देश को एक निष्पक्ष और उदार ‘कर’ ढांचे की आवश्यकता है

सरकार के पास नागरिकों और व्यवसायों का एक छोटा कर आधार है, जहां जिससे जितना संभव हो उतना अधिक कर वसूला जा रहा है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Unsplash)

इस वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत का कर-से-जीडीपी अनुपात 11.7% के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंचने की संभावना है. अप्रैल में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह रिकॉर्ड 2.10 लाख करोड़ रुपये रहा और यह रिकॉर्ड जारी रह सकता है. इस वित्तीय वर्ष में अप्रत्यक्ष करों सहित सकल कर राजस्व 16 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंचेगा.

वित्त वर्ष 2025 में कर संग्रह के अनुमान भी उच्चतम स्तरों पर पहुंचने का संकेत देते हैं. प्रत्यक्ष कर-से-जीडीपी अनुपात में वृद्धि का अधिकांश हिस्सा कॉरपोरेट कर संग्रह के बजाय, आयकर संग्रह में वृद्धि के कारण है. व्यक्तिगत आयकर संग्रह में वित्त वर्ष 23 में 20% की वृद्धि देखी गई और वित्त वर्ष 24 (नवंबर तक) में 29.4% की भारी वृद्धि देखी गई. इसके विपरीत, इसी अवधि के दौरान कॉरपोरेट कर संग्रह में 16% और 20.1% की वृद्धि दर देखी गई.

सरकार के पास नागरिकों और व्यवसायों का एक छोटा कर आधार है, जिससे जितना संभव हो उतना अधिक कर वसूला जा रहा है.

1991 के बाद की अवधि के अधिकांश भाग से तुलना करने पर वर्तमान कर परिवेश बहुत अधिक है, जिसमें बड़ा हिस्सा व्यक्तिगत आयकर 34%, कॉरपोरेट आयकर 25% और अधिकतम जीएसटी दर 28% है. 4% शिक्षा उपकर और उच्च आय वर्ग पर 25% अधिभार के अलावा देय कर के शेष घटक स्पष्ट नहीं हैं.

इस बीच सरकार ने 30 जून, 2024 को समाप्त तिमाही के लिए लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है.

आयात करों और गैर-टैरिफ बाधाओं में लगातार वृद्धि करके बाजार का अत्यधिक विनियमन भी समग्र उच्च कर संरचना में योगदान देता है.

हाल ही में मुंबई में आयोजित बीएसई कार्यक्रम के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को एक शेयर बाजार दलाल की आलोचना का सामना करना पड़ा, जिसका वीडियो वायरल हुआ. दलाल ने बताया कि जीएसटी, एकीकृत माल और सेवा कर (आईजीएसटी), और दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर जैसे कई कर और शुल्क सामूहिक रूप से निवेशकों की कमाई से अधिक हैं.

‘आप मेरे स्लीपिंग पार्टनर हैं, मैं अपने वित्त, अपने जोखिम, अपने कर्मचारियों, हर चीज के साथ एक कामकाजी भागीदार हूं.’ सीतारमण ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया और कहा, ‘एक स्लीपिंग पार्टनर यहां बैठकर जवाब नहीं दे सकता.’ कर संबंधी चिंताओं के बारे में उनकी प्रतिक्रिया हास्यास्पद तो थी, साथ ही वे बाजार में सक्रिय रूप से शामिल लोगों पर सरकार द्वारा लगाए गए असंगत टैक्स के बोझ को सीधे तौर पर संबोधित करने में विफल रहीं.

देशभर में राजमार्गों/एक्सप्रेसवे पर 5% की बढ़ोतरी टोल टैक्स आम चुनावों के तुरंत बाद 3 जून को लागू हुई. टोल प्लाजा और शुल्कों की संख्या में वृद्धि के कारण 2018-19 में 252 बिलियन रुपये से 2022-23 वित्तीय वर्ष में टोल संग्रह लगभग 540 बिलियन रुपये तक पहुंच गया है. टोल शुल्क में वार्षिक वृद्धि से आवश्यक वस्तुओं की लागत लगातार बढ़ रही है और आम लोगों के लिए सड़क यात्रा महंगी होती जा रही है.

राष्ट्रीय राजमार्ग टोल प्लाजा पर उपयोगकर्ता शुल्क के भुगतान के लिए अनिवार्य किए गए फास्टैग (FASTag) के साथ गलत टोल कटौती और अनधिकृत डेबिट जैसी कई समस्याएं भी हैं. अब सरकार ने अगले दो वर्षों में पूरे भारत में सैटेलाइट-आधारित इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह शुरू करने का फैसला किया है. विभिन्न राज्यों में विभिन्न वाहन पंजीकरण/सड़क करों के ऊपर उच्च टोल कर आम जनता पर एक अतिरिक्त शुल्क बोझ है.

पिछले महीने 1.85 लाख रुपये की शुरुआती कीमत पर नई 400 सीसी पल्सर मोटरसाइकिल के लॉन्च के मौके पर बजाज समूह के निदेशक राजीव बजाज ने दोपहिया वाहनों की कीमतों में वृद्धि के लिए बाजार के ‘अति-नियमन’ को जिम्मेदार ठहराया और सरकार से उच्च जीएसटी दर पर पुनर्विचार करने को कहा. उनका कहना था, ‘ऐसा क्यों है कि भारत में आम आदमी के वाहनों पर हमें 28% की जीएसटी दर चुकानी पड़ती है? आप आसियान देशों को देखें, जहां जीएसटी की सामान्य दर 8% और 14% है.’

इसमें कोई संदेह नहीं है कि जीएसटी संरचना में कई जटिलताएं हैं, जो कारोबार के लिए परेशानी का कारण बन रही हैं.

मई में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) के एक परिपत्र में स्वीकार किया गया कि कुछ जीएसटी फील्ड अधिकारियों ने निर्धारित समय अवधि से पहले जीएसटी मांग वसूली की कार्रवाई शुरू कर दी, यहां तक ​​कि उन मामलों में भी जहां ऐसा करना विशेष रूप से आवश्यक नहीं था.

हाल ही में ‘थिंक चेंज फोरम’ द्वारा आयोजित एक सेमिनार में अर्थशास्त्रियों ने सहमति व्यक्त की कि सरकार करों को कम कर सकती है, जीडीपी अनुपात में कर को कम रख सकती है और फिर भी अपनी बड़ी आबादी के कारण मजबूत कर जमा कर सकती है. इसके लिए अनौपचारिक क्षेत्र को कर के दायरे में आना चाहिए ताकि 2047 तक 25 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी के साथ विकसित अर्थव्यवस्था में संक्रमण को सक्षम किया जा सके.

‘थॉट आर्बिट्रेज रिसर्च इंस्टिट्यूट’ के निदेशक कौशिक दत्ता ने कहा कि ‘सरलीकृत जीएसटी व्यवस्था उन्हें औपचारिक अर्थव्यवस्था में शामिल होने, इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने और प्रतिस्पर्धी बनने में सक्षम बनाएगी.

जीएसटी परिषद, जिसने पिछले आठ महीनों से कोई चर्चा नहीं की है, 22 जून को बैठक हुई है. उम्मीद है कि परिषद संबंधित पक्ष लेनदेन, कर्मचारी स्टॉक विकल्प योजना (ईसॉप) कराधान, कॉरपोरेट गारंटी और शुल्क संरचना जैसे कई मुद्दों पर कर स्थिति को स्पष्ट करेगी.

कारोबार जीएसटी परिषद से कर विवादों को निपटाने के लिए माफी योजना को प्राथमिकता देने का आग्रह कर रहे हैं. कर अपील दायर करने से पहले जमा किए जाने वाले अग्रिम भुगतान को मौजूदा 10% से घटाकर विवादित कर राशि का 7% करने की भी मांग की जा रही है.

स्पष्ट रूप से अब समय आ गया है कि जीएसटी ढांचे में दरों की संख्या कम की जाए. निष्पक्षता, कानून के शासन और कर अधिकारियों की मनमानी शक्ति के संदर्भ में, भारत का कर प्रशासन भरोसा पैदा नहीं करता है. कर नीति में प्राथमिकता वर्तमान मशीनरी (आयकर, जीएसटी, संपत्ति कर) को कर नीति और कर प्रशासन दोनों के स्तर पर कुशल बनाने और अन्य सभी जटिल और अनावश्यक करों को समाप्त करने की होनी चाहिए.

(वैशाली रणनीतिक और आर्थिक मसलों की विश्लेषक हैं.)