क़ानून मंत्री ने कहा समान नागरिक संहिता एजेंडा में शामिल, जदयू बोली- आम सहमति ज़रूरी

भाजपा इस समय एनडीए का सबसे बड़ा घटक दल है, लेकिन बहुमत से दूर होने के कारण उसे यूसीसी जैसे मुद्दे पर जदयू और तेदेपा का साथ चाहिए होगा.

जदयू नेता केसी त्यागी. (फोटो द वायर)

नई दिल्ली: केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने हाल ही में अपना कार्यभार संभालते ही कहा था कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करना सरकार के एजेंडा का हिस्सा है. उनके इस बयान पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के तीसरे सबसे बड़ी सहयोगी दल जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने प्रतिक्रिया दी है. जदयू का कहना है कि ऐसा कोई भी कदम सर्वसम्मति से उठाया जाना चाहिए.

रिपोर्ट के मुताबिक, जदयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने बुधवार (12 जून) को इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि उनकी पार्टी यूसीसी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन वह चाहते हैं कि इसको लेकर आम सहमति बने.

जदयू के इस दावे को भाजपा के लिए एक स्पष्ट संकेत के तौर पर देखा जा रहा है कि अब यूसीसी जैसे महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा एकतरफा नहीं लिए जा सकते हैं और उसे अन्य एनडीए गठबंधन सहयोगियों से परामर्श करना होगा.

हालांकि इससे पहले अर्जुन मेघवाल, जिन्हें केंद्रीय कानून और न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का जिम्मा सौंपा गया है, उन्होंने मंगलवार (11 जून) को कहा था कि यूसीसी अभी भी सरकार के एजेंडा में है.

मालूम हो कि यूसीसी को लागू करना भाजपा के घोषणापत्र का हिस्सा भी रहा है. लेकिन सरकार के लिए इसे लागू करना अब इतना आसान नहीं रहा है क्योंकि भाजपा के पास इस बार पूर्ण बहुमत नहीं है और इसके मौजूदा सहयोगी दल पहले ही यूसीसी के प्रस्ताव पर आपत्ति जता चुके हैं.

एनडीए में शामिल जदयू के पास इस बार 12 सांसद हैं और जदयू ने भाजपा को स्पष्ट कर दिया है कि यूसीसी के मुद्दे पर आज भी उसका वही रुख है, जो 2017 में था.

उधर, जदयू का कहना है कि यूसीसी को सुधार के एक उपाय के रूप में देखा जाना चाहिए… राजनीतिक साधन के रूप में नहीं. तब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यूसीसी पर विधि आयोग को एक प्रस्ताव दिया था.

नीतीश कुमार ने अपने 2017 के पत्र में लिखा था कि राज्य को यूसीसी लाने का प्रयास तभी करना चाहिए, जब इस पर आम सहमति हो. इस तरह के प्रयास को स्थायी और टिकाऊ बनाने के लिए व्यापक सहमति बननी चाहिए, न कि ऊपर से आए आदेश को थोपा जाना चाहिए.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कुमार ने अपने पत्र में कहा था कि भारत कानून और शासन सिद्धांत के मामले में विभिन्न धर्मों और जातीय समूहों के एक नाजुक संतुलन पर आधारित देश है. उन्होंने ये भी कहा था कि यूसीसी लागू करने का कोई भी प्रयास सामाजिक टकराव और धार्मिक स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी में विश्वास को कम कर सकता है.

बिहार के मुख्यमंत्री ने उस समय विधि आयोग द्वारा भेजी गई प्रश्नावली पर भी आपत्ति जताई थी और कहा था कि इसे इस तरह से तैयार किया गया था कि ‘यह उत्तरदाताओं को एक विशेष तरीके से जवाब देने के लिए मजबूर करती है.’

तेदेपा नेताओं ने भी इससे पहले यूसीसी जैसे मुद्दों पर चर्चा और आम सहमति तक पहुंचने के महत्व को रेखांकित किया था.

तेदेपा नेता नारा लोकेश ने हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक साक्षात्कार में कहा था, ‘परिसीमन, समान नागरिक संहिता आदि जैसे मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की जाएगी और सौहार्दपूर्ण ढंग से हल किया जाएगा. हम साझेदारों के साथ बैठेंगे और इन सभी मुद्दों पर आम सहमति हासिल करने का प्रयास करेंगे.’

इस बीच, युवजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) जिसकी हाल तक आंध्र प्रदेश में सरकार थी, ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह यूसीसी का समर्थन नहीं करेगी.

वाईएसआरसीपी संसदीय दल के नेता वी. विजयसाई रेड्डी ने कहा, हम उन मामलों का समर्थन करेंगे जो देश के हित में हैं. चुनाव से पहले ही, हमारी पार्टी ने स्पष्ट कर दिया था कि हम यूसीसी का समर्थन नहीं करेंगे.

वाईएसआरसीपी का रुख तेदेपा पर यूसीसी को लेकर अधिक स्पष्ट रुख अपनाने का दबाव डाल सकता है क्योंकि दोनों पार्टियां पार्टीयां आंध्र प्रदेश से ही चुनाव लड़ती हैं. चुनावों के दौरान भाजपा के ‘अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण हटाओ’ नारे पर तेदेपा ने साफ किया था कि वह आंध्र प्रदेश में ऐसा नहीं करेगी.