नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश (यूपी) में जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सीटों के भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है, वहीं उसके अधिकांश सहयोगी दल भी उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन करने में विफल रहे.
भाजपा ने यूपी में 2024 लोकसभा चुनाव चार सहयोगियों के साथ मिलकर लड़ा था, जहां इसे पश्चिम यूपी में राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) और पूर्वांचल में निषाद पार्टी, अपना दल (सोनेलाल) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) का साथ मिला था.
इन चारों दलों को जाट, निषाद, कुर्मी और राजभर जैसी अन्य पिछड़ा वर्ग में आने वाली जातियों का समर्थन प्राप्त है, जिसके बलबूते पर भाजपा कि यादव विरोधी ओबीसी राजनीति को हवा दी.
यूपी की 80 सीटों में से पांच पर भाजपा के सहयोगियों ने चुनाव लड़ा था. जयंत सिंह की रालोद चुनाव से ठीक पहले विपक्ष से सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल हुई थी, उसने अपनी दोनों सीटों- बागपत और बिजनौर पर जीत दर्ज की है.
पिछले दो लोकसभा चुनावों में रालोद का खाता नहीं खुल सका था. 2019 में जब उसने सपा-बसपा महागठबंधन के साथ तीन सीटों पर चुनाव लड़ा, तब भी वह खाली हाथ ही रह गई थी.
हालांकि, भाजपा को रालोद के साथ अपने गठबंधन का पूरा लाभ नहीं मिल सका और पश्चिम यूपी की दो प्रमुख सीटों- मुजफ्फरनगर और शामली में उसे हार का सामना करना पड़ा.
2014 के बाद से यूपी में अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाली अपना दल भाजपा की लगातार सहयोगी रही है. पटेल नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री हैं और उनके पति आशीष पटेल राज्य में योगी आदित्यनाथ द्वारा संचालित सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं.
2014 और 2019 दोनों चुनावों में दो सीटें जीतने वाला अपना दल इस चुनाव में केवल एक सीट जीतने में सफल रहा. पार्टी नेता अनुप्रिया पटेल ने वाराणसी से सटी सीट मिर्ज़ापुर मात्र 37,810 वोटों के अंतर से जीती है. उन्हें इस बार 42.67% वोट मिले, जबकि 2019 में यह आंकड़ा 53.3% था.
अपना दल कृषक कुर्मी समुदाय के समर्थन पर निर्भर करती है. हालांकि, वह रॉबर्ट्सगंज की एससी आरक्षित सीट पर जीत हासिल करने में विफल रही. यहां सपा प्रत्याशी छोटेलाल खरवार ने अपना दल की प्रत्याशी रिंकी कोल को 1.29 लाख वोटों से हराया है. 2019 में अनुप्रिया पटेल की पार्टी ने यह सीट 54,000 से अधिक वोटों से जीती थी.
भाजपा के सहयोगियों को मिली एक और सीट संत कबीर नगर थी, जहां मौजूदा भाजपा सांसद और निषाद पार्टी के अध्यक्ष व कैबिनेट मंत्री संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद चुनाव हार गए हैं.
प्रवीण निषाद, निषाद पार्टी से जुड़े होने के बावजूद सीट-बंटवारे में हुए समझौते के तहत एक बार फिर भाजपा के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़े थे. उन्हें सपा के उम्मीदवार और पूर्व विधायक लक्ष्मीकांत निषाद ने 92,000 से अधिक वोटों से मात दी है.
हालांकि, भाजपा के सहयोगियों में से सबसे शर्मनाक हार पूर्वांचल के घोसी क्षेत्र में हुई, जहां सपा के राजीव राय ने सुभासपा के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर को 1.62 लाख वोटों से हराया है.
ओम प्रकाश राजभर 2022 में सपा के नेतृत्व वाले गठबंधन के साथ मिलकर 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद एनडीए में लौट आए थे, जिसके बाद से उनके समुदाय के लोगों के भीतर उनके प्रति नाराजगी थी.
राजभर ने अपने समुदाय से वादा किया था कि वे भाजपा की अगुवाई वाली सरकार से राज्य में 27% ओबीसी कोटा को विभाजित करने की पैरवी करेंगे. हालांकि बाद में उन्होंने अपना रुख बदल लिया और आश्वासन दिया कि वे समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता दिलाएंगे.
हालांकि, आदित्यनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री बनने के बावजूद इनमें से कोई भी वादा पूरा नहीं हुआ.
निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद के लिए भी यही आलोचना लागू होती है, जिन्होंने अपने समुदाय से वादा किया था कि वे उसे ओबीसी से अनुसूचित जाति श्रेणी में शामिल करने के लिए केंद्र की भाजपा सरकार से आग्रह करेंगे. हालांकि ऐसा नहीं हुआ.
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