मंडी: रात के करीब सवा नौ का वक्त है. शहर में आप इसे ‘अभी तो शाम शुरू हुई है’ कह सकते हैं, लेकिन पहाड़ इस वक्त सोने लगता है और दिन भर उफनती आई सतलुज भी सहसा ठहरी हुई दिखाई देने लगती है.
मंडी लोकसभा सीट से भाजपा की उम्मीदवार कंगना रनौत दोपहर से अपने क्षेत्र का दौरा कर रही हैं. मंडी भौगौलिक दृष्टि से भारत के सबसे बड़े लोकसभा क्षेत्रों में शुमार है- जो 6000 मीटर से 900 मीटर- चंबा से लेकर लाहौल-स्पीति और किन्नौर, यहां तक कि शिमला ज़िले के रामपुर तक विस्तृत है.
कुल पांच-छह गाड़ियों का उनका काफ़िला पुरानी मंडी के शीतला देवी मंदिर पर आकर रुकता है. वे उतरती हैं, तेजी से सीढ़ियां चढ़ती हैं. मंदिर के दर्शन करती हैं. मंदिर के समीप छोटे-से चबूतरे पर उनकी जनसभा है. करीब पांच सौ लोग, जिनमें से सत्तर-अस्सी प्रतिशत स्त्रियां. कंगना से पहले एक भाजपा नेता छोटा-सा भाषण देते हैं, और वह तुरंत माइक थाम लेती हैं. अन्य नेताओं से एकदम अलग उनका मंच पर आगमन लगभग किसी भूमिका के बगैर होता है.
कंगना रनौत के पहले शब्द हैं: ‘जय-जय श्री राम. भारत माता की जय.’
और उसके बाद कहती हैं.
‘आज से पहले कभी लोकतंत्र में ऐसा हुआ नहीं कि वोटिंग पूरी नहीं हुई है लेकिन सब कहते हैं- आएगा तो मोदी ही.’
सत्ताईस मई की रात कंगना रनौत करीब नौ मिनट बोलती हैं. पूरा भाषण सिर्फ़ एक विषय (हिंदुत्व) और एक व्यक्ति (नरेंद्र मोदी) पर केंद्रित है. मोदीजी ने पिछले दस साल में देश को खोया गौरव वापस दिलवाया, पिछली सरकारों को ‘यह भी नहीं पता था कि देश की सीमाएं कहां पर हैं..(वे) क्या शासन कर रहे थे? (मोदीजी ने) सैटेलाइट से पता करवाया’ कि देश की सीमाएं आखिर हैं कहां.
कंगना की आवाज में ऊर्जा है, आक्रोश भी. वे हल्के गुलाबी रंग का सलवार सूट पहने हैं, सिर पर हिमाचली टोपी. उनके शब्द पहाड़ी बोली में डूबे हुए हैं और वे किसी सामान्य हिमाचली की तरह दिखाई दे रही हैं.
वे नहीं बतातीं कि अपने गृह-ज़िले मंडी या हिमाचल के लिए उनका क्या विज़न, क्या स्वप्न है. मंडी का विज़न भी मोदीजी ने तय कर रखा है. ‘तीसरे टर्म’ में आते ही मोदीजी मंडी की कायापलट कर देंगे. यहां तक कि कंगना अपने लिए वोट भी नहीं मांगती. ‘हमें प्रधानमंत्री जी को चुनना है,’ वे कहती हैं.
लेकिन क्यों?
‘राम जिनके हाथों से आए हैं. छह सौ साल तक राम नहीं आए… राम भगवान ने उन्हें चुना है अपना मंदिर बनाने के लिए, अपनी प्रतिष्ठा कराने के लिए, इस देश का उद्धार कराने के लिए, तो हम कौन होते हैं? हम तो राम की सेना हैं. जैसा राम कहेंगे, हम वैसा ही करेंगे.’
उसके बाद कंगना श्रोताओं को सूचित करती हैं कि जब लोग प्रधानमंत्री बनते हैं, बड़े-बड़े काम करते हैं लेकिन मोदीजी ने 2014 में आते ही ‘शौच साफ़ करवाई, गुसलखाने बनवाए.’ ‘भुखमरी से देश मर रहा था. अस्सी करोड़ लोगों को राशन दिया.’
और तीसरे टर्म में मोदीजी का क्या विज़न है? ‘हमारे देश में आज तक वही पुराने जमाने की वोटिंग चली आ रही है. दो-तीन महीनों में इलेक्शन होते रहते हैं. सारे अधिकारी और मंत्री इस काम में लगे रहते हैं- इलेक्शन, इलेक्शन, इलेक्शन.’
कंगना स्पष्ट कर देती हैं कि अगली सरकार का एजेंडा क्या होने वाला है.
आप चौंक सकते हैं कि वे अपने बारे में क्यों कुछ नहीं बोल रहीं, लेकिन कंगना को मालूम है कि वे एक ‘सनातनी पार्टी’ से प्रत्याशी हैं और ‘हम लोग मोदी भक्त हैं.’
कांग्रेस की स्थिति
मंडी सीट से कांग्रेस प्रत्याशी विक्रमादित्य सिंह की मां प्रतिभा सिंह निवर्तमान सांसद हैं. मंडी लोकसभा क्षेत्र विक्रमादित्य के पिता और भूतपूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पुश्तैनी सीट है. 1952 से अब तक 12 बार कांग्रेस ने यह सीट जीती है, जिसमें से छह बार वीरभद्र के परिवार का इस पर आधिपत्य रहा है.
इस आधिपत्य का असर दोनों पार्टियों की रैलियों में दिखाई दे जाता है. सत्ताईस मई को कांग्रेस प्रत्याशी विक्रमादित्य की रैली सतलुज नदी के किनारे मंडी ज़िले के देहर में हुई थी. कंगना की जनसभाओं से कई गुना भीड़ थी और गाड़ियों का विशाल काफ़िला ‘टिक्का साहब’ उर्फ़ विक्रमादित्य सिंह के साथ चल रहा था.
‘राजे का बेटा जीतेगा’ की ध्वनि को आप ठेले वालों और पंचायतकर्मियों से सुन सकते थे. वीरभद्र की हिमाचल में उपस्थिति को इस तरह समझिए कि उनके निधन के बाद 2022 में जब कांग्रेस विधानसभा चुनाव लड़ रही थी, सड़कों पर सुनने को मिलता था- ‘वीरभद्र जीतेगा’.
देश में कांग्रेस की स्थिति कई जगह बदतर हुई है, लेकिन हिमाचल में वीरभद्र की उपस्थिति और ताकत अभी भी बनी हुई है. अपने पिता की राजनीतिक परंपरा और सामाजिक प्रभाव के अलावा विक्रमादित्य खुद दो बार के विधायक हैं, और हिमाचल की वर्तमान कांग्रेस सरकार में मंत्री हैं.
इसके बरअक्स कंगना के पास न कोई परिवार है, न राजनीति का कोई अनुभव- न कोई टीम या काफ़िला.
कंगना की जो भी मंडली है, अभी तक इस नई नेता के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पा रही है. उनके मनोभावों को समझना आसान नहीं. वे अचानक अपना भाषण ख़त्म कर सकती हैं, और झटके से सभा से उठ सकती हैं. सोमवार शाम उनका मंडी के चौक पर होटल कम्फर्ट से रोड शो होना था. उनके सहयोगियों को लगा था कि यह लंबा चलेगा. उनके आने से पहले अच्छी भीड़ जमा थी. लेकिन वे दसेक मिनट के भीतर उठ गईं. ‘वो आई, तेज-तेज बोली और चली गई,’ होटल कम्फर्ट के हॉल में थोड़े मायूस दिखाई दे रहे पार्टी सदस्य बोले.
लेकिन कंगना के भीतर आवेग है, और ठेठ हिमाचली लहजा भी. कांग्रेस अपनी जनसभाओं में उनके फिल्मी अतीत पर प्रहार करती रहती है, लेकिन कंगना मानो अपने बंबइया करिअर को पीछे छोड़ आई हैं और पहाड़ी अस्मिता को अपना कवच बना लिया है.
कंगना के तमाम वीडियो आते रहते हैं, जिसमें वे गैर-जिम्मेदार बयान देती नजर आती हैं. यह स्वभाव का सूचक हो सकता है, लेकिन यह उस दुर्लभ अदाकारा का गणित भी हो सकता है जो पिछले 15 वर्षों में बगैर किसी सहारे के सिर्फ़ अपने बल पर बंबई के क्रूर फ़िल्म उद्योग में निर्भीक खड़ी रही है. यह अनायास नहीं होगा कि कंगना ने प्रधानमंत्री की छवि को अपने चुनाव की नींव बनाया है.
लेकिन क्या कंगना को अपनी पूर्वज के बारे में मालूम है? वे कांग्रेस पर हिमाचल को लूटने का आरोप लगाती हैं. उन्हें शायद अपने क्षेत्र का इतिहास मालूम नहीं कि देश के पहले लोकसभा चुनाव में मंडी सीट ने जिन्हें संसद भेजा था, वे महान स्वतंत्रता सेनानी राजकुमारी अमृत कौर थीं. भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री, जिन्होंने एम्स की नींव रखी थी और जिन्हें आधुनिक भारतीय इतिहास बड़े सम्मान से याद करता है.
इस वक्त करीब ग्यारह बजे हैं. मंडी से करीब पच्चीस किमी दूर रिवालसर से थोड़ा पहले चीड़ के जंगल में आग बिखर रही है. पहाड़ी जंगल की इस सड़क पर फायर ब्रिगेड की गाड़ी खड़ी है.
इस मौसम में चीड़ की पत्तियां सूखकर पगडंडियों पर बिखर जाती हैं, जल्दी आग पकड़ लेती हैं. चीड़ की लिसलिसी गोंद इस आग को कहीं तेजी से भड़का देती है.
‘कंगना, रानी (प्रतिभा सिंह) को तो आराम से हरा देती. लेकिन राजे का बेटा आ गया है, मुकाबला मजेदार हो गया है,’ वर्दीधारी पदम सिंह कहते हैं. वे अपने सहकर्मियों समेत आग को बुझाने आए हैं लेकिन समझ नहीं आ रहा कि शुरू कहां से करें.
यह लंबी रात है. पहाड़ की राजनीति की तरह चीड़ का जंगल भी दहक रहा है.