नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल मंडला जिले में फ्रिज से कथित गोमांस मिलने पर 11 लोगों के घर ढहा दिए गए हैं. पुलिस का कहना है घर सरकारी जमीन पर बने थे. मंडला पुलिस अधीक्षक रजत सकलेचा ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘नैनपुर के भैंसवाही इलाके में बड़ी संख्या में गायों को काटने के लिए बंधक बनाकर रखा गया था. गुप्त सूचना मिलने पर पुलिस की एक टीम वहां पहुंची. टीम को आरोपियों के घरों के पीछे बंधी 150 गायें मिलीं.’
पुलिस अधीक्षक ने आगे कहा, ‘सभी 11 आरोपियों के घरों में रेफ्रिजरेटर से गाय का मांस बरामद किया गया. हमें जानवरों की चर्बी, मवेशियों की खाल और हड्डियां भी मिलीं, जिन्हें एक कमरे में रखा गया था.’ पुलिस के मुताबिक, स्थानीय सरकारी पशु चिकित्सक ने पुष्टि की है कि जब्त किया गया मांस गोमांस है. सेकेंडरी डीएनए की जांच के लिए मांस के नमूने हैदराबाद भेजे गए हैं.
क्यों तोड़े गए घर?
घर तोड़े जाने के सवाल पर पुलिस अधीक्षक ने बताया, ’11 आरोपियों के घर इसलिए ध्वस्त कर दिए गए क्योंकि वे सरकारी जमीन पर बने थे.’
गायों और गोमांस की बरामदगी के बाद शुक्रवार (14 मई) रात को एफआईआर दर्ज कर ली गई थी. एक आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है, शेष 10 की तलाश जारी है.
सकलेचा ने कहा, ‘150 गायों को गोशाला में भेज दिया गया है. भैंसवाही इलाका पिछले कुछ समय से गो तस्करी का अड्डा बन गया था. मध्य प्रदेश में गोहत्या करने पर सात साल कारावास की सजा का प्रावधान है.’
अलग-अलग मीडिया संस्थानों ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि सभी आरोपी मुसलमान हैं.
रतलाम में तनाव
एक अन्य घटना मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के जौरा कस्बे की है, जहां एक स्थानीय मंदिर परिसर में गोवंश के शरीर के अंग फेंके जाने के बाद तनाव फैल गया है. खबर के मुताबिक, शुक्रवार की सुबह कस्बे के जागनाथ महादेव मंदिर में हुई इस घटना को लेकर हिंदू संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया. पुलिस ने स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए आंसू गैस के गोले दागे और प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया.
सलमान मेवाती (24) और शाकिर कुरैशी (19) नामक दो व्यक्तियों को मंदिर परिसर में गोवंश के शरीर के अंगों को फेंकने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है और उनके घरों के अवैध हिस्सों को गिरा दिया गया है.
अतिक्रमण के नाम पर घर ढहाने पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
इसी साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने अवैध बताकर ढहाए जा रहे मकानों के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा था कि आवास का होना प्रत्येक व्यक्ति का मूल अधिकार है और यदि किफायती आवास उपलब्ध कराने में सरकारी नीतियों में कमी होगी तो अनधिकृत कॉलोनियां बसेंगी ही.
जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा था, ‘यह सरकार की भी विफलता है. आपके सिर पर छत, एक आश्रय, यह बुनियादी अधिकार है. सभी मामलों में भूमि असल में सरकार के पास ही है, इसलिए कीमत भी अधिक है. हमें इस तथ्य को स्वीकार करना होगा.’