नई दिल्ली: पूर्वोत्तर भारत के दो राज्य अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के विधानसभा चुनावों के नतीजे आ गए हैं. अरुणाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्ता बचाने में कामयाब हुई है. वहीं, सिक्किम में सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) को भी दोबारा बहुमत हासिल करने में सफलता मिली है.
चुनाव आयोग ने शुरू में घोषणा की थी कि इन दोनों राज्यों में मतगणना 4 जून को होगी, लेकिन बाद में 2 जून को दोनों सदनों का कार्यकाल समाप्त होने को ध्यान में रखते हुए इसकी तारीख 2 जून कर दी गई. विधानसभाओं का कार्यकाल समाप्त होने वाले दिन मतगणना एक दुर्लभ घटना है.
अरुणाचल प्रदेश का हाल
अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा की 60 सीटें हैं, लेकिन मतदान केवल 50 पर ही हुआ था क्योंकि मुख्यमंत्री पेमा खांडू और उपमुख्यमंत्री चौना मीन सहित सत्तारूढ़ भाजपा के 10 उम्मीदवार निर्विरोध अपनी सीटें जीत गए थे.
भाजपा ने 46 सीटों के साथ बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है. विजेताओं में दो महिला विधायक न्याबी जिनी दिर्ची (बसर से) और चकत अबो (खोंसा पश्चिम से) भी हैं.
अन्य दलों की बात करें तो नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) को पांच, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को तीन, पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (पीपीए) को दो और निर्दलीय उम्मीदवारों को तीन सीटों पर जीत मिली है. इन चुनावों में 34 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस सिर्फ एक सीट ही जीत सकी. पूर्व मंत्री कुमार वाई ने बामेंग सीट से जीत हासिल की.
अब पेमा खांडू अरुणाचल प्रदेश के दसवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे. यह तीसरी बार होगा जब खांडू मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे. खांडू के पिता दोरजी खांडू भी 2007 से 2011 के बीच राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे.
चुनाव आयोग के अनुसार, 133 उम्मीदवारों के लिए डाले गए वोटों की गिनती करीब 2,000 अधिकारियों की मदद से 24 केंद्रों पर की गई. राज्य में विधानसभा चुनाव 19 अप्रैल को लोकसभा चुनावों के साथ ही पहले चरण में संपन्न हुए थे. कुल मतदान 82.95 प्रतिशत दर्ज किया गया था, जो 2019 के विधानसभा चुनावों से अधिक रहा.
2019 में किस पार्टी को कितनी सीटों पर मिली थी जीत?
अप्रैल 2019 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा अरुणाचल प्रदेश की कुल 60 सीटों में से 41 जीतने में कामयाब हुई थी. भाजपा के बाद सबसे ज्यादा सीटें जनता दल (यूनाइटेड) ने जीती थीं. उसे सात विधानसभा क्षेत्रों में जीत मिली थी. इसके अलावा एनपीपी ने पांच, कांग्रेस ने चार और पीपीए ने एक सीटें जीती थीं. दो निर्दलीय उम्मीदवार भी विजयी हुए थे. बाद में, कांग्रेस के चार विधायकों में से एक विधायक नबाम तुकी (पूर्व मुख्यमंत्री) को छोड़कर सभी विधायक भाजपा में शामिल हो गये थे.
भाजपा को बहुमत मिलने पर पेमा खांडू मुख्यमंत्री बने थे. सीएम खांडू ने अपने परिवार के गढ़ मुक्तो से निर्विरोध जीत हासिल की थी. इस सीट को पेमा खांडू ने अपने पिता और पूर्व सीएम दोरजी खांडू की मृत्यु के बाद 2011 में हुए उपचुनाव में भी निर्विरोध जीता था. वे 2014 के विधानसभा चुनाव में भी इसी सीट से दूसरी बार निर्विरोध चुने गए थे.
सिक्किम में एसडीएफ का सूपड़ा साफ़
सिक्किम में विधानसभा की 32 सीटें हैं. सत्तारूढ़ सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) 32 में से 28 सीटें जीतकर राज्य में सरकार बनाने को तैयार है. एसकेएम का वोट शेयर 58.38 प्रतिशत तक पहुंच गया है. सिक्किम के मुख्यमंत्री और एसकेएम नेता प्रेम सिंह तमांग ने दो सीटों रेनॉक (10,094 वोटों से) और सोरेंग-चाकुंग (10,480 वोटों से) से जीत दर्ज की है। तमांग की पत्नी कृष्णा कुमारी राय को नाचो-सिंघीथांग सीट से विजेता घोषित किया गया.
गंगटोक में पार्टी कार्यालय में जश्न के दौरान मीडिया से बात करते हुए तमांग ने सिक्किम के लोगों का आभार व्यक्त किया. तमांग ने कहा, ‘जो काम पवन कुमार चामलिंग 25 साल में नहीं कर पाए, हमने पांच साल में कर दिखाया. लोगों ने इसी आधार पर वोट दिया है.’
एसडीएफ को केवल श्यारी निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल हुई है. सिक्किम का यह विधानसभा चुनाव इसलिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे और एसडीएफ नेता पवन कुमार चामलिंग पहली बार चुनाव हार गए हैं.
चामलिंग उन दोनों सीटों (पोकलोक-कामरांग और नामचेयबुंग) से हार गए हैं जहां वे चुनाव लड़ रहे थे. 39 साल में यह पहली बार होगा कि चामलिंग विधायक के तौर पर राज्य विधानसभा में नहीं होंगे.
भले ही भाजपा सिक्किम में एक भी सीट जीतने में विफल रही, लेकिन उसने अपना वोट शेयर 1.62 प्रतिशत से बढ़ाकर 5.18 प्रतिशत कर लिया है. हाल के मिजोरम विधानसभा चुनावों में खाता खोलने में विफल रहने के बाद, यह दूसरा उत्तर-पूर्वी राज्य है जहां केंद्र में सत्ता में होने के बावजूद भाजपा एक भी सीट जीतने में विफल रही है.
अपने चेले की पार्टी से कैसे हार गए चामलिंग?
1994 से 25 वर्षों तक लगातार मुख्यमंत्री रहने वाले पवन चामलिंग की पार्टी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) 2019 का विधानसभा चुनाव मामूली अंतर से हार गई थी. एसडीएफ को 15 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं, सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) 17 सीटें जीतने में कामयाब हुआ था. हालांकि, दोनों दलों के बीच वोट शेयर में मामूली अंतर था. एसडीएफ को 47.63 प्रतिशत और एसकेएम 47.3 प्रतिशत मत मिले थे.
वास्तविक सदस्यों की बात करें तो एसडीएफ के पास 13 सदस्य थे क्योंकि उनमें से दो ने दो-दो सीटों से जीत हासिल की थी. इन 13 में से पवन चामलिंग को छोड़कर शेष 12 ने पाला बदल लिया था, जिनमें से 10 भाजपा में शामिल हो गए थे और अन्य दो सत्तारूढ़ एसकेएम में चले गए थे. इस दलबदल के बाद भाजपा सिक्किम में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बन गई थी
असल में 2014 के चुनावों ने ही एसकेएम के आगमन के संकेत दे दिए थे. एसकेएम का गठन साल 2013 में चामलिंग के पूर्व शिष्य पीएस तमांग ने किया गया था. 2014 के विधानसभा चुनाव में एसकेएम 40.8 प्रतिशत वोट के साथ 10 सीटों पर जीतने में कामयाब हुई थी, जबकि एसडीएफ 55 प्रतिशत वोट के साथ 22 सीटों पर काबिज रही थी.
एसडीएफ शासन में सिक्किम ने कई सामाजिक और आर्थिक संकेतकों में महत्वपूर्ण प्रगति की. प्रति व्यक्ति आय, जीवन प्रत्याशा दर और साक्षरता दर के मामले में राज्य ने राष्ट्रीय औसत की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन एसकेएम का चुनावी अभियान इन उपलब्धियों पर सवाल उठाने और एसडीएफ सरकार में हुए कथित भ्रष्टाचार को उजागर करने पर केंद्रित था. बेरोजगारी की समस्या सत्ता परिवर्तन का मुख्य कारण बनी थी क्योंकि राज्य के 60 प्रतिशत मतदाता 40 वर्ष से कम आयु के हैं.