यूपी: पक्षियों के ‘स्वर्ग’ बखिरा ताल को लेकर किए गए सरकारी दावे कब धरातल पर उतरेंगें

संतकबीर नगर ज़िले में क़रीब 2,900 हेक्टेयर में फैले विशाल बखिरा ताल को पक्षियों का स्वर्ग कहा जाता है, लेकिन इस जगह पर प्राकृतिक आवास के क्षरण और व्यवधान से प्रवासी व स्थानीय पक्षियों की संख्या में कमी आ रही है. बावजूद इसके सरकारी तंत्र घोषणाओं के आगे बढ़ता नहीं दिखता.

जलखुंबियों से पटे बखिरा ताल का एक दृश्य. (सभी फोटो: मनोज सिंह)

गोरखपुर: करीब 2,900 हेक्टेयर में फैले संत कबीर नगर जिले के विशाल बखिरा ताल के बारे में यदि आप इंटरनेट पर सर्च करेंगे तो इसके बारे में एक सुनहरी तस्वीर बनाती हुई खबरें मिलेंगी. इनमें मिलेगा कि बखिरा ताल को अब ईको टूरिज्म के रूप में विकसित किया जाएगा, यहां ऑर्गेनिक खेती होगी, सोलर प्लांट लगेगा, रेन वॉटर हार्वेस्टिंग होगी, यह रोजगार का हब बनेगा आदि आदि लेकिन यहां पहुंचते ही आपको जोर का झटका लग सकता है.

यहां पुरइन, जलकुंभी और नरकट से भरा ताल दिखेगा और घूम रहे इक्के- दुक्के लोग मिल जाएंगे. ताल के कुछ हिस्से में गेहूं के कटे खेत दिखाई देंगे. एक उजाड़ जेट्टी (घाट) नजर आएगी, जिस पर कुछ युवक चढ़ने का प्रयास कर रहे हैं. एक परिवार जब बोटिंग में असफल रहता है तो नाव पर चढ़कर फोटो खिंचाकर वापस लौटने लगता है.

स्थानीय लोग बताते हैं कि सर्दियों में दृश्य बदल जाता है और हजारों किलोमीटर से उड़कर आए प्रवासी पक्षियों से यह ताल गुलजार हो जाता है. ताल में तब पानी भी रहता है और बोटिंग भी हो जाया करती है, फिर भी यह ताल अपनी संपूर्णता में नजर नहीं आती है.

चाहे सर्दियों के मौसम में आएं या गर्मियों में, यहां बुनियादी सुविधाओं की कमी आपको उदास कर देती है.

वन्य जीव संस्थान ने बखिरा ताल को पक्षियों का स्वर्ग कहा है, लेकिन साथ ही इस खूबसूरत जगह पर प्राकृतिक आवास के क्षरण और व्यवधान से प्रवासी व स्थानीय पक्षियों की संख्या में आ रही कमी के प्रति भी चेताया है और जल्द ही जरूरी कदम उठाने को कहा है. लेकिन, सरकारी तंत्र सुनहरी घोषणाओं के आगे बढ़ता नहीं दिखता.

यदि सरकारी तंत्र गंभीर होता तो वन्य जीव संस्थान द्वारा बनाई गई पंचवर्षीय कार्ययोजना अमल में आ चुकी होती, लेकिन सच्चाई यह है कि इस कार्ययोजना का एक भी पहलू आज तक पूरा नहीं हुआ है.

यह हालात तीन दशक से अधिक समय से बने हुए हैं. संतकबीर नगर जिले में स्थित इस प्राकृतिक ताल को जब 1990 में ‘बखिरा पक्षी विहार’ नाम दिया गया और इसे सोहगीबरवां अभयारण्य के अंतर्गत लाया गया तो उम्मीद जागी कि इसके दिन बहुरेंगे, लेकिन तबसे अब तक इसका नाम ‘राज्य पक्षी सारस क्रेन अभयारण्य’ करने के साथ छिटपुट काम के अलावा ज्यादा कुछ नहीं हुआ है.

मुख्य सड़क पर एक गेट बन गया है. मुख्य सड़क से बखिरा ताल तक जाने वाली सड़क को सीमेंटेड कर दिया गया है. लेकिन, यह सड़क इतनी संकरी है कि यदि आमने- सामने दो चार पहिया वाहन आ जाएं तो मुश्किल हो जाएगी. यहां वन विभाग का कार्यालय जरूर बन गया है जहां डिस्पले बोर्ड में बखिरा ताल की विशेषताओं, यहां पाए जाने वाले प्रवासी पक्षियों, जलीय जंतुओं के बारे में तस्वीरों के साथ जानकारी दी गई है.

इस कार्यालय में वन क्षेत्राधिकारी के अलावा एक वन दरोगा, तीन नाविक सहित नौ परिचारक और फाइटर सहित एक दर्जन स्टाफ है, जिनमें अधिकतर संविदा पर हैं. कार्यालय में कुछ नावें हैं जो यहां घूमने आने वाले लोगों के लिए हैं, लेकिन इनका उपयोग सर्दियों में ही अधिक होता है. गर्मियों में यह पूरी जगह सन्नाटे से भरी रहती हैं.

राज्य पक्षी सारस क्रेन अभयारण्य बखिरा की वन क्षेत्राधिकारी प्रीति पांडेय बताती हैं कि करीब 400 वर्ष से अधिक पुराने अभिलेखों में इस ताल का जिक्र मिलता है. इसका जिक्र मोती ताल और वृक्ष ताल के नाम से भी मिलता है.

बखिरा ताल अब रामसर साइट में जगह पा चुका है.

बखिरा ताल को 29 जून 2021 को रामसर साइट पर दर्ज किया गया. रामसर साइट पर देश के 80 वेटलैंड दर्ज हैं. रामसर साइट आर्द्रभूमियों के संरक्षण और संसाधनों के बुद्धिमतापूर्ण टिकाऊ उपयोग के बारे अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर काम के लिए हुई अंतरराष्ट्रीय संधि के बाद अस्तित्व में आया था. यूनेस्को के तत्वावधान में हुई इस संधि को ‘द कन्वेंशन ऑन वेटलैंड’ के नाम से जाना जाना है. यह संधि ईरान के रामसर में 2 फरवरी 1972 को हुई थी. इसलिए इसे रामसर कन्वेंशन भी कहा जाता है. यह संधि 21 दिसम्बर 1975 को लागू हो गई थी. रामसर साइट आर्द्रभूमियों, विशेषकर जल पक्षियों को आवास प्रदान करने वाली आर्द्रभूमियों, की पहचान करती है.

रामसर साइट पर बखिरा ताल के बारे में कहा गया है कि ‘संत कबीर नगर जिले में मीठे पानी का यह दलदल पूर्वी उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा प्राकृतिक बाढ़ क्षेत्र आर्द्रभूमि है. यह आर्द्रभूमि पक्षियों को प्राकृतिक वास उपलब्ध कराने के लिए लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण है. यह 80 से अधिक पक्षी प्रजातियों का ठिकाना है. यह मध्य एशियाई फ्लाईवे पर प्रवास करने वाली 25 से अधिक पक्षी प्रजातियों का शीतकालीन आवास है. इनमें से कुछ पक्षी खतरे में हैं, तो कुछ खतरे के कगार पर हैं. इस वेटलैंड में पौधों की 119 और मछलियों की 45 प्रजातियां पाई जाती हैं.

बखिरा ताल में अक्टूबर शुरू होते ही प्रवासी पक्षियों का जमघट शुरू हो जाता है. यहां पांच हजार किलोमीटर दूर से प्रवासी पक्षी चले आते हैं. इन प्रवासी पक्षियों में यूरेशियन कूट, लालसर, सरपट्टी सवन, बेखुर बत्तख, नकटा, सीखपर बत्तख, कुर्चिया बत्तख, गिर्री बत्तख, मलाई , छोटी मुर्गाबी प्रमुख हैं. बखिरा ताल लालसर के लिए सबसे ज्यादा मशहूर है जिसका वैज्ञानिक नाम रेड क्रेस्टेड पोचार्ड है. साइबेरिया से हजारों किलोमीटर की यात्रा कर बखिरा ताल पहुंचने वाले इस पक्षी का सिर चटकीला लाल होता है, इस कारण इसे लालसर कहा जाता है. इसी पक्षी का शिकार सबसे ज्यादा होता रहा है, जिस पर अब लगभग अंकुश लग गया है.

लालसर और कैमा पक्षी के बारे में जानकारी देने वाला बोर्ड.

स्थानीय पक्षियों में सबसे अधिक यहां कैमा पाया जाता है जो बैंगनी रंग का होता है लेकिन चोंच लाल होती है. ये पांच हजार से अधिक की संख्या में पाए जाते हैं. इसके अलावा, स्थानीय पक्षियों में पाइड किंगफिशर, नीलकंठ, छोटा पनकौआ, फिजेंट जकाना, सफेद चील, घोंघिल, लाल टिटहरी, इंटरमीडिएट इग्रेट और सफेद छाती किंगफिशर शामिल हैं.

बखिरा ताल मछलियों की भी खान है. यहां पर रोहू, पताशी, गिरई, सिंघी, पढिनी, ढिबरी, सौरी, टेंगरा, नैनी सहित मछलियों की 50 प्रजातियां मिलती हैं जो ताल के आस-पास रहने वाले स्थानीय लोगों के भोजन के साथ-साथ आजीविका का भी स्रोत हैं. स्थानीय लोगों को ताल से मछलिया पकड़ने पर कोई रोक नहीं है.

यहां सांपों की आधा दर्जन प्रजातियों के साथ-साथ तेंदुआ, चीतल, सियार, जंगली सुअर, नीलगाय, जंगली खरगोश भी पाए जाते हैं.

यहां पाई जाने वालीं 119 वनस्पतियों की पहचान की गई है. बखिरा ताल की नेउसा नाम की वनस्पति का उपयोग स्थानीय लोग खाने में भी करते हैं. महला गांव से आईं तीन महिलाएं दोपहर तक आधा झोला नेउसा निकाल पाईं थीं. दलदल में यह पान के आकार की वनस्पति की जड़ होती है जिसे उबालकर सब्जी के रूप में खाया जाता है.

बखिरा ताल और आसपास के क्षेत्र में बड़ी संख्या में सारस भी मिलते हैं. इसी कारण ‘बखिरा पक्षी विहार’ का नाम बदल कर इसे ‘राज्य पक्षी सारस क्रेन अभयारण्य’ नाम दिया गया है. सारस उत्तर प्रदेश का राज्य पक्षी है. दुनिया भर में सारस की आठ प्रजातियां हैं जिनमें से पांच भारत में पाई जाती हैं. साइबेरियन सारस अब विलुप्त हो चुके हैं. सारस दुनिया में सबसे उंची उड़ान भरने वाला पक्षी है. सारस 40 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ते हैं और एक बार में 500 किलोमीटर की दूरी तय कर लेते हैं.

वन क्षेत्राधिकारी प्रीति पांडेय ने कहा कि हमने बखिरा ताल के लिए कई प्रस्ताव बनाए और सरकार को भेजे हैं. टूरिस्ट फैसिलिटेशन सेंटर का काम शुरू होने जा रहा है. इसमें कैंटीन, वॉश रूम, वेटिंग हॉल आदि बनेंगे. इससे बखिरा ताल आने वाले लोगों को बहुत सुविधा मिलेगी. सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि ताल की जमीन हमारी नहीं है. यह जमीन काश्तकारों और ग्राम सभा की है. जमीन अधिग्रहण का प्रस्ताव काफी समय से विचाराधीन है. इसमें बहुत पैसा लगेगा. यदि जमीन हमारी होती तो वन विभाग अब तक बहुत कुछ कर सकता था. हमारा कार्यालय भी एक ग्रामीण की दान दी हुई जमीन पर बना है. ताल में दान की जमीन पर जेट्टी बनाई गई है. अपनी जमीन नहीं होने से हमें पेट्रोलिंग तक में दिक्कत आती है. काश्तकार पानी कम होने पर गेहूं की फसल भी उगाते हैं, हालांकि अभी यह कम हॉ गई है.

उन्होंने बताया कि उचित पर्यटन के लिए बहुत काम करने की जरूरत है. रामसर साइट में बखिरा ताल के आने से लोगों में इसके बारे में नई उत्सुकता व जागरूकता आई है. प्रवासी पक्षियों के शिकार में कमी आई है. हम लोगों को इसके बारे में लगातार जागरूक कर रहे हैं. कार्रवाई भी कर रहे हैं.

बखिरा ताल 2894.21 हेक्टेयर में फैली हुई है. मानसून के समय में इसकी गहराई सात मीटर तक होती है जो गर्मियों में कम होकर एक से दो मीटर रह जाती है.

बखिरा ताल की 2894.21 हेक्टेयर ज़मीन में से 1819.91 हेक्टेयर ज़मीन ग्राम सभा की है. इसके अलावा 1059.14 हेक्टेयर काश्तकारों की है. वन विभाग के पास सिर्फ 15.16 हेक्टेयर भूमि है. इसके चारों तरफ 108 गांव स्थित हैं, जिनकी आजीविका का यह ताल बड़ा स्रोत भी है.

बखिरा ताल के लिए वन्य जीव संस्थान ने पंचवर्षीय विस्तृत परियोजना रिपोर्ट अप्रैल 2020 – मार्च 2025 तैयार की है. इसमें बखिरा पक्षी विहार की समस्याओं को चिह्नित करते हुए इसके ईको फ्रेंडली विकास के हेतु तमाम कार्यों के लिए 3,447 लाख के खर्च करने की संस्तुति की गई है.

इस कार्ययोजना को मार्च 2025 तक पूरा करना प्रस्तावित था लेकिन अब जब सिर्फ दस महीने बचे हैं, इस कार्ययोजना का कोई कार्य शुरू नहीं हो पाया है.

बखिरा ताल में मिलने वाली एक खाद्य वनस्पति को दिखाती महिला.

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बखिरा पक्षी अभयारण्य में ईको टूरिज्म और ईको डेवलपमेंट को बढ़ावा देने के लिए यहां बुनियादी ढांचा बहुत कमजोर है. बखिरा ताल का सीमांकन और भूमि के स्वामित्व के मसले को बड़ी चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए कहा गया है कि इससे प्रभावी प्रबंधन में दिक्कत आती है. प्रदूषण, बखिरा ताल में पानी के स्तर को बनाए रखने (विशेष कर गर्मियों में), ताल में अवांछित खरपतवार के बढ़ते जाने, संवेदनशील समय में भी मछलियों के शिकार, पक्षियों के प्रवास, प्रजनन व भोजन के इंतजाम आदि समस्याओं की विशद चर्चा करते हुए जरूरी कार्य सुझाए गए हैं.

कार्ययोजना में बखिरा ताल में पानी की कमी को दूर करने के लिए चोरमा नाले में नए स्लुइस गेट बनाने, अभयारण्य के चारों ओर 50 मीटर चौड़ा ग्रीन बेल्ट विकसित करने, ताल से अवांछित खरपतवार हटाने, पक्षियों के आवास, प्रजनन व भोजन के लिए हैविटेट प्रबंधित करने को कहा गया है. साथ ही, ईको टूरिज्म की गतिविधियां बढ़ाने और उसके लिए उपयुक्त ढांचे को विकसित करने के सुझाव दिए गए हैं. बखिरा ताल के 50 किलोमीटर के दायरे में स्थित अन्य आर्द्रभूमि व वॉटर बॉडीज के अध्ययन की भी बात कही गई है.

राज्य पक्षी सारस क्रेन अभयारण्य (बखिरा) संतकबीरनगर जिले में आता है. यह गोरखपुर से 44 और संत कबीर नगर जिला मुख्यालय से 23.5 किलोमीटर दूर है. संत कबीर नगर जिले में हालिया संपन्न लोकसभा चुनावों में यह ‘पक्षियों का स्वर्ग ‘  का मुद्दा तक नहीं बन पाया.

तमाम मुश्किलों के बावजूद हजारों किलोमीटर से प्रवासी पक्षियों का आना यहां रुका नहीं है. पांच महीने बाद वे फिर बखिरा ताल आएंगे. बखिरा पक्षी विहार में तीन वर्ष से काम कर रहे वन दरोगा रामप्रीत कहते हैं, ‘अक्टूबर महीने में आइए, तब यहां का नजारा कुछ और होगा.’

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)