गोरखपुर: सहसरांव के प्राइमरी स्कूल के ठीक बगल स्थित मैदान में शनिवार की शाम कोई नहीं था. मैदान के एक तरफ लगे लोहे के पांच पाइप अभी भी मौजूद हैं लेकिन उन पर लहराते झंडे अब नहीं हैं. सिर्फ एक पाइप पर पुराना झंडा अभी भी लटक रहा है. यहां ईंटों को सफेद चूने से रंग कर ‘सैनिक कैरियर सेंटर’ लिखा गया है जिसे कोशिश करने पर पढ़ा जा सकता है. मैदान के दूसरे छोर पर फिजिकल ट्रेनिंग करने के लिए बने लोहे के पाइप जंग से काले पड़ते जा रहे हैं.
प्राइमरी स्कूल के परिसर में खेल रहीं पांच-छह लड़कियों में सबसे छोटी मोनिका ने कहा कि ‘अब यहां कोई नहीं आता. सुबह कैप्टन साहब आते हैं. उनके साथ एक दो और लोग होते हैं जो ग्राउंड में टहलते व एक्सरसाइज करते हैं. दो साल से यही हाल है. पहले सुबह-शाम खूब लड़के-लड़कियां आते थे. वे यहां दौड़ लगाते, रस्सी फांदते थे.’
सहसरांव का यह मैदान आज अपने को अकेला पा रहा है, लेकिन करीब 25 वर्ष तक यह नौजवानों से भरा रहता था. यह मैदान गोरखपुर से चौरीचौरा होते हुए मीठाबेल गांव के पास स्थित है. यह इस इलाके में ही नहीं यूपी के कई जिलों मशहूर था. इसका नाम बिहार और छत्तीसगढ़ तक पहुंच गया था. आज भी चौरीचौरा से नई बाजार जाने वाली सड़क पर आप किसी से ‘कैप्टन’ और ‘ग्राउंड’ के बारे में पूछेंगे तो वह झट से बता देगा.
नई बाजार के पहले बाइक पर सवार दो युवकों से कैप्टन साहब के घर का पता पूछा तो उसमें से एक सुमित ने कहा, ‘छह किलोमीटर दूर है उनका घर. मैं भी उनके ग्राउंड में अपनी बहन के साथ प्रैक्टिस कर चुका हूं.’
ग्राउंड ने सिर्फ सैनिक ही नहीं राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी भी दिए
सहसरांव ग्राउंड के एक कोने पर लगा बोर्ड और उसके साथ पत्थर पर लिखी इबारत इसके मशहूर होने की कहानी बता देगी. बोर्ड बताता है कि यह ग्राउंड दरअसल ‘सैनिक कैरियर सेंटर हैं’ और यह थल सेना, नौ सेना,पुलिस, अर्धसेना वायु सेना, आरपीएफ, एसएसबी, सीआरपीए, पीएसी जैसी भर्तियों का प्लेटफार्म है.
पत्थर पर दर्ज है- स्थापना वर्ष 1993. प्राप्त उपलब्धियां- कार्यरत लड़के- 3800, लड़कियां 28. राष्ट्रीय स्तर के खिलाडी- पांच. सबसे आखिर में लिखा है- खेलोगे कूदोगे बनोगे नवाब, हूनर अपनी पहचानो, करो दिल पर राज.’
यह ग्राउंड रिटायर्ड कैप्टन आद्या प्रसाद दुबे की खोज थी. उन्होंने 25 वर्ष पहले नौजवानों को सेना और अर्द्धसैनिक बलों में भर्ती होने के लिए इस ग्राउंड में पसीना बहाने को प्रेरित किया. कुछ ही वर्षों में यहां सुबह-शाम सैकड़ों नौजवान सेना में भर्ती के लिए दौड़ने लगे और शारीरिक अभ्यास करने लगे.
युवाओं की सफलता की कहानियों ने कैप्टन आद्या प्रसाद दुबे और इस ग्राउंड को मशहूर कर दिया लेकिन अग्निवीर योजना के तहत सेना में चार वर्ष की भर्ती की घोषणा के बाद नौजवानों का ऐसा मोहभंग हुआ कि आज यह सेंटर बंद हो गया है और अब यहां कोई नौजवान अपने सपनें को पूरा करने के लिए नहीं आता.
बेरोजगार युवाओं को सेवानिवृत्त कैप्टन ने दिखाया सपना
कैप्टन आद्या प्रसाद दुबे का घर इस ग्राउंड से एक किलोमीटर पहले मीठाबेल गांव में है. शनिवार की शाम वह अपने घर नहीं थे. उन्होंने फोन पर इस स्थल की 25 साल की कहानी को बयां किया.
उन्होंने बताया, ‘1992 में रिटायर होने के बाद जब गांव आए तो देखा कि यहां के नौजवान बेरोजगारी के कारण या तो इधर-उधर घूम रहे हैं या मजदूरी करने के लिए बड़े शहरों में चले जा रहे हैं. गरीबी के कारण वे ज्यादा से ज्यादा इंटर (12वीं) तक पढ़ाई कर पाते हैं. हमने यह भी देखा कि यहां के नौजवान शारीरिक सौष्ठव में हरियाणा या दक्षिण भारत के नौजवानों से कम नहीं है लेकिन सही मार्गदर्शन के अभाव में अपने लिए करिअर नहीं चुन पा रहे हैं. मैं भी गरीबी से लड़ते हुए सेना में पहुंचा था और अपना मुकाम पाया था. मुझे लगा कि यदि इन युवाओं को सेना और अर्ध सैनिक बलों में भर्ती के लिए प्रेरित किया जाए तो शायद स्थिति बदल सकती है.’
वह आगे बताते हैं, ‘शुरू में बहुत प्रयास के बाद चार-पांच लड़के प्रेरित हुए. उनके साथ मीठाबेल के करीब 300 वर्ग मीटर के एक छोटे से खाली पड़े मैदान में दौड़ का अभ्यास शुरू कराया. मैं सुबह चार बजे ग्राउंड पर पहुंच जाता था. दौड़, पीटी के साथ-साथ सावधान-विश्राम का अभ्यास कराने लगा. छह महीने तक 1,600 मीटर दौड़ का अभ्यास कराया. कुछ दिन बाद ही गोरखपुर के कूड़घाट में सेना की भर्ती हुई. उसमें हमारे साथ अभ्यास कर रहा नौजवान चयनित हुआ. वह थर्ड डिवीजन में इंटर पास था. उसने नौकरी की उम्मीद छोड़ दी थी लेकिन कुछ महीनों की शारीरिक अभ्यास ने उसमें नई ऊर्जा भरी और वह सेना में भर्ती हो गया. इस युवक के साथ ही कुछ और युवक का चयन रेलवे सुरक्षा बल में भी हुआ. इसके बाद अधिक संख्या में नौजवान आने लगे. संख्या 50 तक पहुंच गई.’
एक खबर के बाद बनता गया काफ़िला
कैप्टन बताते हैं कि कैसे एक दैनिक अखबार में छपी खबर ने माहौल बदल दिया.
वह कहते हैं, ‘एक दैनिक अखबार में इस बारे (युवाओं की सेना में नौकरी लगने की) में खबर छपी. उसके बाद यहां पर पूर्वांचल के जिलों से लड़के आने लगे. बिहार और छत्तीसगढ़ तक से लड़के आए. लड़कियों ने रुचि दिखाई तो तो उनको भी फिजिकल ट्रेनिंग में शामिल किया गया. अब यह ग्राउंड छोटा पड़ने लगा था. एक बड़े ग्राउंड की खोज शुरू हुई तो सहसरांव की बंजर भूमि काम की नजर आई. सहसरांव के ग्राम प्रधान ने भी सहयोग किया. दो सप्ताह में इसे साफ कर अभ्यास के लिए उपयुक्त ग्राउंड में बदल दिया गया.’
कैप्टन आद्या प्रसाद दुबे प्रैक्टिस कराने के लिए कोई शुल्क नहीं लेते थे. नाश्ते, कपड़े, जूते, मोजे के खर्च नौजवान उठाते. इसमें भी लड़कों की मदद की जाती थी. दुबे के अनुसार, उन्होंने फिजिकल ट्रेनिंग का मॉड्यूल इस तरह तैयार किया कि नौजवान 1,600 मीटर की दौड़ को पांच मिनट से भी कम समय में निकाल लें. इससे यहां के नौजवानों का चयन होना आसान हो गया. लेकिन बाद में उन्होंने पाया कि लिखित परीक्षा में नौजवान पीछे रह जा रहे हैं. तब उन्होंने पढ़ाई पर भी जोर देना शुरू किया.
दुबे बताते हैं कि ढाई दशक में 3,800 लड़के और 28 लड़कियों का चयन सेना व अर्धसैनिक बल में हुआ. कोरोना काल में भी यह सेंटर काम करता है. सेंटर की शोहरत सुन कई नेता भी आए और उन्होंने यहां स्टेडियम बनाने का वादा किया जो अभी तक पूरा नहीं हुआ.
ट्रेनिंग लेने वाले पिछड़े व दलित नौजवान अधिक
इस सेंटर पर ट्रेनिंग लेने वाले नौजवानों में सबसे अधिक पिछड़े व दलित समाज के थे.
दुबे के अनुसार, सवर्ण समाज के युवकों ने कम रुचि दिखाई. सवर्ण समाज के जो युवक यहां आए उनमें शरीरिक मजबूती कम थी और वे कोर्स पूरा करने के पहले ही चले गए.
वो बताते हैं, ‘सब कुछ ठीक चल रहा था कि जून 2022 के दूसरे सप्ताह में सेना में अग्निवीर योजना की घोषणा हुई. इस घोषणा ने सहसरांव के सैनिक सेंटर को जबर्दस्त धक्का दिया. यहां आने वाले नौजवानों की संख्या कम होती गई और कुछ महीनों बाद पूरी तरह से खत्म हो गई. सेंटर बंद हो गया.’
अब सेना में नहीं जाना चाहते नौजवान: कैप्टन दुबे
दुबे सेंटर के बंद होने का कारण अग्निवीर योजना को बताते हैं. उनका कहना है कि नौजवानों की अब सेना में भर्ती होने की रुचि खत्म हो गई है. मैंने बहुत कोशिश की कि नौजवान आते रहें लेकिन वे कहते हैं कि चार वर्ष के लिए सेना में रहकर फिर बेरोजगार होने से बेहतर है कि कोई और काम ढूंढ लें.
कैप्टन दुबे अग्निवीर योजना पर टिप्पणी करने से बचते नजर आए. उन्होंने कहा, ‘यह सरकार की सोच है. लेकिन यह सच है कि इस योजना से नौजवानों में निराशा आई है. उनमें सेना में भर्ती होने का चार्म खत्म हो गया है.’
सहसरांव ग्राउंड के सामने सड़क पार रंजीत निषाद की दवा की दुकान है. वह भी कहते हैं कि अग्निवीर योजना की वजह से यहां बच्चों का आना बंद हो गया. दूर-दूर से बच्चे आकर यहां से नई बजार तक किराये के मकान में रहते थे और सेना में भर्ती की तैयारी करते थे.
सहसरांव के सेंटर से लौटते हुए रास्ते में एक नलकूप पर नहाने जा रहे दो युवकों से मुलाकात हुई. इनमें से एक आदर्श ने कहा कि उसने भी कुछ दिन तक इस सेंटर पर प्रैक्टिस की है. उसने फरवरी महीने में सिपाही भर्ती परीक्षा भी दी लेकिन पेपर लीक के कारण परीक्षा रद्द हो गई. आदर्श ने बताया कि उनके ग्रुप के 15-20 लड़के कैप्टन साहब के ट्रेनिंग सेंटर पर प्रैक्टिस करते थे. बिहार से भी लड़के तैयारी करने आते थे. अग्निवीर योजना के बाद अब वहां कोई नहीं जाता है.
अग्निवीर योजना पर आदर्श ने टिप्पणी करते हुए कहा, ‘पहले 35 वर्ष नौकरी रहती थी. अब केवल चार वर्ष में खत्म हो जाएगी. उसके बाद की कोई गारंटी नहीं है. इससे तो एक पूरी पीढ़ी बर्बाद हो जाएगी.’
बातचीत के दौरान आदर्श का दोस्त जमशेद आ गए. आदर्श ने कहा कि इन्होंने भी सिपाही भर्ती परीक्षा दी थी. अब फिर से तैयारी कर रहे हैं.
आदर्श का कहना था, ‘इस चुनाव में बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है. जो भी लड़के भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, वे भाजपा को वोट नहीं देंगे. हमको लगता है कि इस बार परिवर्तन हो जाएगा.’
भैंस चरा रहे राम नक्षत्र पासवान भी बातचीत में शामिल हो गए. बोले, ‘कैप्टन साहब इतना मेहनत कर रहे थे लेकिन अब सब बेकार हो गया. क्या करें, सरकार ऐसा है कि बच्चे सब बेकार हो गए.’
पासवान ने सेंटर के बंद होने का कारण बताते हुए कहा, ‘ई बताइए आप इहां काहें खड़िआइल बांनी. एहीलिए न कि यहां पानी मिलत बा. इहां पानी नाहीं रहत तो आप इहां रूकतीं? नाहीं ना. इहे हाल सैनिक सेंटर के साथ भईल. जब भर्तिए नाहीं होई तो वहां लड़िके का करे जइहें.’ (आप बताएं कि यहां क्यों खड़े हैं. इसलिए न कि यहां आपको पानी मिल रहा है. यदि यहां पानी नहीं रहता तो आप यहां नहीं रुकते. यही हाल सैनिक सेंटर के साथ हुआ. जब भर्ती नहीं होगी तो वहां लड़के क्यों जाएंगे.)
राम नक्षत्र पासवान आगे आगे कहा, ‘ई सरकार में बच्चा सब बेरोजगार हो गईलन. दस साल हो गईल कौनो भर्ती नाहीं आइल. जौन पेड़ के लगावल जाला कि ओसे हमके छाया मिले. ओ पेड़ से छाया नाहीं मिले ते ओके काटी देहल ठीक है. समझनी की नाहीं. आप लोगन त समझदार हईं.’ (इस सरकार में नौजवान बेरोजगार हैं. दस वर्ष हो गया कोई भर्ती नहीं आई. हम पेड़ इसलिए लगाते हैं ताकि उससे छाया मिले. यदि पेड़ से छाया न मिले तो उसे काट देना ही ठीक है. समझे कि नहीं. आप लोग तो समझदार हैं.)
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)
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