क्या ‘इंडिया’ गठबंधन की सरकार बन सकती है?

अगर जनता दल (यूनाइटेड) और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) नरेंद्र मोदी का साथ छोड़ देते हैं, एनडीए संकट में आ सकती है.

मुंबई में हुई बैठक के दौरान विपक्षी के विभिन्न दलों के नेता. (फोटो साभार: INC.IN)

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 224 के सभी नतीजे आना अभी बाकी हैं, लेकिन ताजा तस्वीर के आधार पर अब यह कहा जा सकता है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पिछले दो लोकसभा चुनावों की सफलता को दोहरा नहीं पाई है, और बहुमत हासिल करने के दावों से काफ़ी पीछे रह गई है.

‘अबकी बार 400 पार’ का नारा देने वाली भाजपा ख़बर लिखे जाने तक 240 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है, जो कि 543 सदस्यीय लोकसभा में बहुमत के आंकड़े 272 से बहुत कम है. वहीं, भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) 290 सीट के आस-पास टिका हुआ है.

हालांकि, केंद्र की सत्ता हासिल करने के लिए एनडीए गठबंधन को आवश्यक बहुमत मिलता दिख रहा है, लेकिन इन संभावनाओं को भी ख़ारिज नहीं किया जा सकता है कि अगर भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है, एनडीए गठबंधन की तस्वीर बदल सकती है.

पहली बात तो यह कि पिछले दो चुनावों से भाजपा को मिल रहे पूर्ण बहुमत के तले एनडीए के घटक दल कहीं न कहीं दबे नज़र आते थे, लेकिन अब केंद्र में सत्ता बनाने के लिए भाजपा इन्हीं सहयोगी दलों पर पूरी तरह निर्भर होगी, जिससे वह अपनी मनमानी करने की स्थिति में नहीं रहेगी.

इन नतीजों ने ऐसी संभावनाओं के लिए द्वार खोल दिए हैं कि ‘इंडिया’ गठबंधन मोदी को सत्ता से अपदस्थ करने की स्थिति में आ सकता है.

एनडीए गठबंधन के 290 सीटों के मुकाबले इंडिया गठबंधन 230 सीटों (तृणमूल कांग्रेस समेत) के आसपास फटक रहा है. ऐसी खबरें आने लगी हैं कि कांग्रेस एनडीए में सेंध लगाने के लिए उसके घटक दलों के नेताओं से संपर्क साधने लगी है.

वर्तमान स्थिति में एनडीए में शामिल बिहार में नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) 15 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है और आंध्र प्रदेश में सक्रिय तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) 16 सीटों पर आगे हैं. खबरों के मुताबिक, कांग्रेस के रणनीतिकारों ने दोनों ही दलों के प्रमुख नेताओं से संपर्क साधा है.

बता दें कि कुछ महीने पहले तक नीतीश कुमार की पार्टी जदयू इंडिया गठबंधन का ही हिस्सा थी, वहीं चंद्रबाबू के नेतृत्व वाली टीडीपी भाजपा के साथ अपना गठबंधन तोड़ने के बाद बीते मार्च माह में ही एनडीए में फिर से शामिल हुई थी.

कांग्रेस और इंडिया गठबंधन, इन दोनों ही दलों पर नज़र गढ़ाए हुए हैं. दोनों दलों के खाते में कुल 31 सीटें जाते दिखाई दे रही हैं. अगर ये दोनों दल एनडीए से इंडिया गठबंधन की ओर रुख करते हैं तो एनडीए और भाजपा बहुमत के आंकड़े से पिछड़ जाएगी और इंडिया गठबंधन की सीट संख्या 260 के पार चली जाएगी, जबकि एनडीए की इससे नीचे चली जाएगी.

इसी तरह, बिहार के एक और क्षेत्रीय दल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के खाते में भी 5 सीटें जाती दिख रहे हैं. बता दें कि चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोजपा एक समय कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार का हिस्सा हुआ करती थी, जिसमें चिराग के पिता रामविलास पासवान केंद्रीय मंत्री भी थे. अक्सर सत्ता के करीब रहने वाले लोजपा के बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा से संबंधों में खटास भी आई थी, जो बाद में बहाल हुए थे. लोजपा की सत्ता के करीब रहने की फितरत और अक्सर भाजपा के पिछलग्गू की तरह काम करने की टीस अगर ‘इंडिया’ गठबंधन भुनाने में कामयाब रहता है तो 5 सीटें और उसके खाते में आ सकती हैं जिससे वह बहुमत के और करीब पहुंच सकता है.

वहीं, गौर करने वाली बात है कि महाराष्ट्र में भाजपा ने शिवसेना और राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) दोनों को ही दो-फाड़ करने का काम किया है. इन दलों के सत्तालोलुप नेता अपने समर्थकों के साथ भाजपा के साथ हो गए थे.

भाजपा समर्थक एनसीपी गुट के अजित पवार तो महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के समय भाजपा से हाथ मिलाकर वापस कांग्रेस गठबंधन में लौटने के अभूतपूर्व कारनामे को पहले भी अंजाम दे चुके हैं. फिलहाल अजित पवार के गुट वाली एनसीपी के पास एक सीट है. वहीं, शिवसेना के शिंदे गुट के खाते में 5 सीट जाती दिख रही हैं.

भारतीय राजनीति में सत्तालोलुपता के चलते राजनीतिक दलों में टूट और विलय के उदाहरण पहले भी देखे जा चुके हैं. अगर एनसीपी (अजित पवार गुट) और शिवसेना (शिंदे गुट) को सत्ता के करीब रहने के सपने दिखाकर लुभाने में ‘इंडिया’ गठबंधन कामयाब होता है, तो वह पूर्ण बहुमत हासिल करने में सफल भी हो सकता है. इसमें उसे बीजू जनता दल (बीजद), शिरोमणि अकाली दल, एआईएमआईएम जैसे और भी दलों, जिनके खाते में 1-2 सीटें जाती दिख रही हैं, और साथ ही साथ निर्दलीय सांसदों का भी समर्थन मिल सकता है. बता दें कि वर्तमान स्थिति में 6 निर्दलीय उम्मीदवार भी आगे चल रहे हैं.

बहरहाल, एनडीए के सरकार बनाने की स्थिति में (जिसकी अधिक संभावनाएं हैं) सरकार की स्थिरता उसके घटक दलों पर निर्भर होगी, और मोदी-शाह का दंभ ख़त्म हो जायेगा, जिसके चलते जिन समान नागरिक संहिता (यूसीसी), नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), एक राष्ट्र एक चुनाव, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) जैसे कानूनों को भाजपा उग्रता से देश में लागू करने का ख्वाब देख रही थी, उसे उन्हें ठंडे बस्ते में डालना होगा. साथ ही, सहयोगी दलों की मांगों के आगे भी पार्टी को अपनी सरकार बचाने के लिए घुटने टेकने की स्थिति में आना होगा, जो कि बीते दस सालों की मोदी सरकार की फितरत नहीं रही है.