एनडीए सरकार बनाने के लिए जोड़तोड़ शुरू, चंद्रबाबू नायडू ने शिक्षा और वित्त सहित नौ मंत्रालय मांगे

लोकसभा में बहुमत से बहुत दूर रही भाजपा के लिए तेलुगू देशम पार्टी का साथ महत्वपूर्ण है. एन. चंद्रबाबू नायडू भाजपा के साथ बातचीत के लिए पूरी तरह तैयार बताए जा रहे हैं और उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष पद के साथ वित्त, कृषि जैसे विभिन्न मंत्रालयों की भी मांग की है.

प्रधानमंत्री आवास पर 5 जून को हुई बैठक में नरेंद्र मोदी, चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार. (फोटो साभार: भाजपा)

नई दिल्ली: 18वीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव में देश में दस सालों से सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को सर्वाधिक सीटें हासिल हुई हैं और कहा जा रहा है यह सरकार बनाने को तैयार है.

हालांकि, बीते दो बार के चुनावों के उलट गठबंधन की मुख्य पार्टी भाजपा इस बार बहुमत के आंकड़े (272) से दूर 240 पर ही सीमित हो गई है जिसका अर्थ है कि यह सरकार बनाने के लिए उसके सहयोगी दलों- मुख्य रूप से तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) और जनता दल (यूनाइटेड) पर निर्भर है.

तेदेपा को आंध्र प्रदेश विधानसभा में स्पष्ट बहुमत मिलने के साथ लोकसभा की 16 सीटों पर जीत मिली है, वहीं जदयू को 12 सीटें मिली हैं.

चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि भाजपा के सहयोगी दल इस बार उसके सामने कुछ खास शर्तें रख सकते हैं.

इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि दोनों पार्टियों ने पहले ही भाजपा नेतृत्व को संकेत दे दिया है कि वे चाहते हैं कि लोकसभा अध्यक्ष का पद गठबंधन के सहयोगियों को दिया जाना चाहिए.

ऐसा कहा जा रहा है कि यह कदम भविष्य में गठबंधन में किसी भी संभावित फूट से ‘बचाने’ के लिए है. मालूम हो कि दलबदल विरोधी कानून में लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि अंतिम निर्णय का समय और प्रकृति पूरी तरह उनके फैसले पर निर्भर होती है.

सूत्रों ने यह भी बताया कि तेदेपा प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू और जदयू प्रमुख व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस बारे में भाजपा के कुछ अन्य सहयोगियों से बातचीत की है.

उल्लेखनीय है कि 1990 के दशक के अंत में जब अटल बिहारी वाजपेयी गठबंधन सरकार बनी थी, तब तेदेपा के जीएमसी बालयोगी लोकसभा अध्यक्ष थे.

संवैधानिक तौर पर देखें, तो लोकसभा अध्यक्ष का पद आमतौर पर सत्तारूढ़ दल के पास जाता है, जबकि उपाध्यक्ष का पद पर पारंपरिक रूप से विपक्षी दल के सदस्य रहते हैं. हालांकि, लोकसभा के इतिहास में पहली बार हुआ था कि पिछली 17वीं लोकसभा में कोई उपाध्यक्ष नहीं रहा.

नायडू की शर्तें

जहां एक तरफ नीतीश कुमार बार-बार पाला बदलने के लिए बदनाम हैं, वहीं चंद्रबाबू नायडू साल 2018 में एनडीए से बाहर हो गए थे, हालांकि वर्तमान आम चुनावों से पहले उन्होंने फिर से भाजपा से हाथ मिला लिया था.

नायडू ने आंध्र प्रदेश में भाजपा और जनसेना पार्टी (जेएसपी) के साथ गठबंधन में ही आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें कुल 175 सीटों में से 134 पर जीत हासिल करने वाली तेदेपा को राज्य सरकार बनाने के लिए भाजपा के समर्थन की जरूरत नहीं है. हालांकि अगली केंद्र सरकार बनाने में इसकी निर्णायक भूमिका होगी.

चुनावी नतीजे आने के बाद नायडू बुधवार को दिल्ली पहुंच चुके हैं और एक प्रेस वार्ता में उन्होंने एनडीए को समर्थन देने को लेकर प्रतिबद्धता जताई है. खबर है कि गुरुवार सात जून को एनडीए के जीते हुए सदस्य संसद भवन के सेंट्रल हॉल में मिलेंगे और आगे की रणनीति तय की जाएगी.

इंडिया टुडे के मुताबिक, नायडू भाजपा के साथ विभिन्न स्तरों पर बातचीत के लिए पूरी तरह तैयार हैं और उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष पद के साथ विभिन्न मंत्रालयों की भी मांग की है.

इंडिया टुडे ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि चंद्रबाबू नायडू ने वित्त, सड़क परिवहन, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य, आवास और शहरी मामले, कृषि, जलशक्ति, आईटी और संचार के साथ ही शिक्षा मंत्रालय उन्हें देने को कहा है. सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि तेदेपा ने गृह और रक्षा मंत्रालय भी मांगा है.

इसके अलावा उन्होंने कैबिनेट में पांच से छह तेदेपा नेताओं को राज्यमंत्री के तौर पर शामिल करने की मांग रखी है.

दूसरी तरफ, बताया जा रहा है कि जदयू ने गृह और वित्त मंत्रालय के साथ रेल मंत्रालय मांगा है.

कई सरकारों में निर्णायक रहे हैं नायडू 

यह पहली बार नहीं है जब चंद्रबाबू नायडू इस स्थिति में हैं.

साल 1996 में लोकसभा चुनावों में मिले खंडित जनादेश के बाद नायडू ने कांग्रेस या भाजपा से इतर दलों के गठबंधन ‘यूनाइटेड फ्रंट’ के संयोजक तौर पर कांग्रेस को बाहरी समर्थन दिया था, जिससे एचडी देवेगौड़ा की अगुवाई वाली सरकार बनी थी. उन्होंने इसी लोकसभा अवधि के दौरान इंद्र कुमार गुजराल के नेतृत्व में केंद्र सरकार बनाने में भी मदद की थी.

साल 1999 में नायडू ने भाजपा के साथ गठबंधन में लोकसभा चुनाव लड़ा और संयुक्त आंध्र प्रदेश में 29 सीटें हासिल कीं. उन्होंने तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का समर्थन किया, जो बहुमत के आंकड़े से दूर थी. 29 सीटों के साथ उनकी पार्टी भाजपा की सबसे बड़ी सहयोगी थी, पर वह सरकार में शामिल नहीं हुई.

साल 2014 में भी नायडू ने भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था और मोदी सरकार में शामिल हुए थे.