नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के नेता उमर अब्दुल्ला ने आगामी जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावना से इनकार कर दिया है. उन्हें हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में बारामूला सीट पर जेल में बंद उम्मीदवार शेख अब्दुल रशीद उर्फ इंजीनियर रशीद से चुनाव में हार मिली थी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि वह केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभा में जाकर खुद को ‘अपमानित’ नहीं करेंगे. हालांकि, वो जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के लिए अपनी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रचार अभियान का नेतृत्व करेंगे.
‘पीटीआई-भाषा’ को दिए एक साक्षात्कार में उमर ने कहा, ‘अगर आप इस तथ्य को अलग रखें कि मैं हार गया, तो कुल मिलाकर मुझे लगता है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास संतुष्ट होने के लिए बहुत कुछ है… जहां तक मेरी अपनी सीट का सवाल है, मैं निराश होने के अलावा और क्या कर सकता हूं, लेकिन यह चुनावी राजनीति है. अगर आप हारने के लिए तैयार नहीं हैं, तो आपको अपना पर्चा नहीं भरना चाहिए. मैं यह नहीं कह सकता कि परिणाम उम्मीदों के अनुसार था.’
उमर अब्दुल्ला ने आगे ये भी कहा कि वो राज्य का दर्जा वापस पाने के लिए संघर्ष करेंगे और फिर विधानसभा में प्रवेश करने के अवसर देखेंगे, लेकिन फिलहाल वो आगामी चुनाव नहीं लड़ने जा रहे.
‘राज्य का दर्जा बहाल किए जाने के लिए लड़ूंगा’
पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुल्ला ने बताया, ‘मैं जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किए जाने के लिए लड़ूंगा. फिर अगर मुमकिन हुआ तो मैं विधानसभा जाने और वहां अपनी भूमिका निभाने का मौका तलाशूंगा. लेकिन मैं केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभा जाकर खुद को अपमानित नहीं करूंगा.’
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा जल्द बहाल होने की उम्मीद है, उन्होंने कहा, ‘मैं यह भरोसा करना चाहूंगा कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की प्रतिबद्धताओं का कुछ मतलब है. उन्होंने संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह राज्य के दर्जे के लिए प्रतिबद्धता जताई है.
विधानसभा चुनावों पर अब्दुल्ला ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा निर्देश नहीं दिया होता तो उन्हें इतनी उम्मीद नहीं होती.
अब्दुल्ला ने बताया, ‘मैं विधानसभा चुनाव और राज्य के दर्जे को लेकर इतनी आशा नहीं रखता, भले ही भाजपा केंद्र में बहुमत से आती या नहीं. लेकिन मुझे इसलिए उम्मीद है क्योंकि ये चुनाव भाजपा की मर्जी से नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हो रहे हैं.’
अपनी पार्टी को लेकर उमर ने कहा, ‘अभी एक पार्टी के रूप में मेरे सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने टूटे मनोबल को वापस हासिल करना है. क्योंकि इस चुनावी हार ने हम सब पर गहरा असर डाला है, कुछ पर कम, तो कुछ पर थोड़ा ज्यादा. इसलिए मेरे लिए इस नुकसान को व्यक्तिगत रूप से न लेना कठिन है. पर अब जो है वो है. लेकिन हमारी पार्टी ने वास्तव में अच्छा प्रदर्शन किया है. मैं चाहता हूं कि मेरी पार्टी के कैडर को यह एहसास हो कि हमने एक संसद सीट खो दी है, लेकिन एक पार्टी के रूप में, हमने उत्तरी कश्मीर में अभूतपूर्व काम किया है.
उमर ने आगे कहा, ‘हमें सकारात्मक बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत है. सकारात्मक बात यह है कि हम जम्मू-कश्मीर में अब तक की सबसे बड़ी पार्टी हैं, हमारे पास सबसे बड़ा वोट शेयर है और हम इस गति को विधानसभा तक ले जाएंगे.’
मालूम हो कि साल 2019 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त कर दिया था और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था.
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में अंतिम बार विधानसभा चुनाव वर्ष 2014 में हुए थे और उसके बाद यहां सत्ता संभालने वाली पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार जून 2018 में गिर गई थी. उसके बाद से जम्मू-कश्मीर में कोई निर्वाचित सरकार नहीं है और उपराज्यपाल के हाथ में शासन-प्रशासन की डोर है.
विभिन्न राजनीतिक दल प्रदेश में जल्द विधानसभा चुनाव कराने और जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहे हैं.
इस संबंध में बीते साल 2023 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने फैसले में निर्देश दिया था कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए और निर्वाचन आयोग 30 सितंबर, 2024 तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव कराने के लिए कदम उठाए.