संथाल आदिवासी, आरएसएस कार्यकर्ता: ओडिशा के नए मुख्यमंत्री

क्योंझर के निवासी मोहन माझी संथाल जनजाति के सदस्य हैं. संथाल भारत के सबसे बड़े आदिवासी समुदायों में से एक है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी संथाल हैं. वह क्योंझर के सीमावर्ती मयूरभंज ज़िले की निवासी हैं. ये दोनों ज़िले मिलकर राज्य का अत्यंत विस्तृत आदिवासी भूगोल रचते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ओडिशा के सीएम मोहन चरण माझी. (फोटो साभार: ट्विटर/@narendramodi)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ता, सरस्वती शिशु मंदिर के पूर्व अध्यापक, ग्राहम स्टेंस और उनके दो बच्चों की हत्या के लिए दोषी दारा सिंह की रिहाई के लिए चलाये गए अभियान के नेता. ओडिशा के नए मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी का बायोडाटा दूर से चमकता है.

जब भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के 24 साल के सफर पर विराम लगाते हुए ओडिशा में पहली बार सरकार बनाई, सदन के नए नेता को लेकर कयास लगाए जा रहे थे. जल्द ही भाजपा नेता राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्री पद के लिए मोहन चरण माझी के नाम की घोषणा की, और उसके बाद प्रभाती परिदा और कनक वर्धन सिंह देव को उप-मुख्यमंत्री चुना गया.

बुधवार को माझी द्वारा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के तुरंत बाद खबरें आने लगीं कि उन्होंने बजरंग दल कार्यकर्ता दारा सिंह की रिहाई की मांग के लिए सुदर्शन टीवी के संपादक सुरेश चव्हाणके का समर्थन किया था. दारा सिंह को 1999 में ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस और उनके दो बच्चों की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था. स्टेंस कुष्ठरोगियों के लिए एक संस्थान चलाते थे.

कट्टर सांप्रदायिक बयानों के लिए जाने वाले चव्हाणके दारा सिंह को रिहा कराने के लिए अभियान का नेतृत्व कर रहे थे. सितंबर 2022 में चव्हाणके को क्योंझर जेल में सिंह से मिलने की अनुमति नहीं दी गई थी, जिसके बाद उन्होंने, मोहन चरण माझी और अन्य भाजपा नेताओं ने जेल अधिकारियों पर दबाव बनाने के लिए धरना दिया था.

 संथाल आदिवासी, संघ के नेता

क्योंझर जिले के रायकला गांव में जन्मे माझी के पिता सुरक्षा गार्ड थे. माझी ओडिशा के तीसरे आदिवासी मुख्यमंत्री हैं. उनसे पहले कांग्रेस के गिरिधर गमांग और हेमानंदा बिस्वाल मुख्यमंत्री पद पर आदिवासी समुदाय का नेतृत्व कर चुके हैं.

माझी संथाल जनजाति से आते हैं. संथाल भारत के सबसे बड़े आदिवासी समुदायों में से एक है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी संथाल हैं. वह क्योंझर के सीमावर्ती मयूरभंज जिले की निवासी हैं. ये दोनों जिले मिलकर राज्य का अत्यंत विस्तृत आदिवासी भूगोल रचते हैं.

माझी ने कई दशक पहले आरएसएस की सदस्यता ले ली थी. उन्होंने राजधानी भुवनेश्वर से 300 किलोमीटर दूर क्योंझर जिले के चंपुआ नगर स्थित चंद्र शेखर कॉलेज से साल 1993 में बीए की डिग्री प्राप्त करने के बाद मशहूर ढेंकनाल लॉ कॉलेज से विधि की पढ़ाई की. साधारण परिवार से आने वाले माझी ने क्योंझर जिले के झुमपुरा स्थित सरस्वती शिशु मंदिर में अध्यापन भी किया है. सरस्वती शिशु मंदिर आरएसएस द्वारा संचालित स्कूलों का नेटवर्क है.

माझी ने अपने राजनितिक जीवन की शुरुआत ग्राम पंचायत के चुनावों से की. माझी 1997 से 2000 के बीच  रायकला ग्राम पंचायत के सरपंच थे.

उन्होंने भाजपा के आदिवासी मोर्चा के राज्य सचिव के रूप में भी काम किया है.

साल 2000 में वह पहली बार क्योंझर विधानसभा सीट से विधायक चुनकर गए. 2004 के चुनावों में उन्होंने फिर जीत हासिल की. हालांकि भाजपा और बीजू जनता दल (बीजद) गठबंधन टूटने के बाद वह साल 2009 और 2014 में चुनाव हार गए. साल 2019 में उन्होंने फिर से जीत हासिल की.

2024 के चुनाव में वे बीजद की मीनू माझी को 11500 से अधिक वोटों से हराकर क्योंझर विधानसभा सीट से चौथी बार विधायक चुने गए.

साल 2019 से लेकर साल 2024 तक माझी ने विधानसभा में भाजपा के सचेतक प्रमुख(चीफ ऑफ ह्विप) के रूप में संभवतः सबसे अधिक चर्चाओं में भाग लिया, चाहे वह स्थगन प्रस्ताव हो या शून्यकाल. इस कार्यकाल के दौरान माझी ने सात निजी विधेयक पेश किए थे.

मोहन माझी क्यों भाजपा की पसंद बने

स्थानीय पत्रकारों के मुताबिक, पड़ोसी राज्यों में आदिवासी वोट को साधने के लिए भाजपा ने माझी को चुना है. लोकसभा चुनाव में झारखंड में भाजपा का प्रदर्शन पिछले बार के मुकाबले निराशाजनक रहा है, इसलिए वह विधानसभा में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है. उनके चुने जाने का एक अन्य कारण आरएसएस की पृष्ठभूमि भी है.

वरिष्ठ पत्रकार गिरिजा शंकर ने द वायर को बताया कि भाजपा अभी तक आदिवासी वोट को साध नहीं पाई है, इसलिए उन्होंने एक आदिवासी चेहरे को मुख्यमंत्री बनाया.

पत्रकार आशुतोष मिश्रा के अनुसार, भाजपा नेतृत्व द्वारा माझी को मुख्यमंत्री बनाना अपने आदिवासी वोट बैंक को मजबूत करते हुए क्षेत्रीय संतुलन बनाने का एक प्रयास है.

स्थानीय पत्रकार तपस रथ ने द वायर से बात चीत के दौरान कहा कि मोहन चरण माझी की छवि साफ-सुथरी है. साथ ही वे आदिवासी भी हैं. वह चार बार विधानसभा का चुनाव जीत कर आए हैं जिसके चलते जनता के बीच उनकी सकारात्मक छवि है. तपस ने यह भी कहा कि बीजू पटनायक के बाद कोई भी ऐसा मुख्यमंत्री नहीं हुआ जो जनता के बीच जाता हो. लेकिन माझी जनता के बीच ही उठते-बैठते, खाते-पीते हैं.

इसके अलावा उन्हें इसलिए भी चुना गया है ताकि ओडिशा सरकार पर दिल्ली की पकड़ बनी रहे. इसकी संभावना बहुत कम है कि मोहन माझी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की अवमानना करेंगे.

लेकिन यह भी सही है कि माझी की राज्यव्यापी छवि नहीं है. गिरिजा शंकर ने कहा कि माझी इतने बड़े जननेता नहीं हैं कि उनके नाम पर वोट मिल पाए. मुख्यमंत्री बनने के लिए जो नाम सामने आ रहे थे, उनमें भी माझी का नाम नहीं था. माझी का अपने क्षेत्र में दबदबा हो सकता है. लेकिन पूरे ओडिशा के नेता के तौर पर उन्हें लोग अभी नहीं देखते.

ग्राहम स्टेंस के हत्यारे दारा सिंह की रिहाई के लिए अभियान

लेकिन कथित तौर पर बेदाग माझी सांप्रदायिक अभियान का भी हिस्सा रहे हैं. उन्होंने 2022 में दारा सिंह को रिहा कराने के लिए धरना दिया था. 1999 में दारा सिंह ने एक उग्र भीड़ का नेतृत्व करते हुए उस गाड़ी को आग लगा दी थी जिसमें ग्राहम स्टेंस और उनके दो बेटे सो रहे थे. इस आग में ग्राहम स्टेंस और उनके बेटों की मौत हो गई थी.

साल 2003 में खोरधा की एक ट्रायल कोर्ट ने सिंह को मौत की सजा सुनाई, जबकि 12 अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. बाद में ओडिशा उच्च न्यायालय ने सिंह की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया.

सिंह को एक मुस्लिम व्यापारी और एक अन्य ईसाई मिशनरी की हत्या के दो अन्य मामलों में भी दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा दी गई थी.

इसके अलावा उन पर एक अन्य आरोप भी है.

साल 2023 में माझी को स्पीकर के मंच पर साबुत दाल फेंकने के लिए विधानसभा से निलंबित कर दिया गया था. हालांकि उन्होंने इस दावे से इनकार कर दिया था और कहा था कि उन्होंने केवल स्पीकर के सामने  दाल पेश की थी.

यह विरोध कथित तौर पर मध्याह्न भोजन योजना (मिड डे मील) के लिए दालों की खरीद में 700 करोड़ के ‘घोटाले’ को उजागर करने के लिए था.