यूपी: पूर्वांचल की इन पांच सीटों पर एनडीए और ‘इंडिया’ गठबंधन के बीच है कड़ी टक्कर

उत्तर प्रदेश के आखिरी चरण में 1 जून को 13 लोकसभा सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे. ये सभी सीटें पूर्वांचल क्षेत्र की हैं, जहां पिछले चुनाव में भाजपा की स्थिति मज़बूत थी. हालांकि, इस बार तस्वीर थोड़ी अलग नज़र आ रही है.

नरेंद्र मोदी, अखिलेश यादव और मायावती. (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

नई दिल्ली: देश के चुनाव के साथ ही उत्तर प्रदेश में भी अब आखिरी चरण का चुनाव बचा है. यहां 1 जून को 13 लोकसभा सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे. ये सभी 13 सीटें पूर्वांचल क्षेत्र की हैं, जिसमें महाराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, घोसी, सलेमपुर, बलिया, गाज़ीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र शामिल हैं.

मालूम हो कि पिछले 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) इन13 में से 11 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. 9 सीटे भाजपा की झोली में आईं थीं, जबकि दो सीटें उसके सहयोगी अपना दल (एस) ने जीती थीं. तब विपक्ष में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने वाली  बहुजन समाज पार्टी को दो सीट पर जीत मिली थीं.

हालांकि पूर्वांचल की कई ऐसी सीटें भी हैं, जहां भाजपा के लिए जीत आसान नहीं रही. कई दौर की गिनती में पिछड़ने के बाद आखिरकार पार्टी जीत तो गई, लेकिन मार्जिन बहुत कम रहा. जिसे लेकर विपक्ष ने चुनाव प्रभावित करने और धांधली जैसे कई आरोप भी लगाए.  पेश है पूर्वाचंल की ऐसी ही पांंच सीटों का चुनावी समीकरण, जहां भाजपा ने पिछली बार या तो कम मार्जिन से जीत हासिल की या बड़े अंतर से उसे हार का सामना करना पड़ा.

 

निर्वाचन क्षेत्र

विजयी प्रत्याशी

पार्टी

वोटों का अंतर

बलिया विरेंद्र सिंह मस्त भाजपा 15,519
गाज़ीपुर अफजाल अंसारी बसपा 1,19,392
घोसी अतुल राय बसपा 1,22018
चंदौली डॉ. महेन्द्र नाथ पाण्डेय भाजपा 13,959
रॉबर्ट्सगंज पकौड़ी लाल कौल अपना दल 54,336

बलिया

सरयू और गंगा नदी के बीच बसी बागियों की धरतीबलिया सातवें चरण में मतदान के लिए तैयार है. यहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने मौजूदा सांसद वीरेंद्र सिंह ‘मस्त’ का टिकट काटकर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर को मैदान में उतारा है. वहीं समाजवादी पार्टी (सपा) की ओर से सनातन पांडेय इस सीट पर अपनी चुनौती पेश कर रहे हैं.

वैसे नीरज शेखर की राजनीति सपा से ही शुरू हुई थी, वो दो बार सपा की टिकट पर सांसद भी रहे हैं, लेकिन 2019 में भाजपा उन्हें अपने पाले में ले आई और इस बार उन्हें टिकट देकर पार्टी ने परिवारवाद को खुद ही आत्मसात कर लिया.

पिछले चुनाव को देखें, तो साल 2019 आम चुनाव में भाजपा के वीरेंद्र सिंह मस्त और सपा के सनातन पांडेय के बीच कांटे की टक्कर थी. वीरेंद्र सिंह मस्त और सनातन पांडेय के बीच महज़ 15 हजार 519 वोटों का अंतर था. वीरेंद्र सिंह को 4 लाख 69 हजार 114 वोट मिले थे, जबकि सनातन पांडेय को 4 लाख 53 हजार 595 वोट हासिल हुए थे. जबकि ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय स/माज पार्टी (एसबीएसपी) के उम्मीदवार विनोद को 35 हजार 900 वोट मिले थे.

जाति का प्रभाव

बलिया लोकसभा सीट का जातीय समीकरण भी दिलचस्प है. यह क्षेत्र ब्राह्मण, राजपूत, यादव बहुल है. इस सीट पर सबसे ज्यादा तीन लाख ब्राह्मण वोटरों की संख्या है. जबकि राजपूत, दलित और यादव मतदाताओं की संख्या ढाई-ढाई लाख से ज्यादा है. इस क्षेत्र में मुस्लिम वोटर भी एक लाख के करीब हैं. इस लोकसभा सीट पर भूमिहार मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी पकड़ मानी जाती है.

इस लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें आती है. गाज़ीपुर की दो विधानसभाएं- मोहम्मदाबाद और जहूराबाद के साथ बलिया की तीन विधानसभाएं- फेफना, बलिया नगर और बैरिया  इसमें शामिल हैं. पिछले विधानसभा चुनाव के नतीज़े, यहां भाजपा के प्रतिकूल रहे थे. पार्टी को यहां सिर्फ एक सीट बलिया नगर में जीत मिली थी.  इस सीट के अलावा भाजपा बाकी चार सीटों पर पस्त नज़र आई.

बलिया के कई स्थानीय निवासियों की मानें, तो ये सीट समाजवादी नेता और भारत पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सियासी जमीन रही है. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर इस सीट से 8 बार चुनाव जीते थे. उनके बेटे नीरज पर भी क्षेत्रवासियों ने बहुत भरोसा किया था. लेकिन 2019 में उनके पाला बदल लेने से लोगों में उनके प्रति विश्वास और पिता चंद्रशेखर के लिए सहानुभूति भी खत्म सी हो गई है.

यहां के एक स्थानीय पत्रकार ने द वायर को बताया, ‘नीरज शेखर को लेकर प्रदेश में कोई खास हवा नहीं, वो अगर जीतेंगे भी तो मोदी के नाम पर ही जीतेंगे. वीरेंद्र सिंह मस्त ने अपने पांच साल के कार्यकाल में कई काम किए थे, लेकिन नीरज शेखर ने यहां से सांसद रहते हुए कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया. यहां तक की उनके पिता ने भी बड़े राष्ट्रीय नेता होने के बावजूद इस इलाके के विकास के लिए कुछ ख़ास काम नहीं किया था. लोग भी समझते हैं अब इस बात को. सनातन पांडेय स्थानीय नेता हैं, पिछले चुनाव में भी वो जीत की दहलीज़ पर आकर हार गए थे. इस बार कांटे का मुकाबला होगा.’

घोसी 

बुनकरों का गढ़ माने जाने वाले मऊ जिले की घोसी लोकसभा सीट इस बार सुर्खियों में बनी हुई है. एनडीए ने यहां सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के पुत्र अरविंद राजभर को टिकट दिया है, तो वहीं ‘इंडिया’ गठबंधन की ओर से समाजवादी पार्टी के राजीव राय इस सीट पर अपनी उम्मीदवारी पेश कर रहे हैंं.

वैसे ओम प्रकाश राजभर भी पाला बदलने में माहिर हैं. योगी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री रहे ओम प्रकाश राजभर ने 2022 चुनावों के ठीक पहले उन्होंने एनडीए छोड़कर सपा का साथ थाम लिया था. सपा की हार के बाद इन्होंने फिर पाला बदला और भाजपा के एनडीए में शामिल हो गए. इस बार उनकी घर वापसीका इनाम भी उन्हें मिला, पार्टी ने उनके बेटे को लोकसभा का टिकट दे दिया.

घोसी सीट का जातीय समीकरण

घोसी सीट का जातीय समीकरण देखें, तो यहां राजभर समुदाय की अच्छी खासी तादाद है, लेकिन इस सीट पर मुख्तार अंसारी से सहानुभूति रखने वाले मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी अच्छी संख्या है. यहां लगभग दो लाख के करीब राजभर समुदाय के लोग हैं, तो वहीं साढ़े तीन लाख से ऊपर मुस्लिम वोटर हैं. चौहान समाज के लोग भी यहां करीब दो लाख हैं. वहीं एक-एक लाख के करीब भूमिहार, ब्राह्मण और वैश्य वोटर हैं. इस क्षेत्र में सबसे अधिक यहां दलित मतदाता हैं, जिनकी संख्या पांच लाख के करीब है, यही कारण है कि पिछली बार यहां से बहुजन समाज पार्टी के अतुल राय को अच्छी जीत मिली थी.

इस बार यहां से बसपा ने बालकृष्ण चौहान को मैदान में उतारकर पिछड़े वोटों को बटोरने की कोशशि की है. चौहान 1999 में भी बसपा की टिकट पर यहां से संसद पहुंच चुके हैं. हालांकि यहां स्थानीय लोगों की मानें, तो मुख्य मुकाबला एनडीए और ‘इंडिया’ गठबंधन का ही है.   

कई लोग द वायर को बताते हैं कि घोसी विधानसभा क्षेत्र में मुख्तार अंसारी के परिवार का असर है. मऊ से उनके बेटे अब्बास अंसारी सुभासपा की ओर से विधायक हैं. लेकिन मुख्तार को श्रद्धांजलि देने अखिलेश यादव घर तक गए थे. इसलिए सपा इसे मुस्लिम वोटों की गोलबंदी के अवसर के तौर पर देख रही है.

इसके अलावा समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और प्रवक्ता राजीव राय भूमिहार समाज से आते हैं, जिसका फायदा यहां सपा को मिल सकता है. ये राजीव राय का दूसरा चुनाव है. साल 2014 में भी उन्हें सपा ने यहां से चुनाव लड़वाया था. तब उन्हें अतुल राय से हार का सामना करना पड़ा था.

गाज़ीपुर

लहुरी काशी‘  के नाम से मशहूर गाज़ीपुर लोकसभा सीट उत्तर प्रदेश की चर्चित लोकसभा सीटों में से एक है. इसकी चर्चा की एक प्रमुख वजह इस साल मार्च के महीने में बांदा जेल में हुई मुख्तार अंसारी की मौत भी है. मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी ने साल 2019 में सपा-बसपा गठबंधन की टिकट पर यहां से चुनाव जीता था. हालांकि इस बार वो चुनाव से पहले ही बसपा छोड़ सपा में शामिल हो गए, जिसके बाद सपा ने उन्हें यहांं से दोबारा प्रत्याशी बना दिया.

भाजपा ने यहां मनोज सिन्हा के करीबी पारस नाथ राय को उतारा है. जबकि आम आदमी पार्टी छोड़कर आए डॉक्टर उमेश कुमार सिंह बसपा के उम्मीदवार हैं. इस बार गाज़ीपुर में कुल 10 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. इसमें अफजाल अंसारी की बेटी नुसरत अंसारी भी निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं. इसकी वजह उनके पिता पर चल रहा मुकदमा है, जिसमें उन्हें एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट ने चार साल की सज़ा सुनाई है. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने सजा पर रोक तो लगा दी है, लेकिन ये मामला अभी हाईकोर्ट में सुना जाएगा.

लेकिन मुकाबला भाजपा, सपा और बसपा के बीच ही है. वैसे इस सीट का इतिहास रहा है कि इस पर एकछत्र राज किसी ने नहीं किया. हालांंकि इस पर अंसारी परिवार का प्रभाव जरूर माना जाता है. अब मुख्तार अंसारी की मौत के बाद उसे अब सहानुभूति वोट मिलने का भरोसा है.

पांच विधानसभा सीटों पर सपा का कब्ज़ा

इस सीट का इतिहास देखें, तो अब तक गाज़ीपुर सीट पर कुल 17 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं. पांच बार कांग्रेस, तीन बार भाजपा, तीन बार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, तीन बार समाजवादी पार्टी और जनता पार्टी, स्वतंत्र पार्टी और बसपा ने एक-एक बार जीत हासिल की है. 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बसपा का गठबंधन था.

इस सीट के तहत छह विधानसभा क्षेत्र जखनिया (सुरक्षित), सैदपुर (सुरक्षित), गाज़ीपुर सदर, जंगीपुर और जामनिया आते हैं. इनमें से जखनिया को छोड़कर बाकी की सभी सीटों पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है. जखनिया में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के त्रिवेणी राम विधायक हैं.

आंकड़ों के गणित को समझें, तो इस बार के चुनाव में मतदाताओं की संख्या के लिहाज से गाज़ीपुर प्रदेश की सबसे बड़ी लोकसभा सीट है. गाज़ीपुर में 2024 में 20 लाख 74 हजार 883 मतदाता हैं. यहां मुस्लिम, कुशवाहा और भूमिहार काफी महत्वपूर्ण वोटर हैं. इस सीट पर 3 लाख से अधिक मुस्लिम मतदाता आबादी है. कुशवाहा समाज के वोटरों की संख्या करीब ढाई लाख है. करीब डेढ़ लाख बिंद, 2 लाख राजपूत, 1 लाख ब्राह्मण और एक लाख वैश्य वोटर भी गाज़ीपुर लोकसभा सीट पर हैं, जो निर्णायक हैं.

चंदौली

पूर्वांचल के धान का कटोरा कहे जाने वाले चंदौली में भी आखिरी चरण में एक जून को मतदान होगा. समाजवादी पार्टी ने यहां से पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक रह चुके वीरेंद्र सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है. जबकि भाजपा ने मोदी सरकार में पहले कौशल विकास और अब भारी उद्योग मंत्रालय का दायित्व संभाल रहे यहां से मौजूदा सांसद डॉ. महेन्द्र नाथ पाण्डेय एक बार फिर चुनाव मैदान में उतारा हैं. वहीं बसपा की ओर से सत्येन्द्र कुमार मौर्य यहां से चुनाव लड़ रहे हैं.

पिछले चुनाव 2019 की बात करें, तो भाजपा के महेन्द्रनाथ पांडेय ने सपा के संजय सिंह चौहान को हराया जरूर था, लेकिन महज़ 13, 959 मतों से. इस चुनाव में महेन्द्रनाथ पांडेय को कुल 5,10,733 वोट मिले थे जबकि सपा के संजय सिंह चौहान को 4,96,774 वोट से संतुष्ट होना पड़ा था.

चंदौली लोकसभा सीट की पांच विधानसभाओं में मुगलसराय, सकलडीहा, सैयदराजा के साथ ही वाराणसी जिले की शिवपुर और सुरक्षित सीट अजगरा भी शामिल है. वर्तमान में चार विधानसभा सीटों पर भाजपा और सकलडीहा पर सपा का कब्जा है.

सभी प्रमुख दलों को मिल चुकी है जीत

इस सीट का इतिहास देखें, तो यहां 1957 में पहली बार हुए लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस के त्रिभुवन नारायण सिंह ने जीत दर्ज की थी. उनके सामने प्रख्यात समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया मैदान में थे. चंदौली लोकसभा सीट पर सभी प्रमुख दलों को जीत मिल चुकी है. यहां से कांग्रेस, सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी, जनता दल, भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी को जीत मिल चुकी है. इस सीट बीजेपी 5 बार तो कांग्रेस चार चुनाव जीत चुकी है.

इस सीट के जातीय समीकरण पर नज़र डालें, तो यहां सबसे ज्यादा करीब 2 लाख 75 हज़ार संख्या यादव वोटरों की संख्या है, जो यहां की राजनीति में एक निर्णायक किरदार अदा करते हैं. यादवों के बाद दलित बिरादरी है, जिनकी संख्या करीब दो लाख साठ हज़ार के आसपास है. इसके बाद पिछड़ी जाति में मौर्या समाज की आबादी है, जो लगभग 1 लाख 75 हजार हैं. इसके अलावा ब्राहम्ण, राजपूत, राजभार और मुस्लिम आबादी भी करीब एक-एक लाख मानी जाती है.

रॉबर्ट्सगंज

सोनभद्र की रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट पर भी इस बार सबकी नज़र है. यहां से भाजपा की सहयोगी अपना दल (एस) ने मौजूदा सांसद पकौड़ी लाल कोल की बहू विधायक रिंकी कोल को टिकट दिया है, जबकि समाजवादी पार्टी में भाजपा से घर वापसीकरने वाले उम्मीदवार पूर्व सांसद छोटेलाल खरवार को इंडिया’ गठबंधनका उम्मीदवार बनाया गया है.

पिछले चुनाव में भाजपा की सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) सांसद पकौड़ी लाल कोल ने समाजवादी पार्टी के भाई लाल को 54,336 वोटों से हराया था. पकौड़ी लाल कोल को 447,914 वोट, जबकि भाई लाल को 3,93,578 वोट मिले थे. हालांकि पहले समाजवादी पार्टी में रहे पकौड़ी लाल कोल को सपा की टिकट पर यहां से 2009 में जीत और 2014 में हार का मुंह देखना पड़ा था.

इस सीट पर साल 1962 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस पार्टी के राम स्वरूप सांसद चुने गए थे. इसके बाद जनता पार्टी, बसपा, जनता दल, सपा समेत सभी दलों को यहां के लोगों ने मौका दिया है. लेकिन आज तक यहां से कभी कोई महिला सांसद नहीं चुनी गई है.

विधानसभा में भाजपा की मजबूत स्थिति 

रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट के अंतर्गत पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिसमें रॉबर्ट्सगंज, ओबरा (सुरक्षित), दुद्धी (सुरक्षित) घोरावल, और चकिया (सुरक्षित) आती हैं. इसमें चकिया विधानसभा सीट चंदौली जिले में है, और बाकी चारों विधानसभाएं सोनभद्र जिले का हिस्सा हैं. रॉबर्ट्सगंज में भाजपा बहुत मजबूत स्थिति में है. यहां के सभी पांचों विधानसभा में उसी का कब्जा है.

रॉबर्ट्सगंज में दलित आबादी ज्यादा है. यहां अनुसूचित जाति मतदाताओं की संख्या करीब चार लाख है. जबकि अनुसूचित जनजाति वोटर 1 लाख 75 हज़ार के आस-पास हैं. यहां यादव, ब्राह्मणों और कुशवाहा समुदाय की संख्या करीब एक-एक लाख के करीब है. जबकि 60 हजार के लगभग मुस्लिम मतदाता हैं. पटेल, राजपूत, कुशवाहा समाज के लोग भी यहां 50 हज़ार से 1 लाख के बीच की संख्या में हैं.

गौरतलब है कि एक जून को मतदान का आखिरी चरण है और चार जून को नतीजों के बाद नई लोकसभा की पूरी तस्वीर साफ हो जाएगी. पूर्वांचल हमेशा से प्रदेश की राजनीति में अहम रोल अदा करता है. यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बनारस को अपना संसदीय क्षेत्र चुना था.