राष्ट्रपति ने साल 2000 के लाल क़िले हमले के दोषी लश्कर आतंकी की दया याचिका खारिज़ की

22 दिसंबर, 2000 को लाल क़िले में दो आतंकवादी घुस गए थे, जिन्होंने परिसर में तैनात 7 राजपूताना राइफल्स की यूनिट पर गोलीबारी की थी. इस हमले में तीन सैन्यकर्मी मारे गए थे. लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी मोहम्मद आरिफ़ को इस हमले की साज़िश का दोषी पाया गया था.

लाल क़िला. (फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने लगभग 24 साल पुराने 2000 लाल किला आतंकी हमले मामले में दोषी ठहराए गए लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी मोहम्मद आरिफ द्वारा दायर दया याचिका को खारिज़ कर दिया है.

साल 2022 में कार्यभार संभालने के बाद राष्ट्रपति मुर्मू द्वारा खारिज की गई यह दूसरी दया याचिका है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, राष्‍ट्रपति मुर्मू को आरिफ की दया याचिका 15 मई को मिली थी, जिसे 27 मई को खारिज़ कर दिया गया.

रिपोर्ट के अनुसार, 22 दिसंबर, 2000 को दो आतंकवादी लाल किले में घुस गए थे और परिसर में तैनात 7 राजपूताना राइफल्स की इकाई पर गोलीबारी की थी. इस हमले में तीन सैन्यकर्मी मारे गए थे. एक ट्रायल कोर्ट ने साल 2005 में  पाकिस्तान के रहने वाले आरिफ को अन्य आतंकवादियों के साथ मिलकर इस हमले की साजिश रचने का दोषी पाया था और मौत की सज़ा सुनाई थी.

इसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट ने उसकी सज़ा को बरकरार रखा था.

गौरतलब है कि इस हमले से भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते तनावपूर्ण हो गए थे.

साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने आरिफ़ को तकनीकी आधार पर सज़ा की समीक्षा करते हुए याचिका दायर करने की अनुमति दी थी, लेकिन तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित के नेतृत्व वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 2022 में इस याचिका को खारिज कर दिया था.

पीठ ने अपना फैसला देते हुए कहा था कि आरिफ के पक्ष में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है, जो अपराध की गंभीरता को कम करता हो. शीर्ष अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया था कि ये हमला भारत की ‘एकता, अखंडता और संप्रभुता’ पर सीधा खतरा था. ये किसी भी दूसरे कारक से अधिक महत्वपूर्ण है, जिसे ‘रिकॉर्ड पर अपराध की गंभीरता को कम करने के रूप में दूर से भी विचार में लाया जाए.’

मालूम हो कि राष्ट्रपति द्वारा 25 जुलाई 2022 को पदभार ग्रहण करने के बाद खारिज की गई यह दूसरी दया याचिका है.

हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि मौत की सज़ा पाने वाले दोषी अभी भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं और संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत लंबी देरी के आधार पर अपनी सज़ा को कम करने की मांग कर सकते हैं.