भीषण गर्मी में चुनावकर्मियों की मौत: चुनाव आयोग ज़िम्मेदारी कब लेगा?

मई-जून में उत्तर भारत में पसरती भीषण गर्मी से चुनाव आयोग अनजान नहीं था, लेकिन उसने चुनाव को खींचकर इतना लंबा किया कि हज़ारों कार्मिकों की जान पर बन आई और उनके लिए यह चुनाव यातना शिविर में तब्दील हो गया.

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25 मई को छठे चरण के मतदान से पहले इलाहाबाद के एक केंद्र से निकलते पोलिंग कर्मचारी. (फोटो: पीआईबी/निर्वाचन आयोग)

लोकसभा चुनाव के परिणाम को राजनीतिक दल, पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अपने ढंग से देख-समझ रहे हैं. इन सबके बीच चुनाव में लगे कार्मिकों के योगदान को नहीं भूला जाना चाहिए, जिन्होंने अत्यंत विषम परिस्थितियों में चुनाव सकुशल संपन्न कराया. चुनाव के आख़िरी चार चरणों के दौरान और उसके बाद मतगणना में लगे चुनावकर्मियों के लिए लोकसभा चुनाव दुःस्वप्न साबित हुए थे.

2024 का लोकसभा चुनाव वर्ष 1952 के चुनाव के बाद सबसे लंबी अवधि में घटित हुआ था. सात चरणों वाले इस चुनाव के आख़िरी चार चरण और उसके बाद हुई मतगणना उत्तर भारत में भीषण गर्मी और लू के बीच संपन्न हुई– 13 मई से 4 जून के बीच. जहां शुरुआती चार चरणों में प्रायः हरेक चरण में लगभग सौ सीटों (क्रमशः 102, 88, 94, 96 सीट) पर चुनाव हुए, आख़िरी तीन चरणों में महज़ 49 और 58-57 सीटों पर चुनाव कराए गए. इससे चुनाव की अवधि अनावश्यक रूप से लंबी हुई.

46-47 डिग्री सेल्सियस तापमान में हो रही यह कवायद चुनावकर्मियों के लिए त्रासदी साबित हुई और अनेक कार्मिकों की मौत चुनाव के दौरान या चुनाव के बाद लू के चपेट में आने से हुई. राज्य निर्वाचन आयोगों ने उन कार्मिकों के परिवारों को अनुग्रह राशि देने की बात कही है. पर क्या अनुग्रह की कोई भी राशि उन परिवारों के शोक की भरपाई कर सकेगी, जिनके परिजनों की मौत चुनाव ड्यूटी के दौरान हुई है?

मई-जून के महीने में उत्तर भारत में भीषण गर्मी से चुनाव आयोग अनजान नहीं रहा होगा, मगर फिर भी आयोग ने चुनाव कार्यक्रम को खींचकर इतना लंबा किया कि चुनाव में लगे हज़ारों कार्मिकों की जान पर बन आई.

16 मार्च 2024 को जब लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी हुई, उसी दिन भारत निर्वाचन आयोग ने सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को पत्र भेजकर भीषण गर्मी को ध्यान में रखते हुए लोकसभा चुनाव के संदर्भ में दिशानिर्देश दिए थे. इस पत्र में स्पष्ट कहा गया था कि भारत मौसम विज्ञान विभाग ने आने वाले महीनों में औसत से अधिक तापमान रहने का अनुमान व्यक्त किया है, जिसका तात्पर्य है कि गर्मी का मौसम लंबा और अधिक मारक होगा.

इसी पत्र में निर्वाचन आयोग ने भीषण गर्मी से बचने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा जारी निर्देश भी राज्यों से साझा किए थे. निर्वाचन आयोग के उक्त पत्र में बूथ पर न्यूनतम सुविधाओं को उपलब्ध कराने का निर्देश भी शामिल था, जिसमें रैंप, पीने का पानी, विद्युत, शौचालय, छाया (शेड) की उपलब्धता, भूतल पर पोलिंग स्टेशन जैसी सुविधाएं शामिल थीं. मगर प्रचंड गर्मी के सामने ये न्यूनतम सुविधाएं कहीं नहीं टिक सकीं.

निर्वाचन आयोग ने 16 मार्च को उक्त पत्र को जारी करने के बाद अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री समझ ली और उसके बाद मई-जून के महीने में राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारी और ज़िला निर्वाचन अधिकारियों को भीषण गर्मी से बचाव के लिए नए सिरे से निर्देश देना या तत्संबंधी तैयारियों का जायज़ा लेना ज़रूरी नहीं समझा.

ऐसे हालात में हो रहे चुनाव में अव्यवस्था का जो आलम देखने को मिला, वह भी अभूतपूर्व था. चुनाव से एक दिन पूर्व पोलिंग पार्टियों के लिए नियत किए गए रवानगी स्थलों पर छाया अथवा पंखे तक का कोई इंतज़ाम नहीं था. लिहाज़ा ईवीएम मशीन लेने, ड्यूटी रिसीव करने और पोलिंग बूथ के लिए रवाना होने तक चुनावकर्मी खुली धूप में खड़े रहने और गर्मी में तपने को विवश थे. मशीन लेने के लिए क़तार में खड़े बहुत-से कार्मिक असह्य धूप से अचेत होकर गिर पड़े.

इसका नतीजा यह हुआ कि आख़िरी चरण के चुनाव से ठीक एक दिन पहले 31 मई को मतदान केंद्रों के लिए रवाना हुए 33 चुनावकर्मियों को अपनी जान गंवानी पड़ी. पूर्वी उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर, वाराणसी, सोनभद्र, मऊ और चंदौली ज़िले में चुनावकर्मियों की मौतें हुईं. अकेले मिर्ज़ापुर में 13 चुनावकर्मियों की मृत्यु लू लगने से हुई, जिनमें चकबंदी अधिकारी, शिक्षक, होम गार्ड, सफाई कर्मचारी, लिपिक, चपरासी शामिल थे. वहीं 31 मई को ही बिहार के भोजपुर, रोहतास, कैमूर और औरंगाबाद ज़िलों में भी चुनाव कार्य में लगे 10 कर्मियों की मौतें हुईं.

मतदान केंद्रों (पोलिंग बूथ) का हाल तो और भी बुरा था, 47 डिग्री तापमान में कमरे में लगे एक पंखे से भला क्या राहत मिल सकती थी!

भीषण गर्मी से बचाव के लिए पोलिंग पार्टी को ओआरएस का एक पैकेट थमाकर उन्हें लू से सुरक्षित मान लिया गया. प्रशासन ने भी कार्मिकों को पोलिंग बूथ के लिए रवाना कर अपना पल्ला झाड़ लिया. यह चुनाव से एक दिन पहले के हालात थे.

चुनाव के दिन सुबह चार बजे से उठकर शाम छह बजे तक कार्मिकों ने गर्मी और लू का प्रकोप झेलते हुए अपनी ज़िंदगी को दांव पर लगाकर चुनाव संपन्न कराया. बहुत-से कार्मिक इस दौरान डीहाइड्रेशन के शिकार हुए, कुछ बेहोश हो गए और कुछ ने दम तोड़ दिया. ऐसे में जब प्रशासन ने इन कार्मिकों को प्रायः उनके हाल पर छोड़ दिया, तब स्थानीय लोगों ने उनकी मदद की. ऐसे सभी लोग शुक्रिया के हक़दार हैं.

अव्यवस्था का यही आलम फिर देखने को मिला, जब चुनाव संपन्न होने के बाद ईवीएम मशीनों को मय काग़ज़ात के साथ संग्रहण केंद्र पर जमा करने की बारी आई. संग्रहण केंद्र पर भी अव्यवस्था का माहौल अपने चरम पर था. सुबह चार बजे से चुनाव कार्य में लगे कार्मिक संग्रहण केंद्र पर मशीनें जमा कर देर रात तक अपने घरों को वापस लौट सके.

4 जून को होने वाली मतगणना से एक दिन पूर्व एक प्रेस कांफ्रेंस में मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि भीषण गर्मी में हुआ यह चुनाव निर्वाचन आयोग के लिए एक सबक़ है और अगला लोकसभा चुनाव अप्रैल के ख़त्म होने से पहले पूरा करा लिया जाएगा. मगर निर्वाचन आयोग को मिला यह ‘सबक़’, चुनावकर्मियों और उनके परिजनों के लिए बहुत ही महंगा सौदा साबित हुआ और इस ‘सबक़’ के एवज़ में उन्हें अपनी जान भी गंवानी पड़ी.

मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने ‘सबक़’ मिलने की बात तो कही, मगर उस पर कोई अमल होता नहीं दिखा.

भीषण गर्मी में अव्यवस्था और चुनावकर्मियों की बेबसी के वही नज़ारे 4 जून को संपन्न हुई मतगणना के दौरान भी देखने को मिले, जहां मतगणना स्थल पर टिन के तपते हुए शेड के नीचे बने मतगणना केंद्र पर सुबह छह बजे से लेकर मतगणना ख़त्म होने तक मतगणना पर्यवेक्षक, मतगणना सहायक आदि के रूप में तैनात कार्मिक भीषण गर्मी का प्रकोप झेलते रहे.

अगर आयोग ने चुनाव कार्यक्रम को अनावश्यक खींचकर भीषण गर्मी में न रखा होता, पोलिंग पार्टियों के रवानगी स्थल, पोलिंग बूथ और मतगणना केंद्रों पर लू और धूप से बचने के पर्याप्त इंतज़ाम किए गए होते, तो तमाम चुनावकर्मी आज जीवित होते और कई अन्य के लिए यह चुनाव यातना शिविर में नहीं तब्दील हुआ होता.

(लेखक बलिया के सतीश चंद्र कॉलेज में इतिहास के शिक्षक हैं.)