जम्मू-कश्मीर प्रशासन की फिर कर्मचारियों पर कार्रवाई, कथित आतंकी संबंधों को लेकर चार बर्ख़ास्त

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को हटाने और सूबे को केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील करने के बाद संविधान के अनुच्छेद 311 का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में चार दर्जन से अधिक कर्मचारियों को बर्ख़ास्त करने के लिए किया गया है.

जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2024 के खत्म होने के कुछ दिनों बाद ही जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने एक बार फिर अपने कर्मचारियों पर कार्रवाई शुरू कर दी है. प्रशासन की ओर से आतंकवादियों के साथ कथित संबंध को लेकर दो पुलिसकर्मियों, एक शिक्षक समेत चार सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया गया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, एक स्कूल की ‘जर्जर’ स्थिति पर प्रशासन की आलोचना करने के लिए भी एक शिक्षक को निलंबित किया गया है.

शनिवार (8 जून) को जारी एक आदेश के अनुसार, जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने विवादास्पद कानून अनुच्छेद 311 को लागू कर चार कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया. अधिकार कार्यकर्ता इस कानून की लगातार आलोचना करते रहे हैं. उनका कहना है कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से यह केंद्र शासित प्रदेश में अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अंकुश लगाने का एक हथियार बन गया है.

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने संविधान के अनुच्छेद 311 के खंड 2 के उप-खंड (सी) को लागू करते हुए जिन चार कर्मचारियों को बर्खास्त करने का आदेश पारित किया है, उन पर कथित रूप से आतंकवादियों से जुड़ाव रखने और जमात-ए-इस्लामी संगठन के साथ संबंध रखने समेत कई तरह के आरोप लगाए गए हैं.

जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) एक सामाजिक-धार्मिक संगठन है, जिसे 2019 में केंद्र सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था.

शनिवार को जम्मू-कश्मीर के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी एक आदेश में कहा गया कि उपराज्यपाल ‘तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के बाद उपलब्ध जानकारी’ के आधार पर संतुष्ट थे कि कश्मीर के पुलिस विभाग में सलेक्शन ग्रेड कॉन्स्टेबल अब्दुल रहमान डार की गतिविधियां ‘ऐसी हैं कि उन्हें सेवा से बर्खास्त किया जा सकता है.’

इसी तरह का आदेश पुलिस कॉन्स्टेबल गुलाम रसूल भट के खिलाफ भी जारी किया गया. दोनों बर्खास्त पुलिसकर्मी दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले के त्राल के रहने वाले हैं.

इसके अलावा, दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले के रहने वाले जम्मू-कश्मीर शिक्षा विभाग में शिक्षक शबीर अहमद वानी और उत्तरी कश्मीर के बारामूला जिले के राफियाबाद में रहने वाले जल शक्ति विभाग के लाइनमैन अनायतुल्ला शाह पीरजादा को भी प्रशासन के इसी तरह के आदेश पर सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है.

एक आधिकारिक प्रवक्ता ने शनिवार को कहा, ‘इन कर्मचारियों की गतिविधियां कानून, प्रवर्तन और खुफिया एजेंसियों के नोटिस में आ गई थीं. इन कर्मचारियों को राष्ट्र विरोधी कृत्यों जैसे कि आतंकवाद से संबंधित गतिविधियों में शामिल पाया गया था.’

प्रवक्ता ने दावा किया कि पुलिस विभाग में सलेक्शन ग्रेड कॉन्स्टेबल अब्दुल रहमान डार एक प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन अल-बद्र को अवैध हथियारों और गोला-बारूद को पहुंचाने के अपराध में शामिल था और आतंकवादियों को भेस बदलने के लिए भारतीय सेना की वर्दी का कपड़ा और अन्य सामग्री उपलब्ध करवाता था. इसके साथ ही वे ओवरग्राउंड वर्कर्स (ओजीडब्ल्यू) के नेटवर्क के माध्यम से आतंकियों के इकोसिस्टम से जुड़े थे, जो पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों के इशारे पर काम कर रहा था.’

प्रवक्ता ने आगे दावा किया कि सरकारी शिक्षक वानी जमात-ए-इस्लाम (जेईआई) के एक सक्रिय सदस्य रहे हैं, जो एक प्रतिबंधित अलगाववादी संगठन है और जिसके आतंकवादियों के साथ संबंध हैं. 2016 की अशांति के दौरान डीएच पोरा में दंगा और हिंसा भड़काने वाली भीड़ की गैरकानूनी सभा को उकसाने में उनकी प्रत्यक्ष संलिप्तता के कारण उनके खिलाफ विभिन्न एफआईआर दर्ज की गई हैं.

ज्ञात हो कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को हटाने और पूर्ववर्ती राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील करने के बाद संविधान के अनुच्छेद 311 का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में चार दर्जन से अधिक कर्मचारियों को बर्खास्त करने के लिए किया गया है.

हटाए गए ज्यादातर कर्मचारी शिक्षा और पुलिस विभाग में कार्यरत थे. हालांकि, अनुच्छेद 311 का उपयोग अन्य विभागों के कर्मचारियों के खिलाफ भी हुआ है.

सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस कानून की खासी आलोचना की है. इस कानून में ‘संघ या राज्य के तहत नागरिक क्षमताओं में कार्यरत व्यक्तियों की रैंक’ को कम करने या उन्हें बर्खास्त करने की शक्तियां शमिल हैं.

इसे कर्मचारियों को उनके वरिष्ठों द्वारा अनुचित बर्खास्तगी से बचाने के लिए पेश किया गया था, लेकिन इसके आलोचकों का तर्क है कि इसकी व्यापक शक्तियों को देखते हुए इसका इस्तेमाल सरकार (यहां प्रशासन) द्वारा अभिव्यक्ति की आज़ादी और असहमति पर नकेल कसने के लिए किया गया है.

अनुच्छेद 311 के खंड 2 के उप-खंड (सी) के अनुसार, सरकार किसी भी कर्मचारी को बिना जांच के बर्खास्त कर सकती है. यदि राष्ट्रपति या राज्यपाल ‘संतुष्ट हैं कि राज्य की सुरक्षा के हित में इसकी जरूरत नहीं है.’

आलोचकों का ये भी तर्क है कि ये कानून कर्मचारियों को उनकी बर्खास्तगी के खिलाफ चुनौती देने या प्रतिनिधित्व करने के अवसर से वंचित करके न्याय के प्राकृतिक कार्यप्रणाली का उल्लंघन करता है.

शिक्षक निलंबित

इस बीच, डोडा जिले में कथित तौर पर सरकार की आलोचना करने पर एक सरकारी शिक्षक फियाज अहमद को निलंबित कर दिया गया है. अहमद ने सड़क की खराब हालत और सरकारी मिडिल स्कूल, द्रमन की ‘जर्जर’ स्थिति को उजागर करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया था, जिसके बाद इस मुद्दे की जांच के लिए दो सदस्यीय समिति का गठन किया गया था.

सिविल सेवा नियमों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में कर्मचारियों को सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना करने से रोक दिया गया है. अधिकारियों ने कहा कि अहमद को अपनी स्थिति स्पष्ट करने का अवसर दिया गया था, जो ‘संतोषजनक नहीं’ पाया गया.