भाजपा का अहंकार तोड़कर देश की जनता ने जनतंत्र को सार्थक कर दिया है

भाजपा को पूर्ण बहुमत न मिलना इस बात का संकेत है कि उसकी घृणा की राजनीति का वर्चस्व भारत में काफी कठिन है.

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2024 लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद भाजपा मुख्यालय में नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: फेसबुक/@JagatPrakashNadda)

भारत की जनता ने 2024 के लोकसभा चुनाव में जनतंत्र को वापस उसका अर्थ प्रदान कर दिया है. जनतंत्र सिर्फ़ एक विचार और एक आवाज़ के पूर्ण वर्चस्व का नाम नहीं है, यही इन लोकसभा चुनाव नतीजों का संदेश है. भारत जैसे बहुधार्मिक और बहुसांस्कृतिक देश में किसी एक धर्म के मानने वालों को अलग-थलग करके उनके ख़िलाफ़ बहुसंख्यकवादी बहुमत इकट्ठा करने का ख़याल अभी भी, बहुसंख्यकवादी हिंदुत्व के 10 सालों के शासन के बाद भी भारत की जनता को स्वीकार नहीं, यह इस चुनाव परिणाम ने साफ़ कर दिया है.

पिछले 10 सालों से निरंकुश बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में संघीय सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी को इस बार जनता ने बहुमत देने से इनकार कर दिया है. 543 सीटों वाली संसद में बहुमत के लिए ज़रूरी 272 से भाजपा दूर खड़ी है. उसे सिर्फ़ 240 सीटें मिली हैं. वह अभी भी सबसे बड़ा संसदीय दल है और संभव है कि अपने सहयोगियों के साथ मिलकर वह किसी तरह सरकार बना ले लेकिन यह स्पष्ट है कि लोकप्रिय जनादेश नरेंद्र मोदी की चुनाव की अपील के ख़िलाफ़ है.

उन्होंने बार बार हर संसदीय क्षेत्र में जनता को कहा कि वह किसी और को नहीं उन्हें वोट दे रही है. यानी वे ही हर क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं और जनता जब वोट देगी तो किसी और को नहीं उन्हें ही चुनेगी. उनकी यह अपील ठुकरा दी गई है.

मोदी ने अपने मतदाताओं से मुसलमान विरोधी जनादेश मांगा था. उन्होंने अपने मतदाताओं को यह कहकर डराया था कि विपक्षी दल कांग्रेस उनकी संपत्ति और दूसरे संसाधन छीनकर मुसलमानों को दे देगा. अपने चुनाव अभियान को मोदी ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ घृणा प्रचार में बदल दिया और कहा कि विपक्ष हिंदू विरोधी है. भाजपा को पूर्ण बहुमत न मिलना इसका संकेत है कि इस घृणा की राजनीति का वर्चस्व भारत में काफी कठिन है.

भारत की जनता ने साफ़ कहा है कि उसे प्रधानमंत्री के रूप में कोई सम्राट नहीं चाहिए. मोदी ने पिछले 10 सालों में ख़ुद को एक हिंदू सम्राट के रूप में ही पेश किया है. जनता को तरह तरह से समझाने की कोशिश की गई कि मोदी वास्तव में मुग़लों के अत्याचार का बदला ले रहे हैं और पहली बार भारत में हिंदुओं का राज क़ायम हो रहा है. यह चुनाव अभियान पूरी तरह से इस हिंदुत्ववादी अपील के साथ चलाया गया था. मोदी की भाजपा को पूर्ण बहुमत न देकर भारत की जनता ने साफ़ कर दिया है कि उसे यह स्वीकार नहीं है.

यह चुनाव परिणाम कई दृष्टियों से असाधारण है. चुनाव के पहले सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस के खाते से सरकारी एजेंसियों ने जबरन पैसे निकाल लिए और बाद में उसके बैंक खाते सील कर दिए गए. झारखंड और दिल्ली के मुख्यमंत्रियों को गिरफ़्तार कर लिया गया और विपक्षी दलों के कई नेताओं पर छापे मारे गए और उन पर मुक़दमे दायर किए गए.

चुनाव के ठीक पहले सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद सरकार मजबूर हुई कि चुनावी बॉन्ड का ब्योरा जारी करे. तब मालूम हुआ कि भाजपा को इनके ज़रिये 6,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा दिए गए हैं. साधन के मामले में सारा विपक्ष मिलकर भी उससे काफ़ी पीछे था. इस तरह एक साधनहीन विपक्ष को धनबल युक्त भाजपा के मुक़ाबले चुनाव लड़ना था.

पिछले 10 सालों से भारत का बड़ा मीडिया भाजपा के प्रचार तंत्र में बदल गया था. इस चुनाव के दौरान भी मीडिया ने लगातार सरकार और भाजपा के प्रचार विभाग की तरह विपक्ष के ख़िलाफ़ अभियान चलाया.

इन सबके साथ भारत के इतिहास में पहली बार चुनाव आयोग ने भी खुलेआम भाजपा के पक्ष में काम किया. उसने मोदी और भाजपा के द्वारा चुनाव आचार संहिता के बार बार उल्लंघन पर चुप्पी साधे रखी. अलग-अलग जगह देखा गया कि मतदाता सूची में हेरफेर किया गया, कई जगहों पर मुसलमानों को वोट देने से रोका गया, उन पर हिंसा की गई, मतदान धीमा किया गया.

इस भीषण प्रतिकूलता के बावजूद पहली बार एक दूसरे के प्रतियोगी विपक्षी दल साथ आए और उन्होंने मिलकर ‘इंडिया’ गठबंधन के बैनर के नीचे चुनाव लड़ा. वे अपने मतदाताओं को यक़ीन दिलाने में कामयाब हुए कि यह चुनाव साधारण नहीं है और इस बार भारत का संवैधानिक जनतंत्र ख़तरे में है. भाजपा के कई नेताओं ने कहा कि उन्हें 400 सीटें चाहिए ताकि वे संविधान बदल सकें. भारत के दलितों और वंचितों ने समझा कि संविधान के ज़रिये उन्हें जो अधिकार मिले हैं, वे सब छिन जाएंगे और उन्होंने भाजपा के 400 सीटों के मंसूबे पर पानी फेर दिया.

जितने हिंदू नौजवानों से मेरी बात हुई उन सबने कहा कि हिंदू राष्ट्र का सपना दिखलाकर उनके वर्तमान को इस सरकार ने नष्ट कर दिया है. किसी तरह का काम नहीं, नौकरी नहीं. नौजवानों ने देखा कि मोदी लफ़्फ़ाजी और मुसलमान विरोधी घृणा में उलझाकर अपने निकम्मेपन को छिपा रहे हैं. बड़ी संख्या में युवाओं ने इस सरकार को गद्दी से उतारने के लिए अभियान चलाया.

इस तरह जनता ने विपक्ष के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और भाजपा को निरंकुश बहुमत के काफ़ी पहले रोक दिया.

मोदी और भाजपा नेताओं के गालीगलौज और अपमानभरी भाषा के ख़िलाफ़ जनता ने शालीनता, सभ्यता और परस्पर सम्मान की वापसी के लिए मतदान किया है. उसने उस ख़तरे को पहचाना है जो मोदी नीत भाजपा की शक्ल में भारत के संवैधानिक विचार को नष्ट करने पर आमादा है.

यह सच है कि विपक्ष को भी पूर्ण बहुमत नहीं मिला है. लेकिन जनता ने उसे लड़ने की ताक़त दी है. यह जनादेश भारत में धर्मनिरपेक्षता को सुरक्षित रखने, अल्पसंख्यकों के अधिकारों की हिफ़ाज़त और एक बहुलतावादी समाज के सम्मान के लिए है. या समानता, स्वाधीनता, न्याय और बंधुत्व के मूल्यों के पक्ष में दिया गया जनादेश है.

उम्मीद है कि भारत की संवैधानिक संस्थाएं इसका अर्थ समझेंगी और अपना संवैधानिक दायित्व पूरा करने की हिम्मत हासिल कर पाएंगी.

यह जनादेश भारतीय जनता पार्टी के लिए भी अवसर है कि वह ख़ुद को नरेंद्र मोदी के अहंकारपूर्ण क़ब्ज़े से आज़ाद करे और एक सामान्य राजनीतिक दल के रूप में काम करना शुरू करे. अभी भाजपा में सभी नरेंद्र मोदी के अनुचर मात्र रह गए हैं.

इन चुनाव नतीजों से मौक़ा मिला है कि भारत जो पिछले 10 सालों में हिंदुत्व के द्वारा बुरी तरह क्षत-विक्षत कर दिया गया है, अपने घावों का इलाज कर सके. यह उसके स्वास्थ्य की वापसी की शुरुआत है.

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं.)