नई दिल्ली: देश के शीर्ष मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए आयोजित राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट-यूजी) इस बार विवादों में हैं. चार जून को नीट परीक्षा के परिणाम घोषित होने के बाद ऐसे कई दावे सामने आए हैं, जिसमें इसके सफल आयोजन को लेकर सवाल उठ रहे हैं और छात्र इसे फिर से कराए जाने की मांग कर रहे हैं. ऐसा पहली बार देखने को मिला कि इस परीक्षा में बैठे 67 छात्रों ने पूरे अंक प्रप्त कर पहली रैंक हासिल की है.
रिपोर्ट के मुताबिक, इस परीक्षा को आयोजित करवाने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) ने शनिवार (8 जून) को जानकारी दी कि नीट परीक्षा में शामिल छह केंद्रों के 1,600 अभ्यर्थियों के परिणामों की पुन: जांच करने के लिए एक उच्चाधिकार समिति का गठन किया गया है. ये सभी वही केंद्र हैं जहां कुछ छात्रों को अधिक अंक दिए गए हैं, जो इस समय विवाद का केंद्र बने हुआ है क्योंकि परीक्षा से पहले जारी की गई विवरण-पुस्तिका (prospectus) में इन ग्रेस अंकों का कोई उल्लेख नहीं था.
एनटीए महानिदेशक सुबोध कुमार ने शनिवार को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के पूर्व अध्यक्ष की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशें एक सप्ताह के भीतर आने की उम्मीद है.
मालूम हो कि यह उच्चाधिकार समिति ग्रेस नंबरों के मुद्दे पर निर्णय लेने वाली दूसरी समिति होगी. कुमार ने समिति के अध्यक्ष या अन्य सदस्यों का नाम बताने से इनकार कर दिया.
एनटीए प्रमुख ने पर्चा लीक या परीक्षा में किसी भी प्रकार की अनियमितता से इनकार करते हुए दोहराया कि इस महत्वपूर्ण परीक्षा की शुचिता से कोई समझौता नहीं किया गया है और पूरी परीक्षा प्रक्रिया बहुत पारदर्शी रही है.
सुबोध कुमार ने स्पष्ट किया कि इस समिति का काम छह केंद्रों में 1600 छात्रों को दिए गए अनुग्रह (ग्रेस) अंकों का अध्ययन करना होगा. उन्होंने कहा कि अगर नई कमेटी इन 1600 छात्रों के लिए दोबारा परीक्षा की सिफारिश करती है तो इस पर भी विचार किया जाएगा.
इस संबंध में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन जूनियर डॉक्टर नेटवर्क (आईएमए-जेडीएन) की संयोजक डॉ. ज्योति आर. ने कहा कि केवल छात्रों के एक समूह के लिए दोबारा परीक्षा कराने से 23 लाख से अधिक अन्य सभी उम्मीदवारों को नुकसान होगा.
डॉ. ज्योति ने द वायर से बात करते हुए सवाल उठाया, ‘क्या होगा अगर इन 1600 छात्रों को नीट पेपर में मूल रूप से पूछे गए प्रश्नों की तुलना में आसान प्रश्न मिलते हैं. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि एक ही परीक्षा के प्रश्न पत्र में कोई एकरूपता नहीं होगी.’
उन्होंने कहा कि इस संदेह को दूर करने का एकमात्र तरीका यही है कि पहले आयोजित हुई परीक्षा को पूरी तरह से रद्द किया जाए और फिर परीक्षा में भाग लेने वाले सभी 24 लाख छात्रों के लिए नए सिरे से परीक्षा आयोजित करने का आदेश दिया जाए.
इससे पहले अतिरिक्त नंबर देने को लेकर एनटीए ने तर्क दिया था कि केवल उन्हीं 1600 छात्रों को ग्रेस मार्क्स दिए गए थे, जिन्हें प्रश्न पत्र समय पर नहीं मिला था. एनटीए महानिदेशक ने इसके लिए 2018 के सुप्रीम कोर्ट के एक मामले का हवाला भी दिया था.
सुबोध कुमार ने कहा कि हमने सभी पहलुओं का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया और परिणाम जारी किए. 4750 केंद्रों में से, यह समस्या केवल 6 केंद्रों तक ही सीमित थी और 24 लाख छात्रों में से केवल 1,600 छात्र ही इससे प्रभावित हुए. इसके अलावा देश भर में परीक्षा की समग्र अखंडता बनाए रखी गई, और एजेंसी की समीक्षा में पेपर लीक का कोई सबूत नहीं मिला.
हालांकि, इस कदम का विरोध कर रहे छात्रों का कहना है कि एजेंसी ने परीक्षा आयोजित करने से पहले जारी बुलेटिन में ग्रेस मार्क्स की गुंजाइश का उल्लेख क्यों नहीं किया, और अगर पहले इसका जिक्र नहीं हुआ तो इसे बाद में कैसे दिया जा सकता है. अभ्यर्थियों ने ग्रेस मार्क्स की ग्रेडिंग के फॉर्मूले पर भी सवाल उठाया है.
एनटीए महानिदेशक ने एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि ग्रेडिंग के लिए प्रश्नों के ‘उत्तर देने की गति’ पर विचार किया जाता है, इसलिए यह व्यक्तिगत उम्मीदवारों पर निर्भर करता है. दूसरे शब्दों में उन्होंने कहा कि सवालों के जवाब देने की गति की गणना करने के लिए सवालों का जवाब देने में लगने वाले समय को ध्यान में रखा गया है.
हालांकि, डॉ. ज्योति इस तरह की व्याख्या को हास्यास्पद बताती हैं क्योंकि उनका कहना है कि किसी एक प्रश्न का उत्तर देने में एक छात्र को कुछ सेकंड्स लग सकते हैं, वहीं दूसरे प्रश्न का उत्तर देने में उसे थोड़ा और अधिक समय लग सकता है. ऐसे में इस मानदंड के अनुसार गति की गणना कैसे की जा सकती है.
इस बार की नीट परीक्षा में जिस बात की ओर सबका ध्यान गया है, वो ये है कि 67 टॉपर छात्रों में से 6 बच्चों का परीक्षा केंद्र हरियाणा का एक ही सेंटर था.
कुमार ने इन सभी सवालों का जवाब देने की कोशिश करते हुए कहा कि इस साल सामान्यीकरण प्रक्रिया (ग्रेस अंक देने) और अपेक्षाकृत आसान प्रश्नों के कारण बड़ी संख्या में छात्रों ने परीक्षा में टॉप किया.
द टेलीग्राफ के अनुसार एनटीए ने कहा है कि प्रश्नपत्र के भौतिकी खंड में एक प्रश्न में त्रुटि के कारण 44 उम्मीदवारों को पूर्ण अंक (720) दिए गए.
इस बार नीट परीक्षा के पेपर लीक के भी आरोप लगे हैं. इस मामले में बिहार पुलिस ने कम से कम 13 लोगों को गिरफ्तार भी किया है. राज्य पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) मामले की जांच कर रही है.
ईओयू की एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘पुलिस आरोपियों के कब्जे से आपत्तिजनक दस्तावेज और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त कर चुकी है. अब तक की जांच से पता चला है कि नीट-यूजी के प्रश्न पत्र और उनके उत्तर 5 मई की परीक्षा से पहले लगभग 35 उम्मीदवारों को दिए गए थे.’ वहीं, दूसरी ओर एनटीए का कहना है कि कोई पेपर लीक नहीं हुआ.
सुबोध कुमार ने इस संबंध में कहा, ‘हम जांच एजेंसियों का समर्थन कर रहे हैं और उन्हें (जांच पूरी करने के लिए) सभी चीजें मुहैया करा रहे हैं.’
एनटीए ने पेपर लीक के सभी आरोपों को खारिज करते हुए तर्क दिया है कि यह परीक्षा शुरू होने के बाद उन छात्रों द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रसारित किया गया था, जो औपचारिक रूप से परीक्षा समाप्त होने से पहले परीक्षा केंद्र छोड़ चुके थे.
गौरतलब है कि नीट पेपर लीक के आरोप ऐसे समय में सामने आए हैं, जब अन्य राज्यों में कई पेपर लीक इस बार के लोकसभा चुनावों में कई राजनीतिक दलों के मुख्य मुद्दों में शामिल थे.
नीट परीक्षा मामले में कांग्रेस ने निष्पक्ष जांच की मांग की है. महाराष्ट्र और कर्नाटक की सरकारों ने भी नीट के आयोजन के तरीके पर सवाल उठाया है और मांग की है कि परीक्षा रद्द की जानी चाहिए. इस मुद्दे के बारे में पूछे जाने पर कुमार ने कहा कि उन्हें इन आपत्तियों की जानकारी नहीं है.
उल्लेखनीय है कि इस बार नीट परीक्षा का आयोजन पांच मई को कराया गया था. नीट परीक्षा में शामिल होने के लिए 24 लाख से अधिक विद्यार्थियों ने अपना रजिस्ट्रेशन कराया था. इनमें 23.33 लाख बच्चे परीक्षा में शामिल हुए. पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार, परीक्षा के परिणाम 14 जून को घोषित होने थे. हालांकि, रिज़ल्ट दस दिन पहले यानी चार जून को घोषित कर दिए गए.