और यूपी की सरकार में हमारे समाज का कोई मंत्री नहीं हैं. पनियरा से पांच बार के विधायक ज्ञानेन्द्र सिंह को मंत्री बनाया जा सकता था लेकिन उन्हें नहीं बनाया गया. ‘मैं खुद 2012 और 2017 में खलीलाबाद से टिकट का दावेदार था लेकिन मुझे टिकट नहीं दिया गया. मुझे 2017 में निर्दल चुनाव लड़ना पड़ा,’ उन्होंने जोड़ा.

सैंथवार समाज में मौजूदा असंतोष की व्याख्या करते हुए मेरठ में एक कॉलेज के शिक्षक हितेश सिंह सैंथवार कहते हैं कि अपनी समानांतर जातियों के मुकाबले सैंथवार समाज राजनीतिक भागीदारी में बेहद कमजोर है. उसमें अपनी राजनीतिक पहचान बनाने की तड़प दिख रही है. इस चुनाव में वह गतिमान वोटर के रूप में दिखाई दे रहा है.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)