लोकसभा चुनाव 2024: पिछली बार के मुक़ाबले महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़ी, पर जीत कम हुई

इस बार 797 महिला उम्मीदवार चुनावी मैदान में थीं, जिसमें से 75 ने जीत हासिल है. जहां केरल,गोवा समेत 8 राज्यों में एक भी महिला प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सकी, वहीं पश्चिम बंगाल में सर्वाधिक दस सीटों पर महिला उम्मीदवार जीती हैं.

(बाएं से) शांभवी चौधरी, इक़रा हसन चौधरी, वर्षा गायकवाड़ और भारती पारधी. (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आ चुके हैं और इसी के साथ संसद में बैठने वाले 543 सांसदों की तस्वीर भी साफ हो गई है. इन चुनावों में भारत की आधी आबादी यानी महिलाओं की उम्मीदवारी भी अब तक की सबसे बड़ी भागीदारी थी. ये पहला ऐसा मौका था, जब सबसे ज्यादा 797 महिला प्रत्याशी मैदान पर थीं.

हालांकि सिर्फ 75 महिलाएं ही चुनाव जीत सकीं, जो पिछले 2019 लोकसभा चुनाव से तीन कम हैं. तब 78 महिलाएं संसद पहुंची थीं.

चुनाव के नतीज़ों पर गौर करें तो, इस बार देश के 8 राज्यों- केरल, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मणिपुर, मेघालय, नगालैंड, मिजोरम और सिक्किम से एक भी महिला प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सकी है. वहीं, पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक 10 सीटों पर महिला उम्मीदवारों को जीत मिली है.

इस बार राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टियों की बात करें, तो 2024 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 16 प्रतिशत महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया था, वहीं कांग्रेस की ओर से 13 प्रतिशत उम्मीदवार महिलाएं थीं. आम आदमी पार्टी ने किसी भी महिला उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा था.

नतीज़ों में भाजपा की 69 महिला उम्मीदवारों में से 31 ने जीत हासिल की. वहीं कांग्रेस की 41 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं, जिनमें से 13 को जीत मिली. वहीं अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की 12 महिला उम्मीदवारों में से 10 ने जीत हासिल की. समाजवादी पार्टी की ओर से 5 महिलाएं इस बार संसाद चुनी गई हैं.

आरक्षित सीटों की बात करें, तो इस बार कुल 131 आरक्षित सीटों में से 18 पर महिला उम्मीदवार चुनी गई हैं. इसमें अनुसूचित जाति (एससी) समुदायों के लिए आरक्षित 84 सीटों में से 13 प्रतिशत सीटों पर महिलाओं ने जीत हासिल की, जबकि 47 अनुसूचित जनजाति (एसटी) आरक्षित सीटों में से 15 प्रतिशत सीटें महिला उम्मीदवारों के खाते में गईं.

कुछ चर्चित महिला उम्मीदवार, जो पहली बार संसद के लिए चुनी गईं

वर्षा गायकवाड़: मुंबई नॉर्थ सेंट्रल से कांग्रेस पार्टी ने धारवी विधायक और मुंबई कांग्रेस की अध्यक्ष वर्षा गायकवाड़ को मैदान में उतारा था. इस सीट पर भाजपा से पूर्व विशेष लोक अभियोजक उज्ज्वल निकम खड़े थे, जिन्हें वर्षा ने 16,514 मतों से हराया है. वर्षा गायकवाड़ दलित समुदाय से आती हैं और मुंबई के धारावी से साल 2004 से लगातार चार बार विधायक के तौर पर चुनी जाती रही हैं. वर्षा राज्य की महाविकास अघाड़ी सरकार में स्कूली शिक्षा मंत्री रहीं थी और पहले भी वे कांग्रेस-एनसीपी की सरकार में महिला और बाल विकास मंत्री के तौर पर काम कर चुकी हैं. पांच साल वे प्राध्यापिका भी रही हैं.

मंजू शर्मा: राजस्थान की जयपुर सीट से भाजपा की मंजू शर्मा ने कांग्रेस के प्रताप सिंह खाचरियावास को 3,31,767 वोटों से मात दी है. मंजू शर्मा राजस्थान महिला प्रवासी अभियान की जयपुर प्रभारी हैं. 64 वर्षीय मंजू शर्मा भाजपा की पूर्व महिला मोर्चा प्रदेश महामंत्री रह चुकी हैं. उनके पिता भंवर लाल शर्मा 1977 से 1998 तक हवामहल विधानसभा सीट से 6 बार विधायक रहे हैं.

इकरा हसन चौधरी: उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट से 27 साल की इकरा हसन ने शानदार जीत हासिल की है. भाजपा के दबदबे वाली इस सीट पर इकरा हसन ने भाजपा के प्रदीप चौधरी को कांटे की टक्कर में 7,000 वोटों से हरा दिया. इकरा पूर्व सांसद अख्तर हसन की पोती और पूर्व सांसद मुनव्वर हसन और तबस्सुम हसन की बेटी हैं और यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन से इंटरनेशनल लॉ एंड पॉलिटिक्स में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है.

इकरा नागरिकता संशोधन कानून के विरोध को लेकर सुर्खियों में आईं थीं. उन्होंने अपने भाई नाहिद हसन के गिरफ्तार होने के बाद परिवार के राजनीति की बागडोर संभाली. इकरा ने साल 2016 में पहली बार जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें 5,000 वोट से हार का सामना पड़ा था. हालांकि, वह हार नहीं मानी और कैराना की राजनीति में सक्रिय रहीं. इकरा पश्चिमी यूपी की सबसे युवा सांसद बनी हैं.

कंगना रनौत: बॉलीवुड ‘क्वीन’ के नाम से मशहूर भाजपा उम्मीदवार कंगना रनौत ने अपने पहले ही चुनाव में मंडी लोकसभा सीट से जीत हासिल कर ली है. उन्होंने कांग्रेस की ओर से खड़े हिमाचल प्रदेश के पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह और प्रतिभा सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह को 74,755 वोटों से हराया है.

कंगना रनौत का जन्म 23 मार्च 1987 में हिमाचल के मंडी जिले में राजपूत परिवार में हुआ था. बॉलीवुड में अपना लोहा मनवाने के बाद कंगना लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गईं थीं. उन्हें नेपोटिज्म से लेकर राजनीतिक मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखने के लिए अक्सर विवादों में रहती हैं.

शांभवी चौधरी: बिहार की समस्तीपुर लोकसभा सीट से जीत दर्ज कर शांभवी चौधरी देश की सबसे युवा सांसद बन गई हैं. शांभवी लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास) की टिकट पर चुनाव लड़ी थीं और उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार सनी हजारी को 1,87,251 वोटों से हराया है.

शांभवी हाल में राजनीति में आईं हैं. वो पहली बार किसी राजनीतिक पार्टी की सदस्य बनीं और उन्हें लोकसभा का टिकट मिल गया. हालांकि शांभवी के पिता अशोक चौधरी जदयू नेता हैं और नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री हैं. शांभवी की शादी बिहार के चर्चित आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल के बेटे सायण कुणाल से हुई है.

बांसुरी स्वराज: दिवंगत भाजपा नेता सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी स्वराज ने नई दिल्ली लोकसभा सीट से 70 हजार से अधिक वोटों से जीत हासिल की है. पेशे से वकील बांसुरी ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की है. बांसुरी ने 2023 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा और इस बार अपने पहले ही चुनाव में जीत हासिल की.

बांसुरी स्वराज की उम्मीदवारी पर आम आदमी पार्टी ने कड़ी आपत्ति जताई थी. उनका कहना था कि बांसुरी ललित मोदी का केस देखती रही हैं और मणिपुर में महिलाओं के साथ हुई बदसलूकी और उत्पीड़न के मामले में केंद्र की वकील हैं.

भारती पारधी: मध्य प्रदेश के बालाघाट से पहली महिला सांसद बनी भाजपा की भारती पारधी ने 1,74,512 मतों से कांग्रेस प्रत्याशी सम्राट सिंह सरस्वार को हराया है. भारती की राजनीति में शुरुआत बतौर जिला पंचायत सदस्य से हुई थी. पारधी फिलहाल बालाघाट नगर पालिका में पार्षद हैं. इससे पहले वह पंचायत चुनाव भी लड़ चुकी हैं. उन्होंने लालबर्रा से जिला पंचायत का चुनाव जीता था. अब पराधी पार्षद से सीधा सांसद चुनी गईं हैं.

क्या बढ़ेगी महिलाओं की राजनीति में भागीदारी 

गौरतलब है कि मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के आखिरी समय में संसद में नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित किया था. जिसके अंतर्गत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटों पर आरक्षण का प्रावधान है. हालांकि ये कब से लागू होगा इसकी अभी कोई ठोस जानकारी नहीं है.

ये हमारे समाज की विडंबना ही है कि आधी आबादी को राजनीतिक पार्टियां चुनाव में उम्मीदवार बनाने से कतराती हैं. कई जगह दिग्गजों के खिलाफ सिर्फ नाम के लिए उन्हें खड़ा कर दिया जाता है. पार्टियां महिलाओं को लेकर तमाम वादे तो करती हैं, लेकिन जब अमल की बात आती है, तो इससे कोसों दूर नज़र आती हैं.

इतिहास देखें, तो 1962 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं के जीत का प्रतिशत भी उत्साहित करने वाला था, तब सिर्फ 74 महिलाएं चुनाव लड़ी थीं, जिनमें से 48.64 प्रतिशत को जीत मिली थी. पिछले चुनाव 2019 में कुल पुरुष उम्मीदवार 7,334 थे तो महिला उम्मीदवारों की संख्या 715 थी. लोकसभा चुनाव 78 महिलाओं ने जीता था, जो करीब 15 प्रतिशत संख्या थीं.

वहीं इस बार 797 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं, लेकिन जीत प्रतिशत 9.41 रह गया है यानी 10 में से एक महिला उम्मीदवार चुनाव जीत रही है. इससे साफ है कि महिलाओं की राजनीति में बढ़ती भागीदारी आज भी सवालों के घेरे में ही है.