नरेंद्र मोदी के एकांतवास में ‘ध्यान’ के लिए जाने के बाद देश कौन चला रहा है?

द वायर ने कई वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क किया कि सरकार में नंबर दो की स्थिति स्पष्ट न होने और प्रधानमंत्री से संपर्क न हो पाने के संबंध में क़ानून क्या कहता है.

कन्याकुमारी में ध्यान की मुद्रा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: X/@BJP4India)

नई दिल्ली: अपने दस साल के कार्यकाल के दौरान सरकारी पैसे पर चुनाव प्रचार में रिकॉर्ड समय व्यतीत करने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना होती आई है. पीएम की सुरक्षा के मद्देनज़र प्रोटोकॉल का पालन करने पर बहुत पैसे खर्च होते हैं. यह भी एक सवाल उठता रहा है कि पीएम चुनाव प्रचार में व्यस्त होने के दौरान कार्यभार कैसे संभालते हैं?

पीएम मोदी के विवेकानंद स्मारक शिला पर ‘ध्यान’ करने के लिए जाने के बाद साउथ ब्लॉक में मामलों का प्रभारी कौन है?

कार्यभार संभालने में अगले नंबर पर कौन है?

 6 जुलाई 2022 को जारी मंत्रिपरिषद की सूची के अनुसार, प्रधानमंत्री के बाद वरिष्ठता के मामले में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हैं. इसलिए कायदे से, यदि प्रधानमंत्री ‘ध्यान करने’ के कारण अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हैं तो राजनाथ सिंह को कार्यभार संभालना चाहिए.

मोदी ने किसी को भी उपप्रधानमंत्री नियुक्त नहीं किया है. अपने पहले कार्यकाल के दौरान, सितंबर 2014 में अमेरिका के दौरे पर जाने के दौरान तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह को मोदी द्वारा आधिकारिक तौर पर सरकारी कार्यभार संभालने के लिए नियुक्त किया गया था. इस घोषणा की जानकारी प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी गई थी.

30 मई को पीएमओ द्वारा ऐसी कोई प्रेस विज्ञप्ति जारी नहीं की गई, जिस दिन मोदी अपने दो दिवसीय (45 घंटे) ‘ध्यान’ के लिए रवाना हुए.

पूर्व अधिकारी जवाब देते हैं

द वायर ने कई वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क किया कि सरकार में नंबर दो की स्थिति स्पष्ट न होने पर पीएम से संपर्क न हो पाने को लेकर कानून क्या कहता है?

  • पीएमओ के एक पूर्व अधिकारी का कहना है, ‘उन्हें (मोदी को) कार्यवाहक प्रधानमंत्री का नाम चुनना होगा क्योंकि वह परमाणु कमान के एकमात्र मुखिया हैं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘किसी को प्रभारी नियुक्त न करना उनके द्वारा बहुत गैर-जिम्मेदाराना कदम है.
  • एक पूर्व कैबिनेट सचिव ने कहा, ‘पीएम चीन या पाकिस्तान के साथ सीमा पर गंभीर हालात जैसे बहुत जरूरी मामलों पर पूरी तरह से संपर्क से बाहर नहीं रह सकते. ऐसे में उन्हें ‘ध्यान’ से जगाना होगा. हालांकि, रोजमर्रा के मामले उनके मंत्रिमंडल और वरिष्ठ मंत्रियों द्वारा संभाले जा सकते हैं.’
  • एक पूर्व विदेश सचिव ने कहा, ‘कोई स्पष्ट उत्तर नहीं हैं, लेकिन तीन बातों पर ध्यान देने की जरूरत है. सबसे पहले, सरकार शायद अपने आप चल रही है और बिना मंत्रियों के भी बेहतर काम कर रही है, जिनमें से अधिकांश वैसे भी चुनावी मोड में हैं. या कम से कम जब मैं सेवा में था तो ऐसा होता था.’ लेकिन, ‘जब ऐसी स्थिति बनती है कि शायद प्रधानमंत्री को निर्णय लेने की आवश्यकता है, तो पीएमओ शायद इस पर फैसला लेगा कि क्या उन्हें (प्रधानमंत्री) परेशान करने की जरूरत है और फिर उन्हें निर्देश जारी करने के लिए कहा जाएगा.’ तीसरा, ‘मुझे बहुत आश्चर्य होगा यदि प्रधानमंत्री कभी भी पूरी तरह से संपर्क से बाहर हों. ऐसा होता ही नहीं है.’
  • परमाणु प्रोटोकॉल से अच्छी तरह वाकिफ एक वरिष्ठ पूर्व अधिकारी ने कहा, ‘परमाणु प्रोटोकॉल के लिए अधिकार और उत्तराधिकार की एक स्पष्ट रेखा निर्धारित की गई है, अगर पीएम या कमान की श्रृंखला में से कोई भी अक्षम हो या मारा जाए या अनुपस्थित हो. सुरक्षा के मामले में भी यही प्रक्रिया है. नागरिक पक्ष या संवैधानिक स्थिति के बारे में मुझे स्पष्टता नहीं है.’
  • पीएमओ के एक अन्य पूर्व अधिकारी ने द वायर को बताया, ‘तकनीकी रूप से किसी को भी प्रभारी होने की आवश्यकता नहीं है; वह ‘ध्यान’ में है लेकिन अशक्त नहीं हैं. न ही किसी प्रकार के मेडिकल कोमा में हैं. यह अपनी मर्जी से चुना गया एकांतवास है, और आपात्कालीन स्थिति में इसका उल्लंघन किया जा सकता है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘एकमात्र अप्रत्याशित स्थिति जो घटित हो सकती है वह हमारे पड़ोस में परमाणु गतिविधि है और प्रोटोकॉल मांग करेगा कि धार्मिक नियमों को दरकिनार करते हुए प्रधानमंत्री को सूचित किया जाए.’

2019 में हुए 17वें आम चुनाव के अंतिम दिन पीएम मोदी ने केदारनाथ की ‘रूद्र ध्यान गुफा’ में 17 घंटों तक ध्यान किया था, जिसके बाद उस जगह ने बड़ी संख्या में कैमरामैन और पर्यटकों को आकर्षित किया था. इस बार पीएम दो दिनों तक ‘ध्यान’ कर रहे हैं.

भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को पिछली बार आलोचना का सामना करना पड़ा था क्योंकि आदर्श आचार संहिता के बावजूद मीडिया द्वारा कवरेज पर उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी. इस बार भी विपक्षी दलों द्वारा औपचारिक रूप से शिकायत किए जाने के बावजूद ईसीआई की ओर से कोई बयान नहीं आया है.