‘बाग़ी बलिया ने करवट ले ली है’

भारतीय जनता पार्टी ने बलिया से वीरेंद्र सिंह मस्त का टिकट काटकर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर को टिकट दिया है. नीरज शेखर 2014 का लोकसभा चुनाव सपा के टिकट पर लड़े थे, पर भाजपा प्रत्याशी भरत सिंह से हार गए थे. उनका सामना इस बार सपा के सनातन पांडेय से है.

उजियारपुर में जय प्रकाश राम और उनके साथ बैठे लोग. (सभी फोटो: मनोज सिंह)

बलिया (उत्तर प्रदेश): बलिया जिले के लोगों को इस पर बहुत फ़ख़्र है कि उनका जिला बागी जिला है. बागी इसलिए कि 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में यहां के लोग मुंबई में कांग्रेस नेताओं की गिरफ़्तारी की ख़बर सुनते ही सड़कों पर उतर आए थे और बलिया को आज़ाद घोषित करते हुए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चित्तू पांडेय के नेतृत्व में अपनी सरकार बना ली थी.

इसके पहले 1857 में जब बलिया गाजीपुर जिले का परगना था, विद्रोह का प्रमुख केंद्र बना रहा. वीर कुंवर सिंह और उनके छोटे भाई अमर सिंह ने बलिया, गाजीपुर और आजमगढ़ में अंग्रेजों के खिलाफ लंबा छापामार युद्ध चलाया. बलिया के ज्योधर सिंह के 900 विद्रोहियों के दल ने वीर कुंवर सिंह के साथ मिलकर विद्रोही गतिविधियों को तेज किया. वे अपने दल के साथ बलिया से लेकर बिहार तक छापामार लड़ाई लड़ते रहे.

आजादी की लड़ाई में बागी तेवर दिखाने के कारण यह शहर लोक में बागी बलिया के नाम से मशहूर हुआ. इस जिले के चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री बने, जिन्हें अपने प्रारंभिक राजनीतिक जीवन में ‘युवा तुर्क’ कहा गया था.

बलिया का वीर कुंवर सिंह चौक.

बलिया का बागी तेवर जब-तब दिख ही जाता है. योगी सरकार ने मार्च 2022 में बोर्ड परीक्षा का पेपर लीक होने की खबर छापने पर तीन पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया तो यहां के पत्रकार और लोग सड़क पर उतर आए. पत्रकारों ने एक महीने तक लगातार आंदोलन चलाया. एक दिन के लिए बलिया बंद रहा. आंदोलन से परेशान जिले के डीएम खुद तबादला करा कर चले गए.

गोदी मीडिया के दौर में प्रतिरोध का यह विरल वाकया बागी बलिया में ही संभव हुआ.

बागी बलिया की यह तासीर यहां के लोगों के मिजाज में भी दिखती है. बलिया का जिला प्रशासन अधिक मतदान के लिए लोगों को उत्साहित कर रहा है. एक ऑटो के पीछे स्टिकर दिखता है, ‘बागी बलिया का पैगाम जरूर करें मतदान.’ एक पेट्रोल पंप पर बैनर टंगा है, ‘बागी बलिया तब्बे कहाई, घर-घर से जब वोट दियाई.’ (बागी बलिया तभी कहलाएगा, जब हर घर से वोट दिया जाएगा)

2019 के लोकसभा चुनाव में इस बार के सपा प्रत्याशी सनातन पांडेय और भाजपा प्रत्याशी वीरेंद्र सिंह मस्त के बीच जोरदार मुकाबला हुआ था. सनातन पांडेय 15,519 वोट से हार गए. हार के बाद उन्होंने मतगणना में धांधली का आरोप लगाया था.

इस चुनाव में भाजपा ने वीरेंद्र सिंह मस्त का टिकट काटकर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर को टिकट दिया है. नीरज शेखर 2014 का लोकसभा चुनाव सपा के टिकट पर लड़े थे. वे भाजपा प्रत्याशी भरत सिंह से 1,39,434 मतों से हार गए थे. बाद में नीरज शेखर भाजपा में शामिल हो गए और राज्यसभा सदस्य बन गए.

बलिया से बक्सर की तरफ बढ़ने पर चितबड़ा गांव के पास सड़क पर नाश्पाती का ठेला लगाए निषाद बिरादरी का युवक बातचीत में कहता है कि यहां से सनातन बाबा (सपा प्रत्याशी सनातन पांडेय) जीत जाएंगे. पिछली बार भी जीत गए थे लेकिन जोर-जबरदस्ती से हरा दिया गया. इस बार लोग भरपाई करेगा.

उनका कहना था कि हमारे गांव में भाजपा का भी वोट है. उन्होंने इशारों में कहा कि निषाद बिरादरी में भाजपा का वोट ज्यादा है लेकिन जागरूक लोग बदलाव के लिए वोट कर रहा है.

क्षेत्र में दलित मतदाता, विशेषकर जाटव, इस चुनाव में बंटे नजर आ रहे है. कई दलित भाजपा को हराने के लिए वोट करने की बात कर रहे हैं, तो बहुत से लोग हार जीत की परवाह किए बिना हाथी के साथ रहने की बात कर रहे हैं. दलित मतदाताओं की यह उलझन जगह-जगह दिखी.

आगे बढ़ने पर बाबातर गांव के पास सड़क किनारे 1942 के शहीद शिव दहीन राजभर की प्रतिमा दिखी. सड़क के उस पार बैठे दलित बस्ती के सुरेंद्र राम ने बताया कि हर साल 30 अगस्त को यहां बड़ा कार्यक्रम होता है. नेता घोषणा कर चले जाते हैं लेकिन कुछ होता नहीं है.

गांव में डिस्पेंसरी चलाने वाले मिश्रा जी ने कहा कि शहीद शिव दहीन राजभर का नाम जिला से आगे बढ़ नहीं पाया.

शहीद शिव दहिन राजभर की प्रतिमा.

मिश्रा जी का आकलन था कि बलिया में पचास-पचास की लड़ाई है. बक्सर में भी यही स्थिति है लेकिन दोनों जगह भाजपा जीत जाएगी. उनका यह भी कहना था कि बक्सर में निर्दलीय प्रत्याशी आनंद मिश्रा भाजपा को नुकसान पहुंचा रहे है.

बाबातर गांव के कड़ौंजा टोले के लोग गंगा नदी की कटान से प्रभावित हैं. लोग बार-बार विस्थापित हुए हैं. विक्रमा राम ने कहा, ‘ढाही वाला गांव है. चार बार ढहे हैं. सरकार से कोई मदद नहीं मिलती. खेत बालू से पट गए हैं. मसूर, चना एक फसल हो जाता है.’

सुरेंद्र राम और विक्रमा राम ने साफ कहा कि उनका समर्थन बसपा को है. सुरेंद्र राम बोले, ‘हम लोग हाथी वाला हईं. सबके देख समझ गईंल बांटी. दूसरे के वोट दिहल जाला तब्बो लोग कहेला कि ई लोग हथिये के वोट देले होईअन. (हम लोग हाथी (बसपा) वाले हैं. सभी को देख समझ गए हैं. किसी दूसरे को वोट देते हैं तब भी लोग कहते हैं कि हम लोग हाथी को ही वोट देकर आए हैं.)

वो आगे जोड़ते हैं, ‘एही लिए न किसी को देना है न किसी को कुछ कहना है. अपने हाथी पर रहना है चाहे जीते या हारें. एक बात और जान लीं. हमन के केहू के दबाव में नाहीं बांटी, न केहू दबाव बना पाई. हमार संगठन मजबूत बा.’ (हम किसी के दबाव में नहीं हैं. न कोई दबाव बना पाएगा. हमारा संगठन मजबूत है.)

आधा गांव, टोपी शुक्ला, नीम का पेड़ जैसे चर्चित उपन्यास लिखने वाले डाॅ. राही मासूम रजा के गांव गंगौली में नहर पटरी पर मिले दलित बजुर्ग ने सुरेंद्र राम की तरह ही बात कही. उन्होंने कहा, ‘हम नहीं जानते कि हाथी से कौन खड़ा है. हम अपने घर में ही रहेंगे. इधर-उधर नहीं जांएगे.’

 ‘गमछी के पीछे क्या है ‘

उजियारपुर के चौराहे पर चाय की दुकान पर भगवा व सफेद गमछा डाले सात-आठ लोग मिले. गर्मी से परेशान होकर दुकानदार घर चला गया था और यहां बैठे लोग चुनावी चर्चा में मशगूल थे. हमें देख भगवा गमछा सिर पर बांधे एक व्यक्ति यह कहते हुए चले गए कि ‘आप लोग बैठिए. मोदी जी ने बहुत काम किया है. बलिया में भाजपा जीत रही है.’

उनके जाते ही भगौने के पास बैठा व्यक्ति बोला, ‘उनके बात पर मत जाईं. इहां से सनातन बाबा आगे बाटें.’ (उनकी बात पर मत जाइए. यहां से सनातन बाबा आगे हैं.)

तभी गले में सफेद गमछा डाले आए व्यक्ति बोले, ‘हमरी गावें में सबकर वोट बा. भले पांचे वोट केहू के मिले पर मिली. लेकिन एक बात हम कहब. जेकर गमछी पहिनी ओही के साथ रहीं, जेकरा साथे रह दिल से रह.’ (हमारे गांव में सभी का वोट है. भले पांच वोट मिलें, पर मिलेंगे. लेकिन एक बात हम कहेंगे. जिनका गमछा पहने, उसी के साथ, दिल से रहे.)

भगवा गमछा डाले युवा की तरफ इशारा करते हुए वे बोले, ‘इ बसपा से भाजपा में आईल बाटें. केहू बताई कि ई कहां रहईन. हमके देखीं हमार सफेद गमछा ह. इ कौनो पार्टी के नाहीं ह. हमार वोटवा साइकिल पर बा.’ (ये बसपा से भाजपा में आए हैं. कोई बताए ये कहां रहे. हमें देखिए, हमारा गमछा सफ़ेद है.. ये किसी पार्टी का नहीं है. हमारा वोट साइकिल को है.)

इस पर जय प्रकाश राम नाम के युवक ने जवाब देते कहा कि ‘हम 2022 में भाजपा में आए. हमारे साथ बैठे व्यक्ति बसपा के सेक्टर अध्यक्ष हैं. उन्होंने पूरे गांव में वोट का आंकड़ा देते हुए कहा कि भाजपा इहां से निकल जाई. तभी एक व्यक्ति ने टिप्पणी की, ‘बसपा के का बात करत हईं. ऐ बेरी बसपा के दुई टुकड़ा हो गईल बा.’ (बसपा की क्या बात करते हो. इस बार बसपा के दो टुकड़े हो गए हैं.)

‘महामहिम’ के मंदिर दर्शन पर विमर्श 

कठवा मोड़ के आगे से गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र शुरू हो जाता है. बलिया लोकसभा में गाजीपुर जिले की दो विधानसभा, मोहम्मदाबाद और जहूराबाद, आते हैं. कठवा मोड़ के एक तरफ बलिया लोकसभा क्षेत्र है, तो सड़क के दूसरी तरफ के गांव-कस्बे गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में आते हैं.

कठवा मोड़ पर चाय की दुकान पर बैठे लोगों में एक व्यक्ति अखबार पढ़ रहे थे तो दूसरे समोसा खा रहे थे. तभी काला चश्मा लगाए थुलथुल बदन वाले व्यक्ति ने यह कहकर चर्चा छेड़ दी कि ‘आप लोग कहते हैं कि मोदी ने कोई काम नहीं किया है. देखिए, इस सीजन में कितना ताजा मूली मिल रहा है. बीस रुपये में ताजा नेनुआ मिल जा रहा है. यह सब मोदी जी की ही तो देन है.’

इस पर अखबार पढ़ रहे व्यक्ति ने तंज किया, ‘ई सब मुरई, नेनुआ मोदिए जी तो उगइलें बाटें. (ये सब मूली, नेनुआ मोदी जी ने ही तो उगाया है!) अखबार पढ़िए! महामहिम जी मंदिरों के दर्शन कर रहे हैं.’

चश्मे वाले इस पर तिलमिला कर बोले, ‘काहें दुखाये लगल. पूजा उ करत बाटें दुख तोहरा बा.’ (तुम क्यों परेशान हो रहे हो. पूजा वो कर रहे हैं, दुख तुम्हें हो रहा है.)

अखबार पढ़ रहे व्यक्ति का जवाब आया, ‘काहे न तकलीफ हो. चुनाव के समय काश्मीर से इहां का करे आवत बाटें. (चुनाव के समय कश्मीर से यहां क्या करने आए हैं) वहां मंदिर नहीं थे क्या कि गाजीपुर चले आए. राज्यपाल पद की हिनाई (अपमान) करा रहे हैं.’

समोसे खा रहे व्यक्ति ने प्रतिकार किया, ‘सिन्हा जी कौन गलत काम कर रहे हैं. अब मंदिर भी न जाएं.’

इन सभी का इशारा क्षेत्र के नेता मनोज सिन्हा की तरफ है, जो जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल हैं. वे बीते कुछ समय में बनारस, गाजीपुर और मऊ में घूम रहे थे.

तभी धोती कुर्ता पहने लंबे कद वाले बुजुर्ग प्रवेश करते हैं. सब उनका ‘जय समाजवाद’ कहकर स्वागत करते हैं. चश्मे वाला व्यक्ति उनको भी चिढ़ा देता है, ‘मोदी के हरावे खातिर 57 पार्टी लगल बा.’ (मोदी को हराने के लिए 57 दल लगे हैं.) अखबारे वाले झट से जवाब देते हैं, ‘त भाजपा वाला अकेले लड़त बा का? ओकर सथवन पार्टियां के भी गिन ल.’ (तो भाजपा कौन-सा अकेले लड़ रही है. उसके साथ वाली पार्टियों को भी गिन लें.)

अब चश्मे वाले ने मनोज सिन्हा की तारीफ शुरू की, ‘उ अपने लड़का लड़किन खातिर त वोट नाहीं मांगत हवें. अनजान आदमी के टिकट धरा देहलन तब्बौ तोहके तकलीफ बा.’ (वो अपने बेटे-बेटी के लिए तो वोट नहीं मांग रहे हैं. अनजान आदमी को टिकट दे दिया गया, तब भी तुम्हें तकलीफ है.)

चश्मे वाले व्यक्ति को समोसे वाले का समर्थन मिला, ‘सिन्हा जी कील उखाड़े खातिर आइल हवन. ए बेरी कील उखाड़ के फिर गड़ा जाई.’ (सिन्हा जी हराने आए हैं. इस बार कील उखाड़कर भाजपा को स्थापित कर देंगे.)

अखबार पढ़ रहे व्यक्ति अब बहस को निर्णयात्मक बनाते हुए बोले, ‘ई चुनाव में गाजीपुर अपने जगहे रही, बलिया बदल जाई. बलिया में पंडित जी अइहें.’ (इस चुनाव में गाजीपुर में बदलाव नहीं होगा पर बलिया में होगा. वहां पंडित जी [सनातन पांडेय] आएंगे.)

‘जय समाजवाद वाले’ शख्स मेज पर मुक्का मारते हुए खड़े हो गए, ‘जहूराबाद और मोहम्मदाबाद डेढ़ लाख से बढ़त नाहीं देहलस तब चार के मिलिह.’ (सपा को जहूराबाद और मोहम्मदाबाद में डेढ़ लाख से ज़्यादा की बढ़त मिलेगी. ऐसा नहीं हुआ तब चार [मतगणना वाले दिन] को मिलना.)

यह पूछने पर कि गाजीपुर में क्या होगा, उनका जवाब था, ‘वहां इतना मंत्री कुल आवत हवें. (वहां इतने मंत्री आ रहे हैं.) भगवान जाने क्या होगा?’

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)