नई दिल्ली: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि राज्य में लिव-इन-संबंधों पर कोई रोक नहीं लगा रहे हैं लेकिन उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में यह पूछे जाने पर कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के नियम कब तक बनेंगे और लिव-इन रिलेशनशिप को कैसे विनियमित किया जाएगा, धामी ने कहा, ‘हमारे पास 18-21 आयु वर्ग के साथ रहने वाले लोगों के माता-पिता को सूचित करने की एक प्रणाली होगी. हम लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों के लिए कोई प्रतिबंध नहीं ला रहे हैं, हम केवल उनकी सुरक्षा के बारे में चिंतित हैं. उनके शव सूटकेस में पाए जाने की घटनाएं हुई हैं. जब ऐसी घटनाएं घटती हैं तो माता-पिता जीवन भर पछताते हैं. हमने नियम बनाने के लिए पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह की अध्यक्षता में एक समिति बनाई है, जो जल्द ही अपनी रिपोर्ट देगी.’
उन्होंने आगे कहा कि बहुत जल्द ही नियमों अधिसूचित कर दिया जाएगा. ज्यादातर काम पूरा हो चुका है और आचार संहिता के कारण कुछ देरी हो सकती है.
यह पूछे जाने पर कि हिंदुओं में भी हिंदू विवाह अधिनियम और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम जैसे व्यक्तिगत कानून हैं.
धामी ने कहा, ‘लेकिन हम बात कर रहे हैं समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की. उत्तराखंड में हमने वादे के मुताबिक यूसीसी कानून पारित किया है. एक तरफ शरिया कानून है तो दूसरी तरफ समान पर्सनल लॉ है.’
मालूम हो कि उत्तराखंड विधानसभा ने 7 फरवरी 2024 को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक पारित किया था, जिसका उद्देश्य अन्य मुद्दों के अलावा विवाह, रिश्तों और विरासत को नियंत्रित करने वाले धार्मिक व्यक्तिगत कानूनों को बदलना है.
विधेयक में सभी समुदायों में विवाह के लिए न्यूनतम आयु निर्धारित की गई है – महिलाओं के लिए 18 वर्ष, पुरुषों के लिए 21 वर्ष.
कहा गया है कि इसमें लिव-इन रिलेशनशिप के अनिवार्य पंजीकरण और ऐसा न करने पर तीन से छह महीने की जेल की सजा का प्रावधान है. लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे वैध माने जाएंगे और परित्यक्त महिलाएं अपने पार्टनर से गुजारा भत्ता पाने की हकदार होंगी.
विधेयक में कहा गया है कि रजिस्ट्रार को लिव-इन रिलेशनशिप का विवरण रिकॉर्ड के लिए स्थानीय पुलिस थाना प्रभारी को भेजना होगा और यदि दोनों में से किसी एक की उम्र 21 वर्ष से कम है, तो ऐसे जोड़ों के अभिभावकों या संरक्षकों को भी सूचित करना होगा.
विधेयक बाल विवाह पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है और तलाक के लिए एक समान प्रक्रिया शुरू करता है. यह संहिता सभी धर्मों की महिलाओं को उनकी पैतृक संपत्ति में समान अधिकार प्रदान करती है. विवाह का पंजीकरण भी सभी धर्मों के लिए अनिवार्य है.
चारधाम भीड़: ‘हमारा विकास मॉडल पारिस्थितिकी और आर्थिक संतुलन पर आधारित है’
आगे पुष्कर सिंह धामी ने चारधाम यात्रा के लिए बड़ी संख्या में लोगों के आने और कई विशेषज्ञों द्वारा इसे ऊपरी हिमालय के लिए बड़ा पारिस्थितिक खतरा के रूप में देखने को लेकर कहा, ‘हमने सभी धामों की वहन क्षमता का अध्ययन किया है. केदारनाथ में 20,000 लोगों को अनुमति दी जा सकती है, बद्रीनाथ में 30,000 और यमुनोत्री में लगभग 12,000… जिस तरह से हमने चारधामों और बारहमासी सड़कों का विकास किया है, इस साल अधिक लोग आ रहे हैं.’
उन्होंने कहा, ‘दूसरा कारण यह है कि पिछले साल यात्रा 22 अप्रैल को शुरू हुई थी और इस साल यह 10 मई को शुरू हुई. स्कूल और कॉलेज बंद होने के कारण अचानक भीड़ बढ़ गई है. इसीलिए, हमने 31 मई तक ऑफ़लाइन पंजीकरण बंद कर दिया है. हम तीर्थयात्रियों को धामों की वहन क्षमता के आधार पर अनुमति देते हैं.’
यह पूछे जाने पर कि हिमालय के पारिस्थितिक नुकसान को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘हमारा विकास मॉडल पारिस्थितिकी और आर्थिक संतुलन पर आधारित है. हमारे लिए विकास भी जरूरी है. हमने उत्तराखंड के प्रमुख शहरों के लिए भार वहन क्षमता का अध्ययन किया है. क्षमता से अधिक निर्माण होने पर हम आगे निर्माण रोक रहे हैं और सख्त नियम लागू कर रहे हैं.’
मालूम हो कि चारधाम में भारी भीड़ से अराजकता के बीच केंद्र सरकार ने प्रबंधन के लिए एनडीआरएफ, आईटीबीपी को भेजने का निर्देश दिया है. अधिकारियों ने बताया था कि चारधाम यात्रा के लिए 22 मई तक कुल 31,18,926 लोगों ने पंजीकरण किया था. भारी भीड़ को देखते हुए चारधाम यात्रा के लिए ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन पर 31 मई तक रोक लगा दी गई है.
इस महीने की शुरुआत में बद्रीनाथ में पुजारियों और स्थानीय लोगों ने जिला प्रशासन द्वारा चारधाम यात्रा के कथित कुप्रबंधन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था.