नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के इंदौर में कांग्रेस उम्मीदवार द्वारा चुनाव के आखिरी समय में अपना नामांकन वापस लेने और कुछ ही घंटों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने से कोई विकल्प न होने के कारण वहां निर्विरोध चुनाव का रास्ता साफ हो गया था, लेकिन मतदाताओं ने किसी भी लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक संख्या में ‘इनमें से कोई नहीं’ (नोटा) का बटन दबाकर जवाब दिया है.
इंदौर में कुल 2,18,674 नोटा वोट दर्ज किए गए, जिससे यह चुनाव में दूसरे स्थान पर रहा, जबकि भाजपा के शंकर लालवानी ने कुल 12,26,751 वोटों के साथ चुनाव जीता.
चुनाव निगरानी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों को मिलाकर 1.29 करोड़ से अधिक नोटा वोट दर्ज किए गए हैं.
मध्य प्रदेश के इंदौर लोकसभा क्षेत्र के कांग्रेस उम्मीदवार अक्षय कांति बाम द्वारा अपना नामांकन वापस लेने और भाजपा में शामिल होने के बाद यहां से कोई प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार मैदान में नहीं था.
तब द वायर ने एक रिपोर्ट में बताया था कि दो निर्दलीय और एक जनता कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार सहित तीन उम्मीदवारों ने आरोप लगाया था कि नाम वापसी के फॉर्म पर ‘फर्जी हस्ताक्षर’ लिए गए थे, जबकि उन्हें चुनाव न लड़ने के लिए दबाव और डराने-धमकाने वाले कॉल किए गए थे.
गुजरात के सूरत में कांग्रेस उम्मीदवार के नामांकन पत्र को नाटकीय ढंग से खारिज किए जाने के कुछ ही दिनों बाद बाम के नाम वापस लेकर भाजपा में शामिल होने का घटनाक्रम सामने आया था. सूरत में भाजपा के मुकेश दलाल को 18वीं लोकसभा के पहले सांसद के रूप में बिना किसी चुनाव के निर्विरोध लोकसभा सांसद घोषित किया गया.
इंदौर में चुनावी मैदान में उतरे सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट) के उम्मीदवार अजीत सिंह पंवार ने भी द वायर से कहा था कि भाजपा ने उन पर चुनाव न लड़ने के लिए दबाव डाला और उन्हें मजबूर किया.
इंदौर में मतदाताओं से नोटा बटन चुनने का आह्वान मध्य प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने 13 मई को निर्वाचन क्षेत्र में मतदान से पहले किया था. द वायर को दिए गए एक इंटरव्यू में पटवारी ने आरोप लगाया कि भाजपा ने इंदौर में ‘लोकतंत्र की हत्या’ की है और मतदाताओं को वोट देने के अधिकार से वंचित किया है.
पटवारी का कहना था कि नोटा बटन के जरिये इंदौर की जनता देश को संदेश दे सकती है.
मतदाताओं को नोटा विकल्प पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) में साल 2013 में मिला था. उसी वर्ष सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में कहा था कि मतदाताओं को मतदान केंद्र में पहुंचकर किसी भी उम्मीदवार को वोट न देने का निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए. इसी के बाद यह बदलाव हुआ था.
इसके बाद इस बटन का प्रयोग पहली बार 2013 में ही छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, मिजोरम और दिल्ली के विधानसभा चुनावों तथा उसके बाद 2014 के आम चुनावों में किया गया.