नई दिल्ली: सेना की पश्चिमी कमान में तैनात एक महिला कर्नल ने अपने पोस्टिंग आदेशों को चुनौती देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है.
उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों पर उनके चरित्र, सैन्य प्रतिष्ठा को धूमिल करने और निम्न रैंक के सैनिकों के सामने उनकी गरिमा को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारी ने कोर मुख्यालय से डिवीजन मुख्यालय में ‘अतिरिक्त अधिकारी’ के रूप में अपनी पोस्टिंग आदेशों को चुनौती देते हुए आरोप लगाया है कि ऐसा इसलिए किया गया है ताकि उन्हें फरवरी में तीन ब्रिगेडियर और एक लेफ्टिनेंट कर्नल के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत पीछा करने, बंधक बनाने, मानहानि और कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 के तहत दर्ज कराई गई एफआईआर को आगे बढ़ाने से रोका जा सके.
जब मामला 5 जून को सुनवाई के लिए आया तो जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा और विकास महाजन की अवकाश पीठ ने अधिकारी को अपनी नई पोस्टिंग पर रिपोर्ट करने और फिर छुट्टी पर जाने को कहा. पीठ ने मामले को जुलाई के लिए टाल दिया.
कर्नल ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि 27 मई को जब वह छुट्टी पर थीं, तब उन्हें जल्दबाजी में पोस्टिंग कर दिया गया.
उन्होंने आरोप लगाया कि पोस्टिंग ऑर्डर तब जारी किया गया, जब राष्ट्रीय महिला आयोग ने कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) सहित सेना के अधिकारियों द्वारा निष्क्रियता के बारे में उनकी शिकायत का संज्ञान लिया. उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें ऐसे डिवीजन में पोस्ट किया गया, जहां उनकी रैंक के अधिकारी के लिए कोई रिक्ति ही नहीं थी.
हाईकोर्ट में सरकारी वकील ने तर्क दिया कि ट्रांसफर ऑर्डर पारदर्शी तरीके से और संबंधित नियमों के अनुसार पारित किया गया है.
कर्नल ने अपनी याचिका में कहा है कि उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए चार अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है. इनमें स्टेशन कमांडर, चीफ सिग्नल ऑफिसर, जो कोर्ट ऑफ इंक्वायरी कर रहे थे, पश्चिमी कमान के डिप्टी जज एडवोकेट जनरल और मिलिट्री पुलिस यूनिट के कार्यवाहक कमांडिंग ऑफिसर शामिल हैं.
एफआईआर आईपीसी की धारा 342, 354-डी, 504, 500, 120-बी और कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न रोकथाम, निषेध और निवारण अधिनियम 2013 की धारा 26 के तहत दर्ज की गई है.
कोर मुख्यालय के स्थान पर अगस्त 2023 में सुरक्षा चूक और छावनी के अंदर एक नागरिक के प्रवेश की जांच के लिए कोर्ट ऑफ इंक्वायरी शुरू की गई थी. यह कर्नल के घर में एक आपराधिक अतिक्रमण के बाद किया गया था, जिसके लिए उसने स्थानीय पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई थी.
कर्नल ने आरोप लगाया है कि उसका नाम एक चिट पर लिखकर छावनी के सभी प्रवेश और निकास बिंदुओं पर लगा दिया गया था और सैन्यकर्मियों को उनका पीछा करने के आदेश दिए गए थे. उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि कोर्ट ऑफ इंक्वायरी की कार्यवाही के दौरान उनका नाम सभी को बता दिया गया था, इस तथ्य के बावजूद कि वह यौन अपराधों की शिकार थी और इसलिए उनकी पहचान की सुरक्षा के लिए विशाखा दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया गया.
सेना की नीति के अनुसार, कार्यवाही बंद कमरे में होनी थी, लेकिन कोर्ट ऑफ इंक्वायरी ने ऐसा नहीं किया.
कर्नल ने याचिका में कहा है कि कोर्ट ऑफ इंक्वायरी की कार्यवाही के दौरान उनके निजी और व्यक्तिगत जीवन से संबंधित अप्रासंगिक प्रश्न पूछे गए, जो अपमानजनक प्रकृति के थे और कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के सामने रखे गए विषय के दायरे से बाहर थे.
कर्नल ने याचिका में आगे कहा कि उनके और उनके पति, जो सेवानिवृत्त कर्नल हैं, द्वारा कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी), जीओसी-इन-सी पश्चिमी कमान, एडजुटेंट जनरल और सेना प्रमुख को विभिन्न अभ्यावेदन दिए गए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई.
उधर, चार आरोपी सैन्य अधिकारियों ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में एफआईआर को रद्द करने की मांग की है, जिसने अप्रैल में एकतरफा आदेश दिया था कि फिलहाल उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए.
सेना की पश्चिमी कमान ने मामले पर टिप्पणी करने से इनकार करते हुए कहा कि यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है.
कमान मुख्यालय ने कहा कि अधिकारियों की पोस्टिंग सेना मुख्यालय में प्रबंधित की जाती है और सैन्य सचिव की शाखा वांछित जानकारी दे सकती है.