नई दिल्ली: भारतीय उपमहाद्वीप प्रचंड गर्मी से उबल रहा है, दिल्ली का तापमान मई के अंत में 53°C तक पहुंच गया और नागपुर में तो 56°C को पार कर गया. घातक गर्मी नागरिकों की शायद नियति बन गई है.
उस वक़्त लोकसभा चुनाव चल रहे थे और कई चुनावकर्मियों की इस भीषण गर्मी से मृत्यु हो गई और कई अन्य बीमार हो गए.
किसी भी प्राकृतिक आपदा की तरह उत्तर भारत में इस भयानक गर्मी का प्रभाव विभिन्न समुदायों पर अलग तरह से पड़ा जिसने उनके बीच पसरी गहरी सामाजिक-आर्थिक खाई को कहीं विकराल तरीके से उघाड़ दिया. इसलिए इन सामाजिक-आर्थिक समूहों पर गर्मी के प्रभाव का विस्तृत परीक्षण होना चाहिए.
किसी मनुष्य पर इन आपदाओं से पड़ने वाला प्रभाव उसकी आर्थिक स्थिति से काफी हद तक निर्धारित होता है. हमने अपने पिछले आलेखों में दिल्ली की बिगड़ती हवा के निम्न-आय वाले कर्मचारियों, मसलन अमेज़न और स्विगी के डिलीवरी कर्मियों पर पड़ने वाले गंभीर प्रभाव की चर्चा की थी.
यहां हम यह परखना चाहते हैं कि कैसे भीषण गर्मी कमजोर वर्ग को असमान रूप से प्रभावित करती है, क्यों विपरीत मौसम की घटनाओं के दौरान इस तबके में रोग और मृत्यु दर ज्यादा होती है.
PLOS Climate (2022) का अध्ययन कहता है कि भीषण गर्मी भारत के विकास में बाधा है. अध्ययन में जलवायु संवेदनशीलता सूचकांक (CVI) की मदद से इस पहलू का विश्लेषण किया गया है.
घातक हीटवेव के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) पर प्रभाव का विश्लेषण किया गया. अनुसंधान वर्तमान संवेदनशीलता आकलनों में कमियों को उजागर करता है और जलवायु अनुकूलन रणनीतियों में हीटवेव डेटा को एकीकृत करने की आवश्यकता पर जोर देता है.
भारत में असंगठित क्षेत्र के गरीब मजदूरों की स्थिति, वास्तव में गंभीर है. भारत के लगभग 85% कामगार असंगठित क्षेत्र मे काम करते हैं, जिन्हें औपचारिक श्रम सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सुरक्षा का कोई लाभ मुहैया नहीं है. ये श्रमिक अक्सर अपर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना बेहद कठिन कार्य स्थितियों का सामना करते हैं, जिससे उनके लिए गर्मी से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं की आशंका बढ़ जाती है.
गरीब मजदूर के पास न तो आराम या सुकून का समय ही उपलब्ध हैं न ही चिकित्सा सुविधाएं. निर्माण और कृषि श्रमिकों जैसे समूह जिनका काम काफी बाहर खुले में श्रम और ऊंचे तापमान के लंबे समय तक संपर्क में होता है, उनके लिए ये गर्मी और भी जानलेवा हो सकती है क्योंकि किसी भी राहत की कोशिश उनसे आजीविका छीन सकती है. ये श्रमिक, जो मुख्य रूप से हाशिये पर स्थित समुदायों से हैं, सुरक्षा उपायों और उचित आराम अवधि की कमी के कारण गर्मी के तनाव और संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं के बहुत जोखिम का सामना करते हैं.
स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता में गैर बराबरी भी भीषण गर्मी के प्रभाव की विषमता को बढ़ाती है और दीर्घकालिक स्वास्थ्य असमानताओं में योगदान देती है, जिससे लंबे समय में हाशिये पर स्थित समूहों की आय उत्पन्न करने की क्षमताओं पर बुरा प्रभाव पड़ता है.
‘हेल्थकेयर एक्सेस एंड हीट वेव रेजिलियंस: ए सोशियो-इकोनॉमिक एनालिसिस’ (हेल्थ इकोनॉमिक्स रिव्यू, 2021) शीर्षक लेख में कमजोर जनसंख्या की सुरक्षा में स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे के महत्व पर जोर दिया गया है. अध्ययन में पाया गया कि हीटवेव और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच की कमी से हाशिये के समुदायों पर स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है.
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार, अनौपचारिक क्षेत्र में सामाजिक सुरक्षा और काम पर अधिकारों की कमी इन समस्याओं को और बढ़ा देती है, जिससे इन संवेदनशीलताओं को व्यापक नीति उपायों के माध्यम से संबोधित करना बेहद जरूरी हो जाता है.
जलवायु आपदा की घटनाओं, विशेष रूप से हीटवेव, का आर्थिक रूप से कमजोर समुदायों पर प्रभाव कामगार वर्ग की रहन-सहन के हालात और बस्तियों में सुविधाओं की कमी से और बढ़ जाता है. इन लोगों के घर अक्सर उचित इन्सुलेशन या कूलिंग सिस्टम के बिना होते हैं, जो निवासियों को अत्यधिक गर्मी से बचाने में विफल रहते हैं. यह समस्या शहरी गर्मी द्वीप प्रभाव (अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट) से और जटिल हो जाती है, जहां घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों, विशेष रूप से गरीब पड़ोस, ग्रामीण परिवेश की तुलना में उच्च तापमान का अनुभव करते हैं.
उल्लेखनीय है कि गर्मी के कहर के बढ़ने और शहर मे पानी और बिजली के कमी का वक्त एक ही है और ऐसे में बिजली और पानी की मांग समर्थ तबके मे बहुत ज्यादा बढ़ जाती है जिस कारण इनकी कमी हो जाती है. सामाजिक संरचनाएं इस प्रकार हैं कि इनकी कटौती शहर के उन हिस्सों में ज्यादा होती है जहां ये वंचित समुदाय रहते हैं, दूसरे शब्दों मे जिन लोगों की इस मौसम से लड़ने की क्षमता कम है उन्हें ही इनसे और अधिक वंचित कर दिया जाता है.
काम और रहने की परिस्थितियों के अलावा भीषण गर्मी का बुरा असर छात्रों की पढ़ाई को भी गहराई से प्रभावित करता है, विशेष रूप से उन छात्रों को जो सरकारी संस्थानों में पढ़ते हैं. ये स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय अक्सर आवश्यक बुनियादी ढांचे की कमी से ग्रस्त होते हैं अतः अत्यधिक गर्मी के दौरान सीखने का अनुकूल वातावरण नहीं दे पाते.
पिछले सप्ताह बिहार के स्कूलों और दिल्ली विश्वविद्यालय की परीक्षाओं के दौरान विद्यार्थियों की बुरी हालत और बिगड़ती तबीयत के कई खबर और विचलित करने वाले वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे.
यह समस्या परीक्षा अवधि के दौरान और भी बढ़ जाती है. यह गरीब पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए एक अतिरिक्त असुविधा की परत जोड़ता है, जिससे शैक्षिक और सामाजिक-आर्थिक असमानता का चक्र बना रहता है.
जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, जिला प्रशासन और भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) निवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए चेतावनी जारी करते हैं. हालांकि, ये चेतावनियां भी हमारे साथ मौजूद असमानताओं को दर्शाती हैं; उदाहरण के लिए, अधिकांश सामान्य निर्देश लोगों को दोपहर 12:00 बजे से 3:00 बजे तक धूप से बचने, हल्के रंग के, ढीले और सूती कपड़े पहनने, नियमित रूप से पानी पीने और घरेलू पेय पदार्थों के साथ हाइड्रेटेड रहने, अस्वस्थ महसूस करने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करने और घर को पर्दों और शटरों का उपयोग करके ठंडा रखने के लिए कहते हैं.
इनमें से लगभग कोई भी उपाय गरीब कामकाजी वर्ग के लोगों द्वारा आसानी से अपनाया नहीं जा सकता.
इन निर्देशों में मेहनत वाले कार्यों से बचने, दोपहर में खाना पकाने से बचने आदि की सलाह भी दी गई है. ये सुझाव भले ही फायदेमंद हैं, लेकिन महानगरीय क्षेत्रों में विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूहों द्वारा सामना की जाने वाली हकीकत को संबोधित करने के लिए इन्हें अनुकूलित करने की आवश्यकता है.
नीतियों और हस्तक्षेपों को इन बाधाओं पर विचार करना चाहिए और ज्यादा सुलभ, समावेशी समाधान देने चाहिए. इसमें पटरी खोमचों वालों के लिए छायादार क्षेत्रों का निर्माण, झुग्गी बस्तियों में जल आपूर्ति सुनिश्चित करना, स्वास्थ्य सेवा की पहुंच में सुधार, और गर्मी सहनशील आवास के निर्माण को समर्थन देना शामिल हो सकता है.
इसके साथ ही ज्यादा तापमान वाले वातावरण में काम करने वाले श्रमिकों के लिए सुरक्षित कार्य परिस्थितियों, अनिवार्य विश्राम ब्रेक, और सुरक्षात्मक उपकरणों तक पहुंच सुनिश्चित करना. मोबाइल स्वास्थ्य क्लीनिक और सबसे गरीब श्रमिकों के लिए स्वास्थ्य देखभाल लागत को सब्सिडी देना, साथ ही विशेषकर अल्पसंख्यक क्षेत्रों में गर्मी की लहरों के दौरान त्वरित सहायता प्रदान करने के लिए आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली को मजबूत करना शामिल होना चाहिए.
विभिन्न सामाजिक श्रेणियों पर भीषण गर्मी के अलग-अलग प्रभावों को समझना समतामूलक एवं समावेशी जलवायु नीतियों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है. जलवायु परिवर्तन पर समान कार्रवाई से हाशिये पर पड़े समुदायों पर प्रतिकूल प्रभावों को काफी हद तक कम किया जा सकता है. सबसे कमजोर लोगों की जरूरतों को प्राथमिकता देकर, जिसमें अनौपचारिक रूप से नियोजित लोग शामिल हैं, हम एक अधिक न्यायपूर्ण और लचीला समाज बना सकते हैं जो बदलती जलवायु से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने में सक्षम है.
(दोनों लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं.)