नई दिल्ली: देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में इस वक्त भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की योगी आदित्यनाथ सरकार है. ये इस सरकार का दूसरा कार्यकाल है और इस समय राज्य में पेपर लीक और बेरोज़गारी के चलते युवाओं का गुस्सा सातवें आसमान पर है.
भर्ती पेपर में गड़बड़ी और धांधली को लेकर अक्सर ही प्रदेश के युवा सड़कों पर संघर्ष करते नज़र आते हैं, तो वहीं भर्तियों का लंबा इंतज़ार भी इनके भविष्य को अंधकार में धकेल रहा है.
द वायर की सरकारी भर्तियों में घोटाले की इस कड़ी में हम उत्तर प्रदेश के कुछ चर्चित पेपर लीक और भर्ती घोटाले पर प्रकाश डाल रहे हैं.
पिछले वर्षों में प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक और उस पर हुई कार्रवाई
भर्ती परीक्षा |
शासन-प्रशासन की कार्रवाई |
पुलिस कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा – 17-18 फरवरी 2024 | एसटीएफ ने अमुख्य आरोपी राजीव नयन मिश्रा को गिरफ्तार किया. |
समीक्षा अधिकारी और सहायक समीक्षा अधिकारी परीक्षा- 11 फरवरी, 2024 | एसटीएफ ने प्रश्न पत्र लीक कराने वाले गैंग के 4 सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया है . |
बारवीं बोर्ड परीक्षा –29 फरवरी, 2024 | इस मामले में दो लोगों की भी गिरफ्तारी हुई. |
लेखपाल भर्ती- 31 जुलाई, 2022 | पुलिस ने पेपर लीक और नक़ल के 21 अभियुक्तों को गिरफ़्तार किया था. |
उत्तर प्रदेश बोर्ड परीक्षा- 30 मार्च, 2022 | कुल पांच लोगों के ख़िलाफ़ एनएसए लगाया गया था और 55 लोगों की गिरफ़्तारी हुई थी. |
शिक्षक भर्ती- 29 नवंबर, 2021 | पेपर लीक होने के मामले में 29 लोगों को गिरफ़्तार किया गया |
पीईटी (प्रारंभिक पात्रता परीक्षा)-24 अगस्त, 2021 | जांच करने पर यह ख़बर झूठी निकली जो सोशल मीडिया की उपज थी. |
जूनियर इंजीनियर (जेई) परीक्षा-2 फरवरी, 2018 | इसमें यूपी एसटीएफ ने जौनपुर के रहने वाले परमिंदर सिंह को गिरफ्तार किया था. |
लोअर सबऑर्डिनेट- जुलाई, 2018 | एसटीएफ ने 51 लोगों को संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया था |
नलकूप ऑपरेटरों भर्ती- 2 सितंबर 2018 | इस मामले में यूपी एसटीएफ ने मेरठ से 11 लोगों को गिरफ्तार किया था. |
दारेगा भर्ती परीक्षा- 25-26 जुलाई 2017 | पुलिस ने जांच शुरू की और कम से कम दो संदिग्धों को पकड़ लिया. |
(स्रोत– मीडिया रिपोर्ट्स)
उत्तर प्रदेश में पेपर लीक एक ‘संगठित अपराध’ है. नकल और पेपर लीक का रैकेट चलाने वालों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गुनाह दर्ज किया जाता है. इसकी जांच स्पेशल टास्क फोर्स करती है.
उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग ने पिछले साल प्रतियोगी और शैक्षणिक परीक्षाओं से जुड़े प्रश्न पत्रों को लीक होने से रोकने और पेपर सॉल्वर गैंग पर लगाम लगाने के लिए एक कानूनी मसौदा तैयार किया था. इस प्रस्तावित कानून में 14 साल जेल और 25 लाख रुपये तक के ज़ुर्माने का प्रावधान है.
इसके अलावा राज्य में नकल के खिलाफ दो कानून मौजूद हैं. पहला उत्तर प्रदेश लोक परीक्षा (अनुचित साधन रोकथाम) अधिनियम 1992 और उत्तर प्रदेश लोक परीक्षा (अनुचित साधन रोकथाम) अधिनियम 1998. इन कानूनों में नाबालिग परीक्षार्थियों की कम उम्र का ध्यान रखते हुए सिर्फ़ सांकेतिक सज़ा के प्रावधान थे.
69 हज़ार शिक्षक भर्ती घोटाला
69 हज़ार शिक्षक भर्ती घोटाले को यूपी का ‘व्यापमं घोटाला’ भी कहा जाता है. 2019 लोकसभा चुनाव से पहले 1 दिसंबर 2018 को राज्य सरकार ने सहायक शिक्षक की नौकरी के लिए 69,000 शिक्षकों की भर्ती की घोषणा की थी, जिसके लिए परीक्षा 6 जनवरी 2019 को आयोजित की गई थी. जब मई 2019 में परिणाम घोषित किए गए, तो उम्मीदवारों ने पाया कि आरक्षण मानदंडों में कई विसंगतियां हैं.
उम्मीदवारों ने दावा किया कि 18,500 सीटों के मुकाबले जो अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और ओबीसी श्रेणियों के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित होनी थीं, आरक्षित श्रेणी में केवल 2,637 सीटें आवंटित की गईं.
अभ्यर्थियों ने आरोप लगाया कि मूल रूप से आरक्षित श्रेणियों की 15,863 सीटें सामान्य जाति वर्ग के उम्मीदवारों को आवंटित की गईं. इसी तरह के आरोप अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीटों के संबंध में भी लगाए गए थे. परीक्षार्थियों का कहना था कि अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों को अनिवार्य 22.5 प्रतिशत के बजाय केवल 16 प्रतिशत आरक्षण दिया गया.
मामला राष्ट्रीय अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पास पहुंचा तो आयोग ने जांच के बाद परीक्षा के लिए अपनाए गए आरक्षण मानदंडों में विसंगतियां पाईं. आयोग की रिपोर्ट के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अप्रैल 2021 में मामले का संज्ञान लिया और शिकायतों के निवारण का आदेश दिया. हालांकि, तब तक राज्य विधानसभा चुनाव (2022) का समय हो गया था और आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) लागू हो गई, जिससे भर्ती प्रक्रिया में रोक लग गई.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस कथित घोटाले में जून 2020 तक यूपी पुलिस ने 10 लोगों को गिरफ्तार किया था. पुलिस ने उस वक्त आरोपियों के पास से 22 लाख रुपये और दो लग्जरी कारें जब्त की थीं. मुख्य आरोपी की पहचान पूर्व जिला पंचायत सदस्य केएल पटेल के रूप में की गई थी.
नौ साल बाद निरस्त हुई सहायता प्राप्त माध्यमिक स्कूलों में प्रधानाचार्य भर्ती
बलिया के ब्रजेश यादव बताते हैं कि करीब एक दशक पहले साल 2013 में सहायता प्राप्त (एडेड) माध्यमिक स्कूलों में प्रधानाचार्य भर्ती की परीक्षा आयोजित हुई थी. उस साल प्रधानाचार्य के 632 पदों पर भर्ती के लिए माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन आयोग ने प्रक्रिया शुरू की थी. विवाद के चलते कई साल मामले के ठंडे बस्ते में रहने के बाद चयन बोर्ड ने नबंवर 2022 के बीच 632 में से 581 पदोंं का परिणाम घोषित किया. लेकिन अभी आधे चयनित लोग ही कार्यभार ग्रहण कर सके थे कि हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने चयन प्रक्रिया में नौ साल समय लगने का हवाला देते हुए फरवरी 2023 में भर्ती ही निरस्त कर दी. ये उन उम्मीदवारों के साथ मज़ाक था, जिन्होंने अपने जीवन के कई साल इसमें झोंक दिए.
गौरतलब है कि कई भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक और धांधली के बीच यूपी के बीते विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चार लाख नौकरियों के दावे वाले पोस्टर केवल यूपी में ही नहीं बल्कि कई अन्य राज्यों में भी लगवाए थे.
युवाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले संगठन ‘युवा हल्लाबोल‘ के राष्ट्रीय महासचिव प्रशांत कमल द वायर से कहते हैं कि उनके संगठन ने इसके खिलाफ ज़ोरदार आवाज़ उठाई थी, ‘फेक न्यूज़ स्पॉटेड कैंपेन‘ चलाया था, सरकार से सवाल किया था कि आपने किस विभाग में, कहां कितनी नौकरियां दी हैं. इसके जवाब में सरकार को मानना पड़ा था कि उनके पास इसका कोई आंकड़ा नहीं है. आखिरकार चौतरफा आलोचना के बाद सरकार को ये पोस्टर हटाने भी पड़े थे.
पेपर लीक के लिए सरकार जिम्मेदार?
प्रशांत कमल कहते हैं कि पहले की सरकारों में भी पेपर लीक और रोज़गार की समस्या थी, लेकिन तब सरकारें इस मुद्दे को संज्ञान में लेकर उसके समाधान के लिए कोशिश करती थीं.
प्रशांत का कहना है, ‘बीते कुछ सालों में अमूमन हर भर्ती परीक्षा में धांधली की खबर सामने आई है. एक तो सरकार को सरकारी नौकरियों को पूरा करने में सालों लग रहे हैं. इसके बाद पेपर लीक युवाओं को फिर से शून्य पर पहुंचा दे रहा है.’
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र पेपर लीक के लिए सिस्टम और सरकार को इसका दोषी मानते हैं. उनका कहना है कि पेपर लीक और भर्ती घोटालों में भी कोई खास कार्रवाई नहीं होती.
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पीएचडी स्कॉलर अनुपम कुमार बताते हैं, ‘पेपर लीक सिर्फ युवाओं के सपनों को नहीं तोड़ता, बल्कि उसके पूरे परिवार के सपने को तोड़ देता है. ज्यादातर वो छात्र सरकारी नौकरी की तैयारी करते हैं, जो निम्न-मध्यम वर्गीय परिवारों से आते हैं. ऐसे में पेपर लीक से उनके सालों-साल की मेहनत और पैसे सब एक झटके में बर्बाद हो जाता है.’
(इस श्रृंखला के सभी लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)