एनडीए के सहयोगी दल समर्थन के बदले क्या चाहते हैं?

2014 और 2019 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने के लिए क्षेत्रीय दलों की ज़रूरत नहीं थी. लेकिन इस बार है. ऐसे में भाजपा नहीं चाहेगी कि गठबंधन के प्रमुख घटक दलों, ख़ासकर तेदेपा और जदयू में से कोई नाराज़ हो.

एनडीए के नेता. (फोटो साभार: एक्स/नरेंद्र मोदी)

नई दिल्ली: पूर्ण बहुमत पाने में असफल रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अब गठबंधन के सहारे सरकार बनाने की तैयारी में है. भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए (नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस) ने शुक्रवार (7 मई) को हुई बैठक में नरेंद्र मोदी को सर्वसम्मति से संसदीय दल का नेता चुना. बैठक में तेदेपा प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मौजूद रहे.

543 सदस्यीय लोकसभा में सरकार बनाने के लिए 272 सीटों की आवश्यकता होती है. लेकिन भाजपा 240 ही जीत पाई है. ऐसे में 400 पार का नारा देने वाले नरेंद्र मोदी को पहली बार प्रधानमंत्री बनने के लिए क्षेत्रीय दलों की दरकार है.

भाजपा सहयोगी दलों के सहारे 293 आंकड़ा छूने में कामयाब हुई है. अपने समर्थन के बदले सहयोगी दलों ने भाजपा के सामने कई मांगें रखी हैं.

एनडीए में कौन-कौन सी पार्टियां और किसके पास कितनी सीटें हैं:

पार्टी पार्टी प्रमुख सीट
भारतीय जनता पार्टी जेपी नड्डा 240
ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन सुदेश महतो 1
अपना दल (सोनेलाल) अनुप्रिया पटेल 1
असम गण परिषद अतुल बोरा 1
हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के पी पंगनियांग 0
जनता दल (एस) एचडी देवगौड़ा 2
जनता दल (यू) नीतीश कुमार 12
लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) चिराग पासवान 5
नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी अजित पवार 1
शिव सेना एकनाथ शिंदे 7
सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा प्रेम सिंह तमांग 1
तेलगू देशम पार्टी एन. चंद्रबाबू नायडू 16
यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल प्रमोद बोरो 1
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा जीतनराम मांझी 1
जन सेना पार्टी पवन कल्याण 1
राष्ट्रीय लोक दल जयंत सिंह 2

2014 और 2019 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने के लिए इन क्षेत्रीय दलों की जरूरत नहीं थी. लेकिन इस बार भाजपा नहीं चाहेगी कि गठबंधन के प्रमुख घटक दलों में से कोई नाराज हो, खासकर तेदेपा और जदयू. भाजपा के बाद इन्हीं दो दलों के पास सबसे ज्यादा सांसद हैं. दोनों ही दलों का भाजपा के साथ रिश्ता बहुत सहज नहीं रहा है. पुराने सहयोगी होने के बावजूद दोनों दल एनडीए से बाहर रह चुके हैं.

अन्य दलों की बात करें, तो जयंत सिंह की रालोद एनडीए में शामिल होने से पहले ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ थी. जेडीएस भी पिछले साल ही एनडीए में आई है. ऐसे में सरकार चलाने के लिए कि भाजपा को इन दलों की मांगों के सामने झुकना भी पड़ सकता है.

किसकी क्या है मांग?

किन मंत्रालयों को नहीं छोड़ना चाहेगी भाजपा: मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भाजपा अपने पास गृह, वित्त, रक्षा और विदेश मंत्रालय रखना चाहेगी.

नीतीश कुमार की क्या है मांग: नीतीश कुमार मंत्रिमंडल में सम्मानजनक प्रतिनिधित्व की मांग कर रहे हैं.

खबरों के मुताबिक, जदयू ने चार मंत्रालयों की मांग रख रही है. इसके अलावा पार्टी अग्निवीर योजना पर पुनर्विचार, देशव्यापी जाति जनगणना, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा और समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर व्यापक चर्चा चाहती है. हालांकि, जदयू नेता केसी त्यागी ने स्पष्ट किया है कि कोई पूर्व शर्त नहीं है, पार्टी ने बिना शर्त समर्थन दिया है.

चंद्रबाबू नायडू क्या चाहते हैं: तेदेपा ने भी आंध्र प्रदेश के लिए विशेष राज्य का दर्जा मांगा है. नायडू चाहते हैं कि केंद्र सरकार विजयवाड़ा मेट्रो रेल परियोजना पर आने वाले खर्च का 50 प्रतिशत वहन करे, इसके राज्य के सात पिछड़े जिलों के लिए स्पेशल ग्रांट दे. जहां तक मंत्रालयों की बात है तो पार्टी कैबिनेट में अपने लिए पांच सीट और जन सेना पार्टी के लिए दो सीट मांग रही है.

चिराग पासवान क्या चाहते हैं: चिराग पासवान ने भी अग्निवीर योजना पर पुनर्विचार की मांग की है. इसके अलावा उन्होंने देशव्यापी जाति जनगणना और बिहार के लिए वित्तीय पैकेज की मांग की है. लोजपा (राम विलास) कैबिनेट में एक सीट चाहती है.

एकनाथ शिंदे क्या चाहते हैं: शिवसेना चाहती है कि कैबिनेट में भले ही एक सीट मिले लेकिन इस साल के अंत में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में वह 100 सीटों पर चुनाव लड़े.

जयंत चौधरी क्या चाहते हैं: जयंत चौधरी ने कैबिनेट में एक सीट की मांगी है.

इन सबके अलावा जदयू और रालोद जैसे अन्य सहयोगियों ने सुझाव दिया है कि एनडीए में एक समन्वय समिति हो, जिसका संयोजक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बनाया जाए.