दिल्ली: कोर्ट ने भीषण गर्मी का संज्ञान लेकर कहा, ‘वो दिन दूर नहीं जब ये शहर बंजर रेगिस्तान बन जाएगा’

इससे पहले राजस्थान हाईकोर्ट ने भी राज्य में भीषण गर्मी के कारण हुई मौतों का स्वत: संज्ञान लिया था और केंद्र सरकार से आग्रह किया था कि वह भीषण गर्मी जैसी मौसमी घटनाओं को राष्ट्रीय आपदा घोषित करे.

(फोटो: अतुल अशोक होवाले/द वायर)

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में राजधानी के लगातार बढ़ रहे तापमान पर संज्ञान लेते हुए चिंता जाहिर की. अदालत ने कहा कि यदि वर्तमान पीढ़ी वनों की कटाई के प्रति उदासीन रवैया अपनाती रही, तो शहर जल्द ही केवल बंजर रेगिस्तान बनकर रह जाएगा.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, कोर्ट ने ये टिप्पणी दिल्ली में वनों के संरक्षण के लिए एक आंतरिक विभागीय समिति के गठन से संबंधित मामले में की. अदालत ने 4 अप्रैल को पूर्व न्यायाधीश जस्टिस नजमी वज़ीरी को इस समिति की अध्यक्षता करने का अनुरोध किया था.

जस्टिस तुषार राव गेडेला की एकल पीठ ने  31 मई को दिए अपने आदेश में कहा, ‘न्यायिक नोटिस इस तथ्य पर लिया गया है कि हाल ही में 30 मई को दिल्ली में आधिकारिक तापमान 52.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था. यदि वर्तमान पीढ़ी वनों की कटाई के प्रति उदासीन दृष्टिकोण जारी रखती है, तो वह दिन दूर नहीं जब यह शहर केवल एक बंजर रेगिस्तान बन कर रह जाएगा.’

हालांकि, दिल्ली के मुंगेशपुर मौसम केंद्र ने 29 मई को अधिकतम तापमान 52.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया था, लेकिन बाद में मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने इसे ‘सेंसर की खराबी’ बता दिया था.

बुनियादी ढांचे की कमी के चलते समिति अपना काम करने में असमर्थ है

उच्च न्यायालय ने 31 मई को सुनवाई के दौरान वनों के संरक्षण के लिए बनाई आंतरिक विभागीय समिति के अध्यक्ष जस्टिस वज़ीरी द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट पर संज्ञान लिया, जिसमें उन्होंने दिल्ली सरकार के वन विभाग को कार्यालय संबंधी सहायक कर्मचारियों, परिवहन आदि अपनी बुनियादी जरूरतों के बारे में सूचित किया था, जिससे ये समिति अपनी जिम्मेदारियों का कुशलतापूर्वक निर्वहन कर सके.

इस संबंध में मुख्य वन संरक्षक ने हाईकोर्ट को बताया कि इन आवश्यकताओं को दिल्ली सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग के मंत्री द्वारा पहले ही मंजूरी दे दी गई है. इसके बाद अंतिम मंजूरी के लिए इसे कैबिनेट और अंत में उपराज्यपाल के समक्ष रखा जाएगा.

इस बीच, एमिकस क्यूरी अधिवक्ता गौतम नारायण ने कहा कि अध्यक्ष को उच्च न्यायालय द्वारा 4 अप्रैल को एक आदेश के जरिए ये कार्यभार सौंपा गया था और एक बार जब अदालत एक आदेश पारित कर देती है, तो कुशल प्रशासन और अध्यक्ष की जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए आवश्यक इंफ्रास्ट्रचर और अन्य सुविधाओं को जल्द से जल्द मुहैया करवाया जाना चाहिए और उन्हें लालफीताशाही में नहीं उलझाना चाहिए.

इसके बाद जस्टिस गेडेला ने कहा, ‘यह अदालत ऐसी स्थिति को बर्दाश्त नहीं कर सकती जहां अध्यक्ष कार्यालय स्थान या सचिवीय और सहायक कर्मचारियों, यहां तक ​​​​कि परिवहन की कमी के कारण जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में असमर्थ हैं. हालांकि, अदालत विभाग को अलग-अलग क्षमता में कर्मचारी उपलब्ध कराने का निर्देश देने के बजाय, वन विभाग को इस मामले को गंभीरता से आगे बढ़ाने का निर्देश देना उचित मानती है और किसी भी स्थिति में ये सभी जरूरतों की मंजूरी के लिए 15 जून से अधिक की देरी नहीं की जानी चाहिए.

इसके साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार जब सक्षम प्राधिकारी मंजूरी दे देता है, तो उसके बाद अगले 15 दिनों के भीतर बुनियादी ढांचे का विकास पूरी तरह से पूरा हो जाना चाहिए.

उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि चूंकि मामले की अगली सुनवाई अब 29 जुलाई को सूचीबद्ध है, इसलिए उम्मीद की जाती है कि सुनवाई की तारीख से पहले अध्यक्ष और समिति की सभी आवश्यकताएं पूरी हो जाएंगी और ये समिति पूरी तरह से काम की स्थिति में आ जाएगी.

इस बीच, समिति अध्यक्ष की रिपोर्ट पर ध्यान देते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह स्पष्ट है कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय; भूमि और विकास कार्यालय; केंद्रीय लोक निर्माण विभाग और दिल्ली छावनी बोर्ड के अधिकारी समिति की बैठकों में भाग नहीं ले रहे हैं.

उच्च न्यायालय ने यह साफ किया कि संबंधित विभागों के सभी अधिकारियों को बुलाए जाने पर सभी बैठकों में भाग लेना होगा, विशेष परिस्थितियों को छोड़कर जब वे ऐसा करने में असमर्थ हों. इसमें कहा गया है कि विशेष बैठक में भाग लेने में अधिकारी की असमर्थता की ‘पूर्व सूचना’ अध्यक्ष को दी जानी चाहिए.

उच्च न्यायालय ने कहा, उपरोक्त सख्त कदम केवल यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से हैं कि समिति दिल्ली में जलवायु परिस्थितियों की बिगड़ती स्थिति को ध्यान में रखते हुए अपनी जिम्मेदारियों और इसके लिए दिए गए संदर्भों को पूरी ईमानदारी से पूरा करे.

इसके बाद अदालत ने सख्त समयसीमा के भीतर अपने निर्देशों का अनुपालन करने को कहा और 10 जुलाई तक इस संबंध में एक अनुपालन रिपोर्ट जमा करने को भी कहा.

गौरतलब है कि इससे पहले राजस्थान हाईकोर्ट ने गुरुवार (30 मई) को राज्य में भीषण गर्मी के कारण हुई मौतों का स्वत: संज्ञान लिया था. अदालत ने केंद्र सरकार से आग्रह किया था कि वह भीषण गर्मी जैसी मौसमी घटनाओं को राष्ट्रीय आपदा घोषित करे. अदालत ने सरकारों को फटकार लगाते हुए मौसमी मार झेल रहे लोगों की समस्या और जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से लेने का भी आग्रह किया था.