दिल्ली के अस्पताल की आग में खोई परिवार की रोशनी; पिछले बरस नवजात खोया, इस बरस बच्ची

पूर्वी दिल्ली के विवेक विहार स्थित बेबी केयर न्यू बॉर्न हॉस्पिटल में लगी आग में साहिबाबाद के राज कुमार की इकलौती संतान, उनकी पंद्रह दिनों की बेटी नहीं रही. पिछले साल एक सरकारी अस्पताल में उचित सुविधाओं के अभाव में अपने पहले बच्चे को खोने वाले राज कुमार इस बार बेटी के इलाज में कोई कोताही नहीं रखना चाहते थे.

पूर्वी दिल्ली के विवेक विहार स्थित बेबी केयर न्यू बॉर्न हॉस्पिटल का जला हुआ परिसर. (सभी फोटो: श्रुति शर्मा)

नई दिल्ली: 18 मई को राज कुमार ने अपनी नवजात बच्ची के जन्म का उत्सव मनाया था. दोस्तों और रिश्तेदारों को दावत दी थी. उन्हें क्या पता था कि एक सप्ताह बाद उन्हें शव गृह में अपनी बच्ची की लाश की शिनाख्त करने के लिए बुलाया जाएगा.

पेशे से माली राज कुमार साहिबाबाद के रहने वाले हैं. इस महीने की 10 तारीख को उनकी बच्ची रूही का जन्म साहिबाबाद के एक अस्पताल में हुआ. 12 तारीख को बुखार के कारण डॉक्टर ने बच्ची को पूर्वी दिल्ली के विवेक विहार में स्थित बेबी केयर न्यू बॉर्न हॉस्पिटल रेफर कर दिया, जहां 25 मई को लगी आग की चपेट में आने से बच्ची की मौत हो गई.

इससे पहले राज कुमार ने पिछले साल अपने पहले बच्चे को खोया था. सरकारी अस्पताल में सुविधाओं की कमी के चलते जन्म के सात दिन बाद बच्चे की मौत हो गई थी. इस त्रासदी को ध्यान में रखते हुए उनका परिवार अगले बच्चे के जन्म के समय निजी अस्पताल में गया, ताकि बेहतर सुविधा मिल पाएं. इस अस्पताल को उन्होंने 7,000 रुपये प्रतिदिन दिए, लेकिन दुर्भाग्य से इस बरस फिर उन्होंने एक नवजात संतान को खो दिया.

राज कुमार की पत्नी, उमा देवी को शव मिलने तक इस हादसे की कोई जानकारी नहीं थी. वे बच्ची के घर आने का इंतज़ार कर रही थीं.

जीटीबी अस्पताल में राज कुमार.

बता दें कि बीते शनिवार-रविवार (25-26 मई) की दरमियानी रात को बेबी केयर न्यू बॉर्न हॉस्पिटल में भीषण आग लगने के कारण सात नवजात शिशुओं की मौत हो गई और पांच अन्य बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गए. शुरुआती जांच में सामने आया है कि पांच बच्चों को भर्ती करने की क्षमता रखने वाले अस्पताल में  हादसे के समय 12 बच्चों को रखा गया था.

किस कारण से आग लगी इसका पता नहीं चल सका है. दमकल विभाग के निदेशक अतुल गर्ग कहते हैं कि मुख्य कारणों का पता तभी चल पाएगा जब जांच की रिपोर्ट सामने आएगी। अभी तक कोई अन्य कारण सामने नहीं आया है जिससे यही लगता है कि आग किसी इलेक्ट्रिक फॉल्ट के चलते लगी है.’

गर्ग ने बताया, ‘शनिवार की रात 11:30 बजे आग लगने की सूचना मिलने के बाद मौके पर दमकल की कुल 16 गाड़ियां पहुंचीं, लेकिन तब तक आग की लपटें उस इमारत के ऊपरी फ्लोर और पास की दो इमारतों में भी फैल चुकी थी.’

पूर्वी दिल्ली की एक व्यस्त सड़क किनारे बना बेबी केयर सेंटर बाहर से किसी रिहायशी इमारत जैसा लगता है, जिसमें ऊपर की मंज़िल पर जाने के लिए एकमात्र रास्ता बाहर की तरफ से लगी लोहे की एक घुमावदार सीढ़ी है, जो उस रात आग की चपेट में आ गई थी.

दमकल अधिकारी के अनुसार, आग लगने के बाद अस्पताल का कोई व्यक्ति घटनास्थल पर मौजूद नहीं था जो उन्हें बता पाता कि इमारत के अंदर और कैसे प्रवेश किया जा सकता है. इसी कारण लोगों को अंदर जाकर बच्चों को निकालने में वक्त लग गया, जिससे कई बच्चों की जानें चली गईं.

परिजनों को तुरंत नहीं दी गई जानकारी 

राज कुमार का कहना है कि आग लगने की जानकारी उन्हें घटनास्थल पर पहुंचकर हुई. शनिवार की रात से अस्पताल वालों द्वारा उनके फोन का जवाब न दिए जाने के बाद वह अपनी बच्ची को वहां से घर ले जाने के लिए रविवार सुबह करीब 7:30 बजे अस्पताल पहुंचे, जहां उन्हें इस हादसे की जानकारी हुई.

आसपास के लोगों से उन्हें पता चला कि मृत बच्चों को दिलशाद गार्डन स्थित जीटीबी अस्पताल के शव गृह में रखा गया है, वहीं घायल बच्चों को इलाज के लिए एडवांस एनआईसीयू अस्पताल में भर्ती किया गया है. पहले राज कुमार घायल बच्चों के पास पहुंचे, वहां अपनी बेटी न मिल पाने के बाद वे शव गृह पहुंचे जहां पर उन्हें उनकी बच्ची मिली. उन्होंने बताया कि बच्ची इतनी बुरी तरह जली हुई थी कि पहचानना मुश्किल था.

शव गृह के बाहर द वायर की टीम से बात करते हुए उन्होंने कहा कि वह रविवार की सुबह से ही बच्ची का शव लेने के लिए रुके थे, लेकिन सोमवार दोपहर तक उन्हें शव नहीं मिला है. ‘वो कह रहे हैं कि पेपर वर्क में हुई गड़बड़ी के चलते इतनी देर हो रही है. अस्पताल वालों ने बच्ची के नाम की जगह उसकी मां का नाम लिख दिया था, और मां के स्थान पर बच्ची का,’ उन्होंने बताया।

सात मृतकों में से 5 के शव को घटना के अगले दिन यानी रविवार (26 मई) को परिजनों को दिया गया था. वहीं, अलग-अलग कारणों से दो बच्चों के शव परिजनों को सोमवार (27 मई) की शाम 5 बजे के आस-पास मिले.

अस्पताल की ओर से हादसे के अगले दिन महज़ दो या तीन परिजनों को ही फोन करके हादसे की जानकारी दी गई. बाकी लोगों को या तो समाचारों के जरिये या फिर सीधे घटनास्थल पर पहुंचकर पता चला. उनके बच्चों को वहां से कहां ले जाया गया, उन्हें इस बात की भी जानकारी नहीं थी.

जीटीबी अस्पताल के शव गृह के बाहर अपने बच्चे का शव मिलने का इंतजार कर रहे विनोद कुमार ने द वायर की टीम से शुरुआत में बात करने से इनकार कर दिया था. उन्होंने कहा कि वह थक गए हैं लोगों को एक ही बात बताते हुए. हताश स्वर में उन्होंने कहा, ‘मैं क्या करूं? अपनी पत्नी और परिवार वालों को संभालूं, फिर खुद को संभालूं, लोगों से बात करूं या यहां अपने बच्चे की बॉडी मिलने का इंतजार करूं? मेरे लिए बहुत मुश्किल है अपनी भावनाओं को काबू में रखना.’

जीटीबी अस्पताल की मॉर्चरी.

बाद में उन्होंने बताया कि उनका बच्चा एक दिन का था जब यह हादसा हुआ. शनिवार (24 मई) को बच्चे के जन्म के कुछ घंटों बाद सुबह करीब 10:15 बजे उन्होंने बच्चे को बेबी केयर हॉस्पिटल में भर्ती करवाया. अगले दिन सुबह 9:30 बजे के लगभग उनके पास अस्पताल वालों की तरफ से फोन करके बताया गया कि वहां हादसा हो गया है, जाकर अपने बच्चे का पता कर लें.

बहुत मुश्किल से अपने आंसुओं पर काबू पाते हुए विनोद ने बताया, ‘बच्चे का चेहरा इतनी बुरी तरह जला हुआ था कि वह पहचान में नहीं आ रहा था. बच्चे के हाथ में लगी नीली रंग की पाइप के चलते हमने बॉडी की पहचान की.’

उन्होंने यह भी जोड़ा कि बच्चे कि मां ने उसे नहीं देखा है. डिलीवरी के बाद मां के होश में आने से पहले ही बच्चे को बेबी केयर अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया था.

उन्होंने कहा कि पहले वे लोग उस अस्पताल में गए जहां पर घायल बच्चों का इलाज चल रहा था. बच्चे की चाची ने वहां एक घायल बच्चे को पहचाना और उसे अपना बताया, लेकिन उस बच्चे पर उसके मां-बाप पहले ही दावा कर चुके थे. विनोद के परिवार के एक सदस्य ने बताया कि बच्चे की चाची ने ही बच्चे को सबसे ज्यादा देर तक देखा था.

सारी औपचारिकता पूरी हो जाने के बाद बच्चे का शव विनोद के परिवार को सोमवार शाम 5 बजे के आस-पास मिला.

द वायर की टीम ने अन्य मृतक नवजातों के परिजनों से भी बात करने का प्रयास किया, लेकिन वे बात करने की मनोदशा में नहीं थे. हालांकि सभी ने अस्पताल प्रशासन को इस हादसे का जिम्मेदार ठहराया है.

अस्पताल की (कु) व्यवस्था

अस्पताल में भर्ती बच्चों के परिजनों से बात करने पर पता चला कि अस्पताल द्वारा किसी भी मरीज़ बच्चे के परिवार के सदस्य को बच्चों के पास नहीं रहने दिया जा रहा था. दिन में एक घंटे मुलाकात का समय निर्धारित था, जहां वे अपने बच्चे से मिल सकते थे.

राज कुमार ने अस्पताल की व्यवस्था के बारे में बताते हुए कहा, ‘हॉस्पिटल तो देखने में ठीक-ठाक था, बस छोटा था. उन्होंने सवाल उठाया कि अगर महज़ 12 बच्चे भर्ती थे तो 30 ऑक्सीजन सिलेंडर अंदर क्यों थे.

गौरतलब है कि आग लगने की शुरुआत किस कारण से हुई यह पता नहीं चल पाया है लेकिन बताया गया है कि आग के प्रचंड रूप ले लेने का कारण अस्पताल में अवैध रूप से रखे गए ऑक्सीजन सिलेंडर थे. आग लगने के कारण अस्पताल में मौजूद 30 सिलेंडर में से कुछ सिलेंडर फटे, जिसके कारण आग अस्पताल तथा बगल की दो इमारतों में भी फैल गई.

जले हुए अस्पताल के परिसर में पड़े सिलेंडर.

स्थानीय लोगों का दावा है कि बच्चों का इलाज करने की आड़ में उस अस्पताल के अंदर ऑक्सीजन सिलेंडर की अवैध सप्लाई की जाती थी, और आग लगने का कारण इन सिलेंडरों में विस्फोट होना है.

घटनास्थल के पास के घरों में अखबार पहुंचाने का काम करने वाले एक व्यक्ति ने कहा, ‘यह अस्पताल अवैध रूप से काम करता है. पहले भी इस पर कई तरह के आरोप लग चुके हैं. इसके बाद भी यह अस्पताल बंद नहीं हुआ क्योंकि अधिकारी और प्रशासन पैसे लेकर इस पर कार्रवाई नहीं करते थे.’

एक और स्थानीय निवासी ने द वायर को बताया कि अस्पताल के मालिक नवीन खींची को तगड़ा राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है, तभी वे अवैध तरीके से अस्पताल चलाते रहे और उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई.

उल्लेखनीय है कि दिल्ली पुलिस की जांच में पता चला कि जिस लाइसेंस पर अस्पताल चल रहा था वह अब वैध नहीं है. पुलिस ने समाचार एजेंसी एएनआई को बताया, ‘हमें पता चला कि अस्पताल की एनओसी (अनापत्ति प्रमाणपत्र) 31 मार्च को ही समाप्त हो गई थी.’

पुलिस ने यह भी कहा कि अस्पताल परिसर में कोई आपातकालीन या अग्नि निकास प्रणाली नहीं थी. साथ ही, अस्पताल को अधिकतम पांच बिस्तर लगाने की अनुमति थी, लेकिन उन्होंने 10 से अधिक बिस्तर लगाए हुए थे.

पुलिस जांच में आगे पता चला कि अस्पताल के कुछ डॉक्टर नवजात बच्चों के इलाज के लिए योग्य नहीं थे, क्योंकि वे बीएएमएस डिग्री धारक थे.

इतनी सारी कमियों के बावजूद उस अस्पताल का संचालित होना व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़े करता है.

इस बीच एक पहलु यह भी है कि घटना के बाद अस्पताल का स्टाफ, बच्चों का ध्यान रखने वाली नर्सें आदि कहां गए, उन्हें कितनी चोटें आईं, या उन्होंने आग में फंसे बच्चों को बचाने के लिए क्या किया, इसकी कोई जानकारी नहीं है. पुलिस के पास भी उनके बारे में कोई सूचना नहीं थी.

विवाद अस्पताल के लिए नया नहीं

इससे पहले 2021 में भी यह अस्पताल विवाद में आया था. तब अस्पताल के स्टाफ पर एक बच्चे के इलाज के दौरान मारपीट करने का आरोप लगा था. सोशल मीडिया पर वायरल हुए सीसीटीवी कैमरा की फुटेज के बाद मामला दर्ज किया गया था. फुटेज में एक नर्स बच्चे को पीटती हुई दिखाई दे रही थी, जिसके कारण बच्चे का हाथ टूट गया था.

एफआईआर में यह भी आरोप लगाया गया था कि अस्पताल अपंजीकृत था. इस मामले में अस्पताल के मालिक नवीन खींची जमानत पर रिहा हुए थे.

क्या कहते हैं जन प्रतिनिधि

शहादरा से विधायक राम नरेश गोयल ने इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए द वायर से कहा, ‘यह घटना एमसीडी की विफलता को दर्शाती है. अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर देना चाहिए और अस्पताल के मालिक और डॉक्टरों को कड़ी से कड़ी सजा देनी चाहिए.’

मालूम हो कि दिल्ली पुलिस ने इस मामले में कार्रवाई करते हुए अस्पताल के मालिक नवीन खींची और एक अन्य डॉक्टर आकाश को गिरफ्तार किया है और गुरुवार को उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया है.

दिल्ली पुलिस ने नवीन खींची के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 336 (दूसरों की निजी सुरक्षा को खतरे में डालना), 304A (लापरवाही से मौत) और 34 (आपराधिक गतिविधि) के तहत एफआईआर दर्ज की है.

इस घटना के मद्देनजर दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि अब से हर अस्पताल में अग्नि सुरक्षा उपकरण अनिवार्य किए जाएंगे, चाहे उनका आकार कैसा भी हो. पहले सभी नर्सिंग होम, जो भूतल या प्रथम तल तक ही सीमित थे, उनके लिए अग्नि सुरक्षा से संबंधित एनओसी की आवश्यकता नहीं होती थी, जिसके कारण इस अस्पताल के पास एनओसी नहीं थी. लेकिन अब तय किया गया है कि हर अस्पताल के लिए, चाहे वह भूतल हो या पहली मंजिल या उसके ऊपर भी, अग्नि सुरक्षा उपकरण आवश्यक होंगे.’