अमित शाह बोले- आतंक के आरोपियों के परिजनों को नौकरी नहीं, कश्मीरी नेताओं ने कहा- सामूहिक सज़ा

भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर के उन परिवारों को सरकारी नौकरी से वंचित करने की बात कही है, जिन परिवारों का कोई सदस्य आतंकवाद या अलगाववाद से जुड़ा हो. जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियों ने शाह की नीति को मनमाना बताते हुए कहा है कि किसी एक सदस्य के लिए पूरे परिवार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह. (फोटो साभार: फेसबुक/@Amit Shah)

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के एक हालिया बयान की आलोचना हो रही है. पीटीआई को दिए इंटरव्यू में शाह ने कहा था, ‘कश्मीर में हमने फैसला लिया है कि अगर कोई आतंकी संगठन में शामिल होता है तो उसके परिवार के सदस्यों को सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी. इसी तरह अगर कोई पत्थरबाजी करता है तो उसके परिवार के सदस्यों को भी सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी.’

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए लेकिन अंत में सरकार की जीत हुई.

कश्मीरियों को सामूहिक सजा दे रही है सरकार- महबूबा मुफ्ती

पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने शाह के बयान को जम्मू -कश्मीर के लोगों के लिए ‘सामूहिक सजा’ करार दिया है.

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में पीडीपी प्रमुख ने कहा है, ‘उन्हें हमें सज़ा देने के लिए बस एक बहाना चाहिए. हमें नई नौकरियां देने के बजाय, उन्होंने बिना किसी सबूत या सुनवाई के काल्पनिक आधार पर हमारे सैकड़ों कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है. पिछले पांच सालों में सभी भर्ती प्रक्रियाएं घोटालों से घिरी हुई हैं और रद्द कर दी गई हैं. इससे कड़ी मेहनत करने वाले अभ्यर्थियों को नौकरी के अवसरों से वंचित होना पड़ा है. संक्षेप में कहें, तो वे (केंद्र सरकार) जम्मू-कश्मीर के लोगों को सामूहिक सजा दे रहे हैं. बलात्कारी, हत्यारे और अन्य अपराधी पूरे देश में उनके लिए प्रचार कर रहे हैं और हमारे निर्दोष लोग जेलों में सड़ रहे हैं.’

कुछ क्षेत्रीय पार्टी के नेताओं ने कहा है कि केंद्र सरकार ने 2019 से ही इस फैसले को घाटी में लागू कर दिया है. सरकार न केवल नौकरी के इच्छुक लोगों को मंजूरी देने से इनकार कर रही है, बल्कि अगर उनके परिवार का कोई सदस्य आतंकवाद या अलगाववाद से जुड़ा हुआ पाया जाता है, तो उन्हें इसी आधार पर यात्रा से जुड़े दस्तावेज देने से भी इनकार कर दे रही है.

‘पहले देश के युवाओं से किए वादे को पूरा करें’

महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि गृह मंत्री पहले देश के युवाओं से किए गए वादों के बारे में सोचें और फिर कश्मीर के बारे में सोचें. मुफ्ती पूछती हैं कि क्या 2014 के चुनावों के दौरान किए गए वादों के अनुसार देश के सभी युवाओं को नौकरी दे दी गई?

वह कहती हैं, ‘उन्होंने हर साल दो करोड़ नौकरी देने का वादा किया था, जिसका मतलब है कि अब तक 20 करोड़ नौकरियां दे दी जानी चाहिए थीं. पिछले 50 साल में देश में इतनी बेरोजगारी कभी नहीं थी, जितनी की आज है. उन्हें पहले देश के युवाओं से किए गए अपने चुनावी वादों को पूरा करना चाहिए और फिर हम कश्मीरियों के बारे में सोचना चाहिए.’

पूर्व मंत्री को नहीं दिया जा रहा पासपोर्ट!

वरिष्ठ पीडीपी नेता और पूर्व मंत्री नईम अख्तर ने भी अमित शाह के बयान की निंदा की है. उन्होंने कहा है कि ऐसी नीति कश्मीर को बहुत प्रभावित कर सकती है.

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में अख्तर ने बताया है कि उन्हें इसी नीति का इस्तेमाल कर विदेश जाने से रोक दिया गया है. वह कहते हैं, ‘इसकी कोई कानूनी जांच नहीं है, आप इसे किसी पर भी लागू कर सकते हैं. मुझे पासपोर्ट देने से मना कर दिया गया है, मैं लुकआउट नोटिस पर हूं. मैं आठ साल से अपने परिवार (यूके में) से मिलने नहीं जा पाया हूं.’

नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रवक्ता तनवीर सादिक ने कहा है, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है. अगर परिवार का एक सदस्य भटक जाता है, तो दूसरे सदस्यों या पूरे परिवार को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए. इस बारे में अदालत को फैसला करने दें.’ सादिक सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए पूछते हैं, ‘अगर यह भारत में कहीं और लागू नहीं है, तो कश्मीर में क्यों?’