नई दिल्ली: गोवा की फार्मास्युटिकल कंपनियों पर इस समय राज्य सरकार और विपक्ष दोनों की नज़रें गड़ी हुई हैं. इन कंपनियों द्वारा गोवा में अपने मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों के लिए राज्य से बाहर के लोगों की नियुक्ति करने का मामला दिन-प्रतिदिन तूल पकड़ता जा रहा है.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को लेकर फार्मा कंपनियों के खिलाफ कड़ा विरोध दर्ज करवाया था, जिसके बाद अब श्रम मंत्री अटानासियो मोनसेरेट ने गुरुवार (30 मई) को कहा है कि सरकार श्रम अधिनियम के कुछ प्रावधानों में संशोधन करेगी और रोज़गार कानूनों का उल्लंघन करने वाली कंपनियों के खिलाफ कड़ा जुर्माना लगाएगी.
मोंसेरेट ने संवाददाताओं से कहा कि राज्य के अधिकारियों को सूचित किए बिना गोवा में रिक्तियों के लिए राज्य के बाहर नियुक्ति विज्ञापन जारी करने के संबंध में दो दवा कंपनियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है.
मंत्री के अनुसार, इस तरह के भर्ती अभियान का विज्ञापन जारी करने से पहले इन कंपनियों को ये देखना चाहिए कि गोवा में उपयुक्त कार्यबल उपलब्ध है या नहीं. ऐसी नियुक्तिों की जानकारी श्रम विभाग को भी दी जानी चाहिए.
मोंसेरेट ने आगे कहा, ‘कंपनियों को पहले रोज़गार कार्यालय को अपनी जरूरतें भेजनी चाहिए और फिर रोज़गार कार्यालय कुछ उम्मीदवारों का सुझाव दे सकता है और कंपनियां इस पर भर्ती का निर्णय ले सकती हैं. लेकिन इन फार्मा कंपनियों ने ऐसा नहीं किया.’
उन्होंने आगे कहा, ‘यह गोवावासियों को प्राथमिकता देने के बारे में नहीं है. वो एक अलग मुद्दा है. हम कंपनियों को गोवा से लोगों को लेने के लिए नहीं कह रहे हैं, बल्कि हम उन्हें नियमों का पालन करने के लिए कह रहे हैं. कानून के प्रावधानों के मुताबिक, इस नियम के उल्लंघन पर केवल 500 रुपये का जुर्माना लगाया जाता है. हम अब कानून में संशोधन करेंगे और ऐसा करने वालों के खिलाफ गंभीर दंड लगाएंगे.’
सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि सरकार सभी कंपनियों से तिमाही आधार पर भर्ती संबंधी मुद्दों से जुड़े विज्ञापन, साक्षात्कार और रोज़गार कार्यालय को भेजी गई अधिसूचना आदि की जानकारी मांगेगी.
उल्लेखनीय है कि श्रम मंत्री का ये बयान विपक्षी दलों द्वारा भारतीय जनता पार्टी सरकार पर गोवावासियों के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहने और ‘बाहरी लोगों को नौकरियां आउटसोर्स करने’ के आरोप लगाने के बाद आया है.
सोशल मीडिया पर हंगामे के बाद मुख्यमंत्री कार्यालय ने पिछले हफ्ते गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत को संबोधित दो दवा कंपनियों- इंडोको रेमेडीज़ लिमिटेड और एनक्यूब एथिकल्स प्राइवेट लिमिटेड के पत्र साझा किए थे, जिसमें कहा गया था कि उन्होंने अपने नियुक्ति अभियान को रद्द करने का फैसला किया है.
एन्क्यूब एथिकल्स प्राइवेट लिमिटेड ने कहा कि सीएम के ‘व्यक्तिगत हस्तक्षेप’ के कारण कंपनी ने 26 मई को पुणे में निर्धारित वॉक-इन इंटरव्यू रद्द करने का फैसला किया है. इंडोको रेमेडीज़ लिमिटेड ने कहा कि उसने ‘अपरिहार्य परिस्थितियों’ और मुख्यमंत्री के ‘व्यक्तिगत हस्तक्षेप’ के कारण 24 मई को बोइसर, मुंबई में निर्धारित वॉक-इन इंटरव्यू रद्द कर दिया है.
सीएमओ ने सिप्ला लिमिटेड का एक पत्र भी साझा किया, जिसमें कंपनी ने कहा कि उसने ‘बेहद ज़रूरी व्यावसायिक आवश्यकताओं ‘ के कारण गोवा सहित अपनी साइटों के लिए 26 मई को निर्धारित भर्ती अभियान रद्द कर दिया है.
कंपनी ने अपने पत्र में कहा, ‘मुख्य रूप से गोवा स्थित परिसरों से स्थानीय प्रतिभाओं को शामिल करने के लगातार प्रयास किए गए हैं, ताकि हम रोज़गार सृजन और स्थानीय युवाओं के कौशल को उन्नत करने में सहायता कर सकें.’
इस मामले में गोवा फॉरवर्ड पार्टी के नेता विजय सरदेसाई ने कहा कि विज्ञापन गोवावासियों के खिलाफ जानबूझकर किया गया भेदभाव है.
मुख्य सचिव को लिखे एक पत्र में सरदेसाई ने कहा, ‘अगर गोवा के उद्योगों से गोवावासियों को लाभ नहीं होता है, तो उन्हें यहां क्यों रखा गया है? यह अस्वीकार्य है कि एक कंपनी, जिसे फायदा गोवा में परिचालन से होता है, राज्य के बाहर साक्षात्कार आयोजित करने का विकल्प चुनती है, जिससे स्थानीय उम्मीदवारों के लिए दरवाजे बंद हो जाते हैं.’
मालूम हो कि सरदेसाई ने इससे पहले स्थानीय निवासियों के लिए निजी क्षेत्र में नौकरियों के आरक्षण संबंधी एक निजी सदस्य विधेयक भी पेश किया था. उन्होंने फिर से ‘निजी क्षेत्र में गोवावासियों के लिए 80 प्रतिशत नौकरी आरक्षण’ की मांग की है.
राजय में अक्सर ‘मिट्टी के बेटे’ और ‘अंदरूनी-बाहरी’ बायनरी जैसे भावनात्मक मुद्दों का आह्वान करने वाली रिवोल्यूशनरी गोअन्स पार्टी के नेता मनोज परब ने कहा कि भाजपा सरकार ने प्रवासियों को नौकरियां बेच दी हैं.