पूर्वांचल की राजनीति का आईना: रामभुआल निषाद की मेनका गांधी पर जीत

गोरखपुर के बड़हलगंज क्षेत्र के रहने वाले रामभुआल निषाद अपने 28 वर्ष के राजनीतिक करिअर में बसपा, सपा, भाजपा में लगातार आवाजाही करते रहे हैं. सुल्तानपुर सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी को हराकर उन्होंने 18 वर्ष और छह लगातार चुनाव हारने के बाद जीत हासिल की है.

रामभुआल निषाद. (फोटो साभार: फेसबुक)

गोरखपुर: आठ बार से लगातार चुनाव जीत रहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी को सुल्तानपुर में हराने वाले सपा नेता रामभुआल निषाद चर्चा में हैं. रामभुआल निषाद तीन दशक से लगभग हर चुनाव लड़ते आ रहे हैं चाहे उन्हें किसी भी पार्टी का सहारा लेना पड़े. उन्हें हार-जीत का ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. साथ ही, वह कहीं से भी चुनाव लड़ने को तैयार रहते हैं.

62 वर्षीय रामभुआल निषाद गोरखपुर के बड़हलगंज क्षेत्र के दवनडीह गांव के रहने वाले हैं. अपने 28 वर्ष के राजनीतिक करिअर में वे बसपा, सपा, भाजपा में लगातार आवाजाही करते रहे हैं. निषाद समाज में पकड़ रखने और राजनीतिक खतरा उठाने की हिम्मत के चलते वे हर राजनीतिक दल की  पसंद रहे हैं. किसी संकोच या अफ़सोस के बगैर तमाम दलों से गुजरता उनका जीवन पूर्वांचल की राजनीति का आईना भी है.

रामभुआल निषाद इस लोकसभा चुनाव के पहले सात विधानसभा और दो लोकसभा का चुनाव लड़ चुके थे. इस दौरान उन्हें सिर्फ दो बार (2002 विधानसभा और 2006 उपचुनाव) गोरखपुर के कौड़ीराम विधानसभा क्षेत्र से सफलता मिली.

इसके बाद से चुनावी सफलता उनसे रूठी रही, लेकिन इस लोकसभा चुनाव में उन्हें मेनका संजय गांधी जैसी वरिष्ठ नेता को हराकर सबका ध्यान अपनी ओर खींचा हैं.

लंबा राजनीतिक सफर और दल-बदल

रामभुआल निषाद ने सबसे पहला चुनाव 1996 में गोरखपुर जिले के चिल्लूपार क्षेत्र से बतौर निर्दल लड़ा था. यहां से बाहुबली नेता पंडित हरिशंकर तिवारी चुनाव लड़ रहे थे. इस चुनाव में रामभुआल निषाद को 6,983 वोट मिले थे.

इसके बाद वे 2002 का विधानसभा चुनाव बसपा के टिकट पर कौड़ीराम विधानसभा क्षेत्र से लड़े और जीते. इस चुनाव में उन्हें सिर्फ 569 वोट से जीत मिली थी. उनसे हारे सपा प्रत्याशी अंबिका सिंह मतगणना में गड़बड़ी को लेकर हाईकोर्ट चले गए. हाईकोर्ट ने 28 अक्टूबर 2005 को यह चुनाव रद्द घोषित कर दिया. रामभुआल निषाद इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश की पुष्टि की.

इस कारण 25 मार्च 2006 को कौड़ीराम से उपचुनाव हुआ. अब भाजपा ने शीतल पांडेय को चुनाव मैदान में उतारा. शीतल पांडेय को जिताने के लिए गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने पूरा जोर लगाया लेकिन रामभुआल 10,629 वोट से जीतने में कामयाब रहे.

रामभुआल निषाद 2002 में विधायक बनने के बाद मायावती सरकार में पिछड़ा वर्ग कल्याण राज्य मंत्री बने लेकिन 15 महीने बाद ही मायावती सरकार गिरने के बाद वे सपा के साथ आ गए. मुलायम सरकार में भी उन्हें कारागार राज्यमंत्री बनाया गया.

वर्ष 2007 का विधानसभा चुनाव रामभुआल कौड़ीराम से सपा के टिकट पर लड़े लेकिन अंबिका सिंह से हार गए जो अब बसपा में शामिल हो चुके थे. अंबिका सिंह को 56,072 वोट मिले तो रामभुआल निषाद को 42,148 मत मिले. भाजपा प्रत्याशी उपेंद्र दत्त शुक्ल 15,845 मत प्राप्त कर तीसरे स्थान पर रहे.

पांच वर्ष बाद 2012 में परिसीमन के बाद कौड़ीराम विधानसभा क्षेत्र का नाम गोरखपुर ग्रामीण हो गया. इस चुनाव में रामभुआल निषाद ने फिर पाला बदल लिया और बसपा से चुनाव लड़ा. सपा ने जफर अमीन डक्कू को चुनाव लड़ाया तो भाजपा ने विजय बहादुर यादव को टिकट दिया. इस चुनाव में भाजपा के विजय बहादुर यादव चुनाव जीते. रामभुआल निषाद तीसरे स्थान पर रहे.

इसी चुनाव में भोजपुरी अभिनेत्री काजल निषाद राजनीति में प्रवेश करते हुए कांग्रेस से चुनाव लड़ीं. उन्हें 17,836 वोट मिले. रामभुआल निषाद के चुनाव हारने का वह कारण बनीं. चुनाव के दौरान काजल निषाद पर हमला हुआ था और उन्हें रामभुआल निषाद के खिलाफ एफआईआर कराई थी. काजल निषाद के खिलाफ भी केस दर्ज हुआ था.

इस चुनाव में हार के बाद रामभुआल निषाद 2014 का चुनाव गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र से लड़ गए. उन्हें बसपा ने उम्मीदवार बनाया. सपा से पूर्व मंत्री जमुना निषाद की पत्नी राजमती निषाद लड़ी. दोनो प्रत्याशियों को मुकाबला योगी आदित्यनाथ से था. योगी आदित्यनाथ ने 51.80 फीसदी मत प्राप्त किया और दोनों निषाद नेता पराजित हुए. रामभुआल निषाद तीसरे स्थान पर रहे.

2014 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद रामभुआल निषाद भाजपा में शामिल हो गए. उन्हें उम्मीद थी कि 2017 के विधानसभा चुनाव में गोरखपुर ग्रामीण या चौरीचैरा से भाजपा का टिकट मिलेगा लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला. नाराज हो उन्होंने भाजपा छोड़ दी और सपा में शामिल हो गए.

सपा ने उन्हें 2017 विधानसभा का चुनाव लड़ने गोरखपुर जिले के चिल्लूपार भेज दिया. यहां उनका मुकाबला बाहुबली नेता एवं पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी से हुआ. विनय शंकर तिवारी भाजपा से चुनाव लड़ रहे थे. रामभुआल यह चुनाव भी हारे और तीसरे स्थान पर रहे.

दो वर्ष बाद 2019 के लोकसभा चुनाव आए तो रामभुआल निषाद फिर गोरखपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े. सपा ने उन्हें उम्मीदवार बनाया. इस बार उनका मुकाबला फिल्म अभिनेता रवि किशन शुक्ल से हुआ. रवि किशन शुक्ल ने उन्हें तीन लाख के बड़े अंतर से हराया.

लगातार हार के बाद भी रामभुआल निषाद का हौसला नहीं टूटा. वे 2022 के विधानसभा चुनाव में कूद पड़े. सपा ने उन्हें देवरिया जिले की रुद्रपुर विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ने भेजा. वहां भी वे मजबूती से लड़े लेकिन भाजपा प्रत्याशी जय प्रकाश निषाद से चुनाव हार गए. रामभुआल दूसरे स्थान पर रहे जबकि कांग्रेस के अखिलेश प्रताप सिंह को तीसरा स्थान मिला.

लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान एक जनसभा में सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ रामभुआल निषाद. (फोटो साभार: फेसबुक)

इस लोकसभा चुनाव में सपा ने गोरखपुर से काजल निषाद को प्रत्याशी बना दिया तो रामभुआल निषाद को चुनाव लड़ने की हसरत को धक्का लगा. वे दूसरे दल और दूसरी सीट ढूंढने लगे. उनका नाम महाराजगंज लोकसभा सीट पर चलने लगा. चर्चा हुई कि कांग्रेस उन्हें प्रत्याशी बना सकती है.

इसी बीच सपा ने सुल्तानपुर में पूर्व घोषित प्रत्याशी भीम निषाद की जगह रामभुआल निषाद को चुनाव लड़ने के लिए बुला लिया. रामभुआल गोरखपुर से सुल्तानपुर चले गए और वहां जाकर कड़े संघर्ष में धमाकेदार जीत दर्ज की.

इस तरह रामभुआल निषाद को 18 वर्ष बाद और छह बार लगातार चुनाव हारने के बाद जीत नसीब हुई है.

‘निषाद समाज को वोट के सौदागरों के हाथों ठगने नहीं दूंगा’

द वायर से बात करते हुए रामभुआल निषाद ने कहा कि मंत्री बनने के बाद वह पूरे प्रदेश में सक्रिय रहे और हर क्षेत्र के लोग उन पर भरोसा करते हैं. इसीलिए वे कहीं से भी चुनाव लड़ने को तैयार रहते हैं.’

वे कहते हैं, ‘सुल्तानपुर में पूरे प्रदेश से लोग हमारे लिए प्रचार करने आए थे. सुल्तानपुर में मतदान हो जाने के बाद वह जब कुशीनगर में सपा का प्रचार करने गए तो वहां लोगों ने तमकुहीराज विधानसभा से अगला चुनाव लड़ने का आग्रह किया. घोसी में प्रचार करने गए तो वहां के निषाद समाज ने अगला विधानसभा चुनाव मधुबन सीट से लड़ने को कहा. मैने कहा कि मैं कहां-कहां चुनाव लडूंगा. नतीजे आने दीजिए. मुझे विश्वास था कि मैं सुल्तानपुर से चुनाव जीत जाउंगा.’

रामभुआल चुनाव जीतने के बाद पांच जून को सुल्तानपुर से गोरखपुर पहुंचे और रास्ते में फैजाबाद, बस्ती, संतकबीर नगर और गोरखपुर में उनका कई स्थानों पर जोरदार स्वागत हुआ. इस दौरान उन्होंने मीडिया से बातचीत में निषाद पार्टी पर जोरदार हमला बोला और कहा कि अब मैं निषाद समाज को वोट के सौदागरों के हाथों ठगने नहीं दूंगा.

उनकी जीत से गोरखपुर और आस-पास के जिलों के कई नेता बहुत राहत महसूस कर रहे हैं. यह राहत इसलिए महसूस हो रही है कि अब वे सुल्तानपुर में टिककर राजनीति करेंगे और स्काईलैब की तरह किसी भी क्षेत्र में उनके गिरने का अंदेशा अब नहीं रहेगा.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)