नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के स्कॉलर शरजील इमाम को दिल्ली हाईकोर्ट ने ज़मानत दे दी है. इमाम पर आरोप है कि उन्होंने दिल्ली के जामिया नगर और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कथित राजद्रोही भाषण दिए थे.
जनवरी 2020 में गिरफ्तार किए गए इमाम चार साल से ज़्यादा समय से जेल में हैं. उनके खिलाफ़ दर्ज किसी भी मामले में उन्हें दोषी नहीं ठहराया गया है. शरजील इमाम को जो जमानत मिली है वो गिरफ्तार व्यक्ति को तब मिलती है, जब पुलिस अपनी जांच पूरी करने में विफल हो जाती है.
लाइव लॉ के अनुसार, शरजील इमाम ने कोर्ट से इस आधार पर जमानत की मांग की थी कि जो आरोप उन पर लगे हैं, उस अपराध में अधिकतम सजा सात साल की होती है और वह इससे आधी से अधिक अवधि जेल में बिता चुके हैं.
Statutory Bail has been granted to my brother Sharjeel @_imaams by Delhi High Court in the FIR No. 22/2020 registered by Delhi Police.
Now 1 more case remains in Delhi. pic.twitter.com/hY3ReEcCUP
— Muzzammil Imam | مزمل إمام (@imammuzzammil) May 29, 2024
हालांकि, हाईकोर्ट की इस जमानत के बाद भी शरजील इमाम जेल से बाहर नहीं आ पाएंगे क्योंकि उन पर दिल्ली दंगों के कथित षड्यंत्र वाले केस में यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) के तहत आरोप लगाए गए हैं.
ट्रायल कोर्ट ने खारिज की थी जमानत याचिका
लाइव लॉ के अनुसार, 17 फरवरी को ट्रायल कोर्ट ने यह कहते हुए इमाम की जमानत याचिका खारिज कर दी थी कि उनके भाषणों और गतिविधियों ने ‘जनता को लामबंद किया’ जिससे पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगे हुए.
दिल्ली पुलिस ने आरोप लगाया था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय क्षेत्र में इमाम के भाषण भड़काऊ थे.
भाषण वायरल होने के बाद पुलिस ने पुलिस ने इमाम के खिलाफ़ कार्रवाई की. कुछ ही दिनों में उत्तर प्रदेश, दिल्ली, असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में उनके खिलाफ पांच एफआईआर दर्ज की गईं. जब उन्होंने आत्मसमर्पण किया तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
इमाम आईआईटी ग्रेजुएट और पीएचडी स्कॉलर हैं. उनके परिवार ने इस साल की शुरुआत में द वायर को बताया था कि इमाम को सिविल सोसाइटी द्वारा नजरअंदाज किया गया है.
इमाम के छोटे भाई मुजम्मिल ने द वायर से बात करते हुए कहा, ‘उनकी ज़िंदगी के चार साल बर्बाद हो गए. अगर वो बाहर होते तो और पढ़ सकते थे, और रिसर्च कर सकते थे. उन्होंने अब तक अपनी पीएचडी पूरी नहीं की है. लेकिन उनका हौसला कम नहीं हुआ है. वो मुस्कुराते हैं, अम्मी को उम्मीद बंधाते रहते हैं कि सब ठीक हो जाएगा.’
उनका कहना था, ‘जेल में क़ैद किसी भी राजनीतिक कैदी के परिवार के लिए स्थिरता चली जाती है. मेरी मां के लिए उनकी जिंदगी बस हम दोनों भाई हैं. अब तो एक तरह से जिंदगी ठहर-सी गई है.’