कलकत्ता हाईकोर्ट ने पांच लाख लोगों के ओबीसी प्रमाणपत्र रद्द किए, ममता बोलीं- आदेश अस्वीकार

कलकत्ता हाईकोर्ट ने 2010 से बंगाल में कई समुदायों को दिए गए अन्य पिछड़ा वर्ग का दर्जा रद्द करते हुए कहा कि ओबीसी न केवल इसलिए घोषित किया जाता है क्योंकि वह वैज्ञानिक और पहचान योग्य आंकड़ों के आधार पर पिछड़ा है, बल्कि इस आधार पर भी घोषित किया जाता है कि ऐसे वर्ग का राज्य की अधीनस्थ सेवाओं में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है.

कलकत्ता हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक/Kolkata Calling)

नई दिल्ली: कलकत्ता हाईकोर्ट ने 2010 से बंगाल में कई समुदायों को दिए गए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का दर्जा रद्द कर दिया है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि वह ‘आदेश को अस्वीकार करती हैं.’

रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट के इस फैसले से प्रभावित लोगों की संख्या करीब पांच लाख हो सकती है.

अदालत ने 22 मई को अपने आदेश में कहा कि राज्य में सेवाओं और पदों पर इन वर्गों के लिए आरक्षण अवैध है. हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया है कि जिन लोगों को 2010 के पहले जारी किए गए ओबीसी प्रमाणपत्रों के परिणामस्वरूप नौकरी मिली थी, वे आदेश से प्रभावित नहीं होंगे.

लाइव लॉ के अनुसार, जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और जस्टिस राजशेखर मंथा की खंडपीठ ने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा) (सेवाओं और पदों में रिक्तियों का आरक्षण) अधिनियम, 2012 के तहत राज्य में ओबीसी प्रमाण पत्र देने की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुनाया.

पीठ ने अधिनियम के कुछ हिस्सों को रद्द कर दिया है, जिसमें धारा 16 भी शामिल है (यह राज्य कार्यकारिणी को अनुसूची I सहित 2012 के अधिनियम की किसी भी अनुसूची में संशोधन करने का अधिकार देता है), धारा 2 (एच) के दूसरे भाग और धारा 5 के साथ (ए) जिसने उप-वर्गीकृत श्रेणियों को 10% और 7% का आरक्षण प्रतिशत दिया गया था.

परिणामस्वरूप, राज्य कार्यकारिणी द्वारा धारा 16 में शामिल 37 वर्गों को अधिनियम की अनुसूची I से बाहर कर दिया गया और उप-वर्गीकृत श्रेणियां ओबीसी-ए और ओबीसी-बी को हटा दिया गया.

जल्दबाजी, कमियां

अदालत ने कहा कि ओबीसी न केवल इसलिए घोषित किया जाता है क्योंकि वह वैज्ञानिक (scientific) और पहचान योग्य आंकड़ों के आधार पर पिछड़ा है, बल्कि इस आधार पर भी घोषित किया जाता है कि ऐसे वर्ग का राज्य की अधीनस्थ सेवाओं में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है.

अदालत ने कहा कि इस अपर्याप्त मूल्यांकन समग्र रूप से जनसंख्या और अन्य अनारक्षित वर्गों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है. अदालत ने राज्य आयोग की प्रक्रिया पर कहा, ‘उक्त प्रोफॉर्मा में कई कमियां हैं.’

2010 में जहां वाम मोर्चा सरकार सत्ता में थी, वहीं 2011 में तृणमूल कांग्रेस सरकार ने सत्ता संभाली. इस प्रकार इस आदेश के माध्यम से रद्द किए गए लगभग सभी ओबीसी प्रमाणपत्र राज्य में ममता बनर्जी के शासन के दौरान दिए गए थे.

अदालत ने तत्कालीन मुख्यमंत्री की सार्वजनिक घोषणा को वास्तविकता बनाने के लिए 77 वर्गों के वर्गीकरण के लिए सिफारिशें करने में आयोग की अनुचित जल्दबाजी का भी जिक्र किया है.

समुदाय का अपमान

लाइव लॉ के अनुसार, अदालत ने यह भी कहा कि राज्य द्वारा ओबीसी के उप-वर्गीकरण की सिफारिशें राज्य आयोग को दरकिनार करके की गई थीं. इसमें कहा गया है कि हालांकि आयोग केवल धर्म के आधार पर किसी समुदाय को आरक्षण देने की सिफारिश नहीं कर सकता है, अकेले 2010 में आरक्षण के लिए जिन 42 वर्गों की सिफारिश की गई थी, उनमें से 41 मुस्लिम समुदाय के थे.

अदालत ने यह भी कहा कि आयोग द्वारा मुसलमानों की 77 श्रेणियों को पिछड़े के रूप में चुना जाना पूरे मुस्लिम समुदाय का अपमान है और यह संदेह पैदा करता है कि समुदाय को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया गया है.

अदालत ने कहा, ‘यह उन घटनाओं की श्रृंखला से स्पष्ट है जिसके कारण 77 वर्गों को ओबीसी के रूप में वर्गीकृत किया गया और उन्हें वोट बैंक के रूप में शामिल किया गया. चुनावी लाभ के लिए समुदाय में वर्गों की पहचान ओबीसी के रूप में करने से वे संबंधित राजनीतिक प्रतिष्ठान की दया पर निर्भर हो जाएंगे और अन्य अधिकारों से वंचित हो सकते हैं.’

केंद्र सरकार ने 2010-2011 के दौरान 37 वर्गों को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल किया था.

इसी बीच, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि वह फैसले को स्वीकार नहीं करेंगी और जरूरत पड़ने पर ऊपरी अदालत का दरवाजा खटखटाएंगी. उन्होंने कहा, ‘आरक्षण व्यवस्था जारी रहेगी.’

इस बीच, भारतीय जनता पार्टी में उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बंगाल सरकार पर तुष्टिकरण का आरोप लगाया है.