नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (24 मई) को अपने एक फैसले में उत्तराखंड हाईकोर्ट परिसर को नैनीताल से कहीं और स्थांनतरित करने के आदेश पर रोक लगा दी. इससे पहले उच्च न्यायालय की ओर से इसके स्थानांतरण का आदेश देते हुए राज्य सरकार से इसके लिए उपयुक्त जगह ढूंढने को भी कहा गया था.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, उत्तराखंड हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने उच्च न्यायालय के 8 मई के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर चुनौती दी थी, जिस पर जस्टिस पीएस नरसिम्हा व जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने सुनवाई की. पीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर इस मुद्दे पर उसके विचार मांगे हैं.
सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पीवीएस सुरेश ने कहा कि उच्च न्यायालय के पास इसका अधिकार नहीं है कि वो परिसर को स्थांनतरित करने का आदेश दे सके. ये अधिकार केवल संसद या केंद्र सरकार है, जो यह तय कर सकती है कि बेंच कहां स्थापित की जाए.
राज्य सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि नई पीठों का निर्माण संसद के विशेषाधिकार के अंतर्गत आता है और ‘उच्च न्यायालय का निर्णय जनमत संग्रह की तरह है.’
हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को 14 मई 2024 तक एक पोर्टल खोलने का निर्देश दिया था, जिससे वकील स्थानांतरण के पक्ष या विपक्ष में अपनी में अपनी पसंद व्यक्त कर सकें. इसके अलावा कोर्ट ने इस मामले पर सार्वजनिक राय भी मांगी थी, क्योंकि अदालत का मानना था कि इसमें आम लोगों के विचारों का ध्यान रखना जरूरी है.
उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से नए न्यायालय भवन और न्यायाधीशों और कर्मचारियों के लिए आवास तथा वकीलों के कक्षों सहित अन्य बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए नैनीताल के बाहर ‘सर्वोत्तम उपयुक्त भूमि’ खोजने को कहा था.
बार एंड बेंच की खबर के अनुसार, उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले के पीछे मुख्य वजह सार्वजनिक हित का मसला था. अदालत का कहना था कि मुकदमा लड़ रहे आम लोगों, युवा वकीलों यहां तक की राज्य सरकार को भी कई व्यावहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.
अदालत ने इस पूरे मामले को लेकर एक समिति के गठन का आदेश भी दिया था, जिसे 7 जून तक अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा गया था.
इस संबंध में हल्द्वानी में एक जमीन भी देखी गई थी, लेकिन उच्च न्यायालय इसके पक्ष में नहीं था क्योंकि इसका अधिकांश भाग जंगल से घिरा हुआ था. तब कहा गया था कि यह अदालत नया उच्च न्यायालय बनाने के लिए किसी भी पेड़ को उखाड़ना नहीं चाहती.