लोकसभा चुनाव: कुशीनगर में सपा की सोशल इंजीनियरिंग और स्वामी प्रसाद मौर्य की परीक्षा

कुशीनगर संसदीय क्षेत्र काफ़ी समय से भाजपा का मज़बूत गढ़ है, जहां सफलता की चाह में सपा ने इस बार अजय सिंह उर्फ पिंटू सैंथवार को उतारा है. हालांकि, सपा को भाजपा की तरफ से दोबारा उतारे गए विजय दुबे से ज़्यादा चुनौती स्वामी प्रसाद मौर्य से मिल सकती है, जो इस बार अपने बूते अपनी नई पार्टी को खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं.

(बाएं से) सपा प्रत्याशी अजय सिंह के साथ डिंपल यादव, स्वामी प्रसाद मौर्या और राजनाथ सिंह के साथ भाजपा प्रत्याशी विजय दुबे. (सभी फोटो साभार: संबंधित फेसबुक पेज)

गोरखपुर: कुशीनगर लोकसभा सीट का चुनाव राजनीति के नए प्रयोग का चुनाव बन गया है. समाजवादी पार्टी ने पूर्वांचल में नई ताकत के बतौर उभर रहे सैंथवार मल्ल समाज के नेता को टिकट देकर इस समाज का समर्थन पाकर अपने को विस्तारित करने का प्रयोग कर रही है तो पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार अपने बूते अपनी नई राजनीति को स्थापित करने के साथ-साथ तीसरा मोर्चा भी बनाने का प्रयोग कर रहे हैं.

कुशीनगर लोकसभा सीट पिछले दो बार से भारतीय जनता पार्टी बड़े अंतर से जीतती आ रही है. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राजेश पांडेय को उम्मीदवार बनाया था और उन्होंने कांग्रेस के आरपीएन सिंह को 85,540 मतों से पराजित किया था. सपा के राधेश्याम सिंह तीसरे स्थान पर रहे.

वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा ने राजेश पांडेय का टिकट काट दिया और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबी विजय दुबे को प्रत्याशी बनाया. वे 3,37,560 मतों के बड़े अंतर से सपा के एनपी कुशवाहा को हराकर विजयी रहे. कांग्रेस के आरपीएन सिंह तीसरे स्थान पर चले गए और उन्हें 1,46,151 मत ही मिले.

इसके बाद कुशीनगर की राजनीति में बड़े बदलाव हुए. दो वर्ष पहले हुए विधानसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस के बड़े नेता आरपीएन सिंह भाजपा में चले गए तो भाजपा सरकार में मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा छोड़ सपा में आ गए. आरपीएन सिंह को भाजपा राज्यसभा सदस्य बना चुकी है.

स्वामी प्रसाद मौर्य 2022 का विधानसभा चुनाव सपा के टिकट पर कुशीनगर जिले के फाजिलनगर सीट से लड़े लेकिन हार गए. हार के बाद सपा ने उन्हें एमएलसी बनाया लेकिन लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही उन्होंने सपा छोड़ दी और पहले से बने राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी के अध्यक्ष बन गए. उन्होंने कुशीनगर से चुनाव लड़ने की घोषणा की और ‘इंडिया’ गठबंधन से समर्थन की प्रत्याशा की, लेकिन ‘इंडिया’ गठबंधन से सपा ने यहां से अजय सिंह उर्फ पिंटू सैंथवार को प्रत्याशी बना दिया. गठबंधन से समर्थन न मिलने के बावजूद स्वामी प्रसाद मौर्य चुनावी समर में उतर गए.

भाजपा का मज़बूत गढ़, सपा की सफलता की चाहत

कुशीनगर संसदीय क्षेत्र काफी समय से भाजपा का मजबूत गढ़ बना हुआ है. भाजपा ने एक बार फिर विजय दुबे पर भरोसा करते हुए उन्हें प्रत्याशी बनाया है. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में यहां से आरपीएन सिंह जरूर कांग्रेस से सांसद बने थे लेकिन उसके बाद से विपक्षी दलों को बड़ी सफलता नहीं मिली है. वर्ष 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में इस संसदीय क्षेत्र के सभी विधानसभा सीटों पर भाजपा जीत गयी.

लंबे समय से कुशीनगर में सफलता की राह खोज रही सपा ने इस बार नया प्रयोग करते हुए अजय सिंह उर्फ पिंटू सैंथवार को चुनाव मैदान में उतारा है. पिंटू सिंह सैंथवार भाजपा से देवरिया के दो बार विधायक रहे जनमेजय सिंह के बेटे हैं.

वे अपने पिता की मृत्यु के बाद 2020 का उपचुनाव निर्दल और 2022 का विधानसभा चुनाव सपा के टिकट पर देवरिया से लड़े लेकिन दोनों बार हार गए. हालांकि उन्हें अच्छे खासे वोट मिले थे.

कुशीनगर जिले के तमाम कद्दावर नेताओं को बरक्स अजय सिंह उर्फ पिंटू सैंथवार को सपा ने इसलिए तरजीह दी क्योंकि उनकी बिरादरी के मतदाता यहां बड़ी संख्या में हैं.

सैंथवार मल्ल महासभा के अनुसार, कुशीनगर में सैंथवार मतदाता 4.50 लाख हैं. सैंथवार मल्ल समाज की शिकायत रही है कि वे भाजपा को समर्थन देते आए हैं लेकिन लोकसभा चुनाव में भाजपा उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं देती है. इस बार सैंथवार मल्ल महासभा ने 11 फरवरी को गोरखपुर में बड़ी रैली कर सभी प्रमुख राजनीतिक दलों से प्रतिनिधित्व देने की मांग की थी. भाजपा ने सैंथवार बिरादरी के किसी भी नेता को टिकट नहीं दिया लेकिन सपा ने उनकी मांग अजय सिंह को टिकट देकर पूरी कर दी.

इस बदलाव ने कुशीनगर की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है. एक बड़े मतदाता समूह के छिटकने से भाजपा में बड़ी बेचैनी है और उसने यह सीट अपने पास रखने के लिए पूरी ताकत लगा दी है. पिछला लोकसभा चुनाव सपा से लड़े एनपी कुशवाहा को भाजपा में शामिल कराया गया.

सैंथवार समाज अपने बिरादरी के नेता को टिकट मिलने से खुश है. गौरी बाजार में सैंथवार समाज के लोग चर्चा करते मिले कि उन्हें अब कुशीनगर में सपा के साथ जाने में कोई हिचक नहीं है.

सैंथवार मल्ल महासभा के पदाधिकारी भी पूरी शिद्दत से अजय सिंह के प्रचार में जुटे हैं. सपा नेतृत्व को लगता है कि उनका यह प्रयोग यदि सफल रहा तो उसके साथ दूसरे क्षेत्रों में भी इस समाज के लोग पार्टी से जुड़ेगे.

सैंथवार समाज की पूर्वांचल के आठ लोकसभा क्षेत्रों में अच्छी खासी उपस्थिति है. इस प्रयोग को सफल बनाने के लिए सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तो कुशीनगर में सभा की, तो डिंपल यादव ने 29 मई को रोड शो किया.

अपनी अलग पहचान के लिए प्रयासरत स्वामी प्रसाद मौर्य

कुशीनगर में सपा एक तरफ अपनी नई सोशल इंजीनियरिंग को सफल बनाने में जुटी है तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश की राजनीति की एक बड़ी शख्सियत स्वामी प्रसाद मौर्य अपने बूते अपनी नई राजनीति को खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं.

मौर्य ने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1980 में लोकदल से की और जनता दल से होते हुए 1996 में बसपा में आए. वह 1996 में पहली बार 13वीं विधानसभा के लिए विधायक चुने गए थे. उसके बाद वह 2002 में फिर विधायक बने. वह 2007 में विधान परिषद सदस्य रहे.’

वे बसपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. बसपा सरकार में वे पंचायती राज मंत्री थे. बसपा के विपक्ष में रहने पर उन्होंने नेता विरोधी दल की भूमिका निभाई थी.

मौर्य की मौर्य और कुशवाहा समाज में अच्छी पकड़ मानी जाती है.

मौर्य कुशीनगर जिले की पडरौना सीट पहली बार 2009 के विधानसभा उपचुनाव में बसपा से लड़े थे और जीते. इसी वर्ष वह पडरौना लोकसभा सीट से चुनाव में उतरे लेकिन कांग्रेस के आरपीएन सिंह से हार गए थे.

इसके बाद वह 2012 में भी इसी सीट से विधानसभा चुनाव जीते. वर्ष 2016 में उन्होंने बसपा छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गए. 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर पडरौना सीट से विजयी होने के बाद उन्हें श्रम मंत्री बनाया गया था

स्वामी प्रसाद मौर्य दो वर्ष पहले भाजपा छोड़ सपा में आ गए. उस वक्त वे श्रम मंत्री थे. उनके साथ कई और नेता भाजपा छोड़ सपा में आए थे लेकिन बाद में एक-दो को छोड़ सभी वापस हो गए.

सपा में आने के बाद वह 2022 में कुशीनगर जिले के फाजिलनगर विधानसभा से चुनाव लड़े लेकिन भाजपा प्रत्याशी से हार गए. सपा ने उन्हें बाद में एमएलसी बना दिया था.

स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कृष्ट मौर्य वर्ष 2017 में रायबरेली के उंचाहार विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे लेकिन करीब दो हजार मत से हार गए थे. वर्ष 2019 में स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य भाजपा के टिकट पर बदायूं से लोकसभा का चुनाव लड़ीं और जीतीं. हालांकि, इस बार भाजपा ने उनका टिकट काट दिया है.

इस तरह देखें, तो स्वामी प्रसाद मौर्य और उनका परिवार पहली बार मुख्यधारा की राजनीति से अलग-थलग पड़ गया है.

स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी राजनीतिक जीवन में पहली बार खुद के बूते चुनावी मैदान में हैं. वे बसपा से भाजपा, भाजपा से सपा की यात्रा पूरी कर अब राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी के अध्यक्ष बन गए हैं. उन्होंने अपने चुनाव को यूपी में एनडीए और ‘इंडिया’ गठबंधन के बीच ध्रुवीकृत हुई राजनीति को एक तीसरा कोण बनाने का भी चुनाव बना दिया है.

उनके प्रचार में आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर, अपना दल कमेरावादी की पल्लवी पटेल, एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी, पीस पार्टी के अध्यक्ष डॉ. अयूब आ चुके हैं.

स्वामी प्रसाद मौर्य चुनाव लड़ने के साथ-साथ यूपी में छिटके पड़े छोटे दलों को अपने साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं. कुशीनगर में सभी मान रहे हैं कि उन्होंने मजबूती से चुनाव लड़ा है और वे भाजपा व सपा दोनों को नुकसान कर रहे हैं.

कुशीनगर सीट का परिणाम दोनों प्रयोगों का परीक्षण भी साबित होगा.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)