नई दिल्ली: भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में मोदी की एक गारंटी कहती है कि ‘हमने सरकारी भर्ती परीक्षाओं में अनियमितता को रोकने के लिए सख्त कानून बनाया है. अब, हम इस कानून को सख्ती से लागू करके युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वालों को कड़ी सजा देंगे.’ इससे ठीक पहले, फरवरी 2024 में केंद्र सरकार ने ‘सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक, 2024’ पास किया था.
यह कानून युवाओं के साथ देश भर में हो रहे फ़रेब का आईना है. पेपर लीक के कारण परीक्षा ही निरस्त नहीं होतीं, बेशुमार उम्मीदवारों की उम्मीदें भी टूट जाती हैं. इंडियन एक्सप्रेस की हालिया रिपोर्ट कहती है कि पिछले पांच वर्षों में पेपर लीक के कारण 15 राज्यों में 41 भर्ती परीक्षाएं रद्द हुईं, जिससे 1.4 करोड़ आवेदकों को गहरा झटका लगा.
उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे हिंदी-भाषी राज्यों में यह घटनाएं जन-स्मृति का हिस्सा बनी हुई हैं, लेकिन भाजपा के ‘मॉडल’ राज्य गुजरात में स्थिति उतनी ही बदतर है. द वायर की यह सीरीज सरकारी भर्तियों में हो रहे घोटालों पर केंद्रित है. पहली कड़ी गुजरात से.
11 पुलिस केस, 201 आरोपी, चयन बोर्ड अध्यक्ष का इस्तीफ़ा
भाजपा-शासित गुजरात ने फरवरी 2023 में सरकारी भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक के लिए एक विधेयक पारित किया था. यह कानून पेपर लीक के ‘संगठित अपराध’ के लिए अधिकतम 10 साल की कैद और कम से कम 1 करोड़ रुपये जुर्माने का प्रावधान करता है. सदन में विधेयक पेश करते हुए गृह राज्य मंत्री हर्ष सांघवी ने स्वीकार किया था कि राज्य में पिछले 11 वर्षों में पेपर लीक के 11 प्रकरण हुए हैं. इसके परिणामस्वरूप 201 आरोपियों के खिलाफ 11 मामले दर्ज हुए और 10 मामलों में आरोप पत्र दाखिल किया गया.
सांघवी ने यह नहीं बताया कि गुजरात में पेपर लीक की जड़ें बहुत गहरी हैं और भाजपा शासन से जुड़ी हैं. ये कड़ियां दो प्रमुख जगहों पर आकर मिलती हैं- गुजरात अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (जीएसएसएसबी), वह संस्था जो तमाम सरकारी भर्तियों के इम्तिहान करवाती है, और अहमदाबाद की सूर्या ऑफसेट प्रिंटिंग प्रेस जहां से कई पेपर लीक होने का आरोप हैं.
2021 का हेड क्लर्क पेपर लीक प्रकरण पिछले दशक में गुजरात का सबसे कुख्यात भर्ती घोटाला है. इसने सत्ता को हिला दिया और जीएसएसएसबी के तत्कालीन अध्यक्ष और भाजपा नेता असित वोरा को राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन के बाद इस्तीफ़ा देने पर बाध्य कर दिया था.
क्या था मामला?
साल 2021 में गुजरात अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (जीएसएसएसबी) ने हेड क्लर्क की 186 सीटों पर भर्ती निकाली थीं. 12 दिसंबर, 2021 को राज्य के लगभग 700 केंद्रों पर परीक्षा आयोजित की गई, जिसमें 88,000 उम्मीदवारों ने भाग लिया था. जब पता चला कि परीक्षा से पहले ही प्रश्नपत्र 10-15 लाख रुपये में लीक कर दिए गए थे, परीक्षा रद्द कर दी गई.
पुलिस के मुताबिक, यह पेपर अहमदाबाद की सूर्या ऑफसेट प्रिंटिंग प्रेस से लीक हुआ था, जिसके साथ जीएसएसएसबी ने प्रश्न-पत्र प्रकाशित करने के लिए अनुबंध किया था.
इस मामले में गुजरात पुलिस ने 30 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया था और नौ मार्च, 2022 को 14,000 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की थी. पुलिस ने प्रिंटिंग प्रेस के सुपरवाइजर किशोर आचार्य को मुख्य आरोपी बनाया था, जिसने पुलिस के मुताबिक पेपर लीक को अंजाम दिया था. इस मामले में प्रिंटिंग प्रेस के मालिक मुद्रेश पुरोहित से भी पूछताछ हुई थी, लेकिन उन्हें दिसंबर 2021 में अग्रिम जमानत मिल गई थी.
इस लीक के खिलाफ शुरू हुए राज्यव्यापी आंदोलन के दौरान अभ्यर्थी पूछ रहे थे कि सूर्या प्रिंटिंग प्रेस की किले जैसी इमारत से परीक्षा-पत्र कैसे बाहर आ सकते हैं?
यह मामला अब भी कोर्ट में चल रहा है.
पहले भी आया था सूर्या प्रेस का नाम
पेपर लीक के मामलों से सूर्या प्रेस का नाम पहले भी जुड़ चुका है. गुजरात विश्वविद्यालय द्वारा सूर्या प्रेस को ब्लैकलिस्ट करने की ख़बरें भी आई थीं. टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति ने कहा था, ‘2004-05 में पेपर लीक घोटाला सामने आने के बाद से गुजरात विश्वविद्यालय द्वारा प्रिंटिंग प्रेस को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है. जांच करने वाली टीम ने उस समय कथित लीक में प्रिंटिंग प्रेस की भूमिका की ओर इशारा किया था. प्रिंटिंग प्रेस के प्रमोटरों में से एक को परीक्षा पेपर घोटाले में कथित संलिप्तता के लिए जेल भी हुई थी.’
गुजरात विश्वविद्यालय के अलावा सौराष्ट्र विश्वविद्यालय में दिसंबर 2021 के पेपर लीक प्रकरण से भी सूर्या ऑफसेट का नाम जुड़ा था. शिक्षा विभाग के सूत्रों का कहना था कि यह प्रेस पांच विश्वविद्यालयों के पेपर मुद्रित करती थी.
गुजरात कांग्रेस का आरोप रहा है कि मुद्रेश पुरोहित के आरएसएस और भाजपा से संबंध हैं.
गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी द्वारा 1978 में आपातकाल पर गुजराती में लिखी किताब ‘संघर्ष मा गुजरात’ इमेज पब्लिकेशन ने प्रकाशित की थी और किताब का मुद्रण सूर्या ऑफसेट ने किया था. नरेंद्र मोदी की वेबसाइट पर उपलब्ध ‘संघर्ष मा गुजरात’ के पीडीएफ संस्करण से पता चलता है कि किताब का पहला संस्करण जनवरी 1978 में, अगला उसी वर्ष मार्च में, तीसरा सितंबर 2000 में और चौथा मार्च 2008 में छपा था.
जब द वायर ने प्रिंटिंग प्रेस के मालिक मुद्रेश पुरोहित से हेड क्लर्क पेपर लीक केस को लेकर संपर्क किया, उन्होंने कहा ‘हमारी कंपनी उसमें शामिल नहीं है. यह बात सही है कि हमारी कंपनी के एक वरिष्ठ व्यक्ति किशोर आचार्य को पुलिस ने पकड़ा था. चार्जशीट में उनका नाम है. वह अभी भी जेल में हैं. वह हमारी कंपनी में 30 साल से काम कर रहे थे.’
पुलिस से हुई पूछताछ पर पुरोहित ने कहा, ‘शुरुआती जांच के दौरान पुलिस ने हमसे जो पूछा, हमने बताया. उन्हें कर्मचारियों की सूची चाहिए थी. हमने दी. उसी से उन्होंने किशोर आचार्य की पहचान की.’
अग्रिम जमानत लेने के मसले पर सूर्या ऑफसेट के मालिक ने कहा, ‘(हमें) आशंका थी कि पुलिस कहीं हमें भी हिरासत में न ले इसलिए मैंने अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट में याचिका डाली थी. हाईकोर्ट की सुनवाई में पुलिस से पूछा गया था कि कंपनी मालिक की क्या भूमिका है इसमें? पुलिस ने मेरी कोई भूमिका नहीं बताई. इसके बाद कोर्ट ने अग्रिम जमानत वाले केस को खत्म किया और कहा कि इनको अग्रिम जमानत को जरूरत ही नहीं है. पुलिस को जब भी जरूरत हो पूछताछ कर सकती है.’
पुरोहित ने आगे कहा, ‘भर्ती परीक्षाओं के पेपर हम 2006 से छाप रहे हैं. इस तरह के काम के लिए वे लोग (चयन बोर्ड वाले) टेंडर मंगाते हैं. फिर तय करते हैं.’
पुरोहित ने दावा किया कि वह किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े हैं और संघ से भी उनका कोई संबंध नहीं रहा है.
जीयू द्वारा सूर्या ऑफसेट को ब्लैकलिस्ट करने की बात को भी पुरोहित नकारते हैं. ‘उन्होंने हमें कभी ब्लैकलिस्ट नहीं किया. उनके साथ हमारा अलग विवाद था. वह विवाद पेपर लीक से नहीं जुड़ा था. उन्हें लगा हम अनुबंध से ज्यादा पैसे लेकर पेपर छाप रहे हैं, उन्हें लूट रहे हैं. अनुबंध का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके बाद मामला कोर्ट में गया. सेवानिवृत तीन जजों की अगुवाई वाली ट्रिब्यूनल ने हमारे पक्ष में फैसला दिया. विश्वविद्यालय ने वह फैसला नहीं माना. हाईकोर्ट में मामला अब भी चल रहा है.’
गौरतलब है कि गुजरात की कई मीडिया ख़बरें यह रेखांकित करती हैं कि सूर्या प्रेस ब्लैकलिस्ट हुई थी, और खुद पुरोहित स्वीकारते हैं कि अकादमिक वर्ष 2004-5 के बाद गुजरात विश्वविद्यालय और और सूर्या ने एक साथ काम नहीं किया. ‘गुजरात विश्वविद्यालय के साथ हमने 25 साल तक काम किया. लेकिन इस मामले के बाद हमने उनके साथ काम ही करना छोड़ दिया क्योंकि जिनके साथ आप अच्छी तरह से काम कर रहे हो और फिर गलत आरोप लगे, तो ये सही नहीं था,’ पुरोहित कहते हैं.
पुरोहित सौराष्ट्र विश्वविद्यालय के पेपर लीक की बात स्वीकार करते हैं लेकिन कहते हैं कि उसमें उनके प्रेस की कोई गलती नहीं थी. पेपर विश्वविद्यालय से लीक हुआ था. इस मामले में दूसरे लोग गिरफ्तार हुए थे.
नरेंद्र मोदी की किताब के मुद्रण पर उन्होंने कहा कि ‘मुझसे इमेज पब्लिकेशन ने संपर्क किया था, जिसके मालिकों से मेरे व्यक्तिगत संबंध हैं. मेरा नरेंद्र मोदी से सीधे तौर पर कोई परिचय नहीं है.’
सूर्या प्रेस के स्पष्टीकरण पर गुजरात के कई लोग प्रश्न लगाते हैं. पेपर लीक के खिलाफ होने वाले आंदोलनों का चेहरा रहे युवराज सिंह जडेजा ने द वायर से कहा, ‘पेपर लीक का सिलसिला इसलिए नहीं रुक रहा क्योंकि पिछली घटनाओं में शामिल लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की गई और चयन बोर्ड ने उसी प्रिटिंग प्रेस को प्रश्न पत्र छापने के लिए दिया, जो वर्षों पहले पेपर लीक के मामले में ब्लैकलिस्ट कर दिया था.’
सेवा चयन बोर्ड और भाजपा
गुजरात अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड का ज़िक्र होते वक्त एक प्रमुख नाम इसके पूर्व अध्यक्ष असित वोरा का आता है. उनके चार साल (2019-2022) के कार्यकाल के दौरान दो प्रमुख भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक हुए थे. इनके लिए 15 लाख से अधिक युवाओं ने आवेदन किया था और 12 लाख अभ्यर्थी परीक्षा में शामिल हुए थे. वोरा के कार्यकाल में 61 और आरोप लगे जिसमें परीक्षा परिणामों से छेड़छाड़ के आरोप शामिल थे. इसके बावजूद उन्हें दूसरा कार्यकाल भी दिया गया जो हेड क्लर्क पेपर लीक मामले पर फरवरी 2022 में उनके इस्तीफ़े से समाप्त हुआ.
असित वोरा हैं कौन? जब अक्टूबर 2010 में वे अहमदाबाद के मेयर चुने गए थे, गुजरात की चर्चित न्यूज वेबसाइट ‘देश गुजरात’ ने लिखा था– नरेंद्र मोदी के आदमी असित वोरा बने अहमदाबाद के नए मेयर.
अहमदाबाद का मेयर चुने जाने से पहले वोरा एएमसी (अहमदाबाद नगर निगम) की स्थायी समिति के अध्यक्ष थे, और उससे पहले मणिनगर से पांच बार भाजपा पार्षद रह चुके थे. नरेंद्र मोदी ने गुजरात दंगे के बाद मणिनगर विधानसभा क्षेत्र से पहला चुनाव लड़ा था और 2012 तक निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था.
बतौर मुख्यमंत्री मोदी ने मणिनगर की कांकरिया झील को विकसित करने का काम तत्कालीन मेयर असित वोरा को सौंपा था. यह झील मोदी के ‘गुजरात मॉडल’ के शुरुआती कामों में से एक थी. कांकरिया झील की तस्वीर आज भी वोरा के फेसबुक प्रोफाइल पर नज़र आती है. साल 2012 में आखिरी बार विधायक चुने जाने के बाद मोदी ने जब मणिनगर की जनता को धन्यवाद ज्ञापित किया, तो मंच पर असित वोरा मौजूद थे. मोदी ने उन्हें ‘असित भाई’ संबोधित करते हुए धन्यवाद दिया था.
बेहिसाब पेपर लीक
कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष दोशी का दावा है कि पिछले दशक में सरकारी नौकरी से जुड़ी 14 परीक्षाओं के प्रश्न पत्र लीक हुए हैं:
2013: जीपीएससी मुख्य अधिकारी भर्ती परीक्षा
2015: तलाटी भर्ती परीक्षा
2016: गांधीनगर, मोडासा, सुरेंद्रनगर जिले में जिला पंचायत द्वारा आयोजित तलाटी भर्ती परीक्षा
2018: टीएटी-टीचर परीक्षा
2018: मुख्य सेविका परीक्षा
2018: नायाब चिटनिस परीक्षा
2018: एलआरडी-लोक रक्षक दल
2019: गैर-सचिवालय क्लर्क
2020: सरकारी भर्ती परीक्षाएं (कोरोना काल)
2021: प्रधान लिपिक
2021: डीजीवीसीएल विद्युत सहायक
2021: सब ऑडिटर
2022: वन रक्षक
2023: जूनियर क्लर्क
गुजरात के कुछ प्रमुख भर्ती घोटालों की द वायर ने जांच की.
जीपीएससी मुख्य अधिकारी भर्ती परीक्षा
गुजरात लोक सेवा आयोग (जीपीएससी) मुख्य अधिकारी (नगर निगम) के तृतीय श्रेणी के 30 पदों के लिए अगस्त 2013 में गुजरात सरकार ने विज्ञापन (Advt. No. 25/2013-14) दिया था. विज्ञापन में बताया गया था कि दो परीक्षाएं आयोजित की जाएंगी. दोनों परीक्षाओं में सफल होने वाले उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाएगा.
30 सीट के लिए 80,000 से ज्यादा उम्मीदवारों ने आवेदन किया. आरोप लगा कि परीक्षा का प्रश्न पत्र लीक हो गया. लीक का पता परीक्षा होने के बाद एक अभ्यर्थी के ज़रिये लगा था. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस ने इस मामले में दो लोगों- भुवल चौधरी और दिलीप चौधरी को गिरफ्तार किया था.
जांचकर्ताओं ने कहा, ‘दिलीप एक राजनीतिक दल से जुड़ा है और इलाके की एक फाइनेंस कंपनी का रिकवरी एजेंट भी है. उसने 70 हजार रुपये में पेपर खरीदने की बात कबूल की है. उसने भुवल सहित कई व्यक्तियों को 40,000 रुपये में प्रतियां बेचीं.’
तलाटी (पटवारी) भर्ती परीक्षा
‘गुजरात पंचायत सेवा चयन बोर्ड’ (जीपीएसएसबी) ने 6 जून 2015 को सात जिलों (जकोट, भावनगर, जामनगर, पोरबंदर, अमरेली, गांधीनगर और साबरकांठा) में ग्रेड-III कर्मचारियों के चयन के लिए लिखित परीक्षा आयोजित की थी. आरोप लगा कि परीक्षा से पहले साबरकांठा में प्रश्नपत्र लीक हो गया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, लिखित परीक्षा के कुछ दिनों बाद राजकोट जिला पंचायत को एक गुमनाम पत्र मिला जिसमें आरोप लगाया गया कि राजकोट में भी पेपर लीक हुआ था. राजकोट जिला पंचायत अधिकारियों ने 23 जुलाई को शहर के पुलिस आयुक्त को पत्र भेजकर उचित कार्रवाई का अनुरोध किया.
पुलिस रिपोर्ट दर्ज होने के बाद राज्य सरकार ने 4 अगस्त, 2015 को परीक्षा रद्द कर दी. इसके बाद अमरेली और भावनगर में 16 अगस्त और अन्य शेष जिलों 23 अगस्त को फिर से परीक्षा का आयोजन किया गया.
टीएटी-टीचर परीक्षा
29 जुलाई, 2018 को राज्य परीक्षा बोर्ड ने टीचर्स एप्टीट्यूड टेस्ट (टीएटी) का आयोजन किया था. करीब 1.47 लाख अभ्यर्थियों ने परीक्षा दी थी. लेकिन पेपर सोशल मीडिया पर लीक होने की वजह से राज्य सरकार को परीक्षा रद्द करनी पड़ी. प्राथमिक-विद्यालय शिक्षक की नौकरी के लिए टीएटी की परीक्षा पास करना अनिवार्य है.
बोर्ड ने जनवरी 2019 में फिर से परीक्षा आयोजित की. इस बार भी पेपर लीक के आरोप लगे. पुलिस ने जामनगर में सरू सेक्शन रोड स्थित सत्य साईं स्कूल के परीक्षा केंद्र पर तैनात पर्यवेक्षक मनीष बुच के खिलाफ केस दर्ज किया. एक खबर के मुताबिक बुच प्राइवेट स्कूल के प्रधानाध्यापक थे.
जूनियर क्लर्क परीक्षा
29 जनवरी, 2023 को गुजरात पंचायत सेवा चयन बोर्ड (जीपीएसएसबी) ने 1,181 जूनियर क्लर्कों की भर्ती के लिए परीक्षा का आयोजन किया था. लेकिन पेपर लीक होने के कारण परीक्षा रद्द करना पड़ी. राज्य भर के 2,995 केंद्रों पर होने वाली परीक्षा के लिए कुल 9.5 लाख उम्मीदवारों ने आवेदन किया था.
सरकार ने आश्वासन के मुताबिक, रद्द की गई प्रवेश परीक्षा को 100 दिनों के भीतर फिर से आयोजित करवाया था. परीक्षा के परिणाम अगस्त 2023 में आए थे.
परेशान अभ्यर्थी
जूनियर क्लर्क की परीक्षा देने वाले दिलीपसिंह राजपूत ने द वायर से बातचीत में कहा, ‘सरकार के पास हर चीज का शेड्यूल है लेकिन परीक्षा लेने और जॉइनिंग देने का कोई शेड्यूल नहीं है. सरकार की जब इच्छा होती है, दो साल में, तीन साल में, चार साल में, पांच साल में, विज्ञापन देती है. इसके बाद परीक्षा दो महीने में होगी या चार महीने में, इसका पता नहीं होता है. इसके बाद पेपर लीक होने की आशंका रहती है.’
दिलीपसिंह उदाहरण देते हैं कि गुजरात में शिक्षकों की भर्ती के लिए सरकार ने पांच साल बाद 2023 में परीक्षा ली. परीक्षा का रिजल्ट भी आ गया, लोग पास होकर एक साल से बैठे हैं, जॉइनिंग नहीं हुई है.
एक दूसरे अभ्यर्थी प्रवीण सिंह जडेजा ने द वायर से कहा कि नया कानून बनाने और ऑनलाइन परीक्षा लेने से भी धांधली नहीं रुकी है.
वे कहते हैं, ‘कानून बनने के बाद दो पेपर लीक हो गए हैं. नीट के पेपर और राजकोट में हुई परीक्षाओं में नया कानून काम नहीं आया.’
छोटा उदयपुर निवासी प्रवीण प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी छोड़ चुके हैं. ‘गांव से गांधीनगर आकर तैयारी करने में प्रति माह पंद्रह हजार रुपये खर्च हो जाते हैं. हम कड़ी मेहनत से तैयारी कर 200 किलोमीटर पेपर देने जाते हैं. फिर पता चलता है कि पेपर लीक हो गया. क्या फायदा ऐसे तैयारी करने का.’
उल्लेखनीय है कि गुजरात में छात्र-छात्राओं के आत्महत्या के मामलों में तीन साल (2020-21 से 2022-23) में 21 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. स्कूल और विश्वविद्यालयों के कुल 495 विद्यार्थियों ने अप्रैल 1, 2020 और मार्च 31, 2023 के बीच अपनी जान ले ली थी. इनमें से पचास प्रतिशत यानी 246 लड़कियां थीं.
फरवरी 2023 में जूनियर क्लर्क का पेपर लीक होने के कारण भावनगर की ज्योति (21) ने आत्महत्या करने की कोशिश की थी. गुजराती न्यूज वेबसाइट संदेश पर प्रकाशित खबर के मुताबिक, ज्योति दो साल से सरकारी नौकरी के लिए परीक्षा की तैयारी कर रही थी. लेकिन पेपर रद्द होने के कारण उन्होंने मानसिक तनाव में आकर जहरीली दवा पी ली.
अप्रैल 2024 में सूरत जिले की मंजिता (21 साल) ने तमाम प्रयासों के बावजूद सरकारी नौकरी न मिलने से हताश होकर फांसी लगा थी.
फरवरी 2024 में सुरेंद्रनगर के मनीष (30 साल) ने प्रतियोगी परीक्षाओं में बार-बार असफल होने के कारण पंखे से लटकर आत्महत्या कर ली थी. मनीष पांच साल से सरकारी नौकरी के लिए मेहनत कर रहा था.
अप्रैल 2023 में वाकांनेर के अजय ने इसलिए जान दे दी थी क्योंकि वह जूनियर क्लर्क की परीक्षा को उत्तीर्ण नहीं कर पाए थे और उन्हें डर था कि सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी.
‘सरकार के संरक्षण में चल रही है धांधली’
गुजरात कांग्रेस के प्रवक्ता डॉ. मनीष दोशी का कहना है कि पेपर लीक पर राज्य सरकार का कानून सिर्फ जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए है.
द वायर से बातचीत में दोशी ने कहा, ‘जब पेपर लीक के मामले ज्यादा हो गए और स्टेट लॉ कमिशन ने संज्ञान लिया तब जाकर सरकार कानून लेकर आई. सरकार ने पेपर लीक के मामलों में सिर्फ छोटी-छोटी मछलियों को पकड़ा है, मगरमच्छों को न सिर्फ छोड़ दिया है बल्कि राजकीय संरक्षण भी दिया है.’
दोशी बताते हैं कि पेपर लीक गुजरात में एक संगठित अपराध बन चुका है. वह कहते हैं, ‘जैसे ही विज्ञापन (नौकरियों के लिए) आता है, उसका भाव तय हो जाता है. टीएटी का भाव सात से दस लाख रुपये है. तलाटी का भाव पंद्रह लाख रुपये है.’
द वायर ने पेपर लीक मामले पर जीएसएसएसबी के सचिव हसमुख पटेल से बातचीत की. उन्होंने कहा, ‘मुझे 10 साल का तो पता नहीं है. लेकिन पिछले चार-पांच साल के मामले अभी अदालतों में हैं. कुछ आरोपियों ने जमानत भी ले ली है.’
यह पूछने पर कि चयन बोर्ड ने हेड क्लर्क भर्ती परीक्षा का पेपर एक ब्लैकलिस्ट प्रेस को छापने के लिए क्यों दिया, उन्होंने कहा, ‘उस लीक में उनका कोई रोल नहीं था. पेपर प्रेस में से लीक नहीं हुआ था. परिवहन के दौरान लीक हुआ होगा. सूर्या ऑफसेट ब्लैकलिस्ट में कभी था ही नहीं. …(सूर्या ऑफसेट के) एक कर्मचारी को गिरफ्तार तो किया गया था. लेकिन उसे जमानत मिल गई थी.’
भाजपा ने किया इनकार
द वायर से बातचीत में गुजरात भाजपा के मुख्य प्रवक्ता यमल व्यास ने इनकार किया कि पेपर लीक मामलों से भाजपा-आरएसएस के लोग जुड़े हैं. यह पूछे जाने पर कि भाजपा का सूर्या ऑफसेट प्रिंटिंग प्रेस के मालिक मुद्रेश पुरोहित से क्या संबंध है, उन्होंने कहा, ‘मैं ऐसे किसी व्यक्ति को नहीं जानता हूं.’
उन्होंने यह भी दावा किया कि नए कानून से पेपर लीक के मामले रुकेंगे. उन्होंने कहा, ‘गुजरात में सभी परीक्षाओं को सीसीटीवी से कवर किया जा रहा है. हम पूरी कोशिश कर रहे हैं. कानूनी कार्रवाई जारी है. जो भी इन मामलों में लिप्त हैं उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा.’
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