रेलवे की सुरक्षा श्रेणी में 1.52 लाख पद ख़ाली, दो सालों में सुरक्षा संबंधी ख़र्च 2.5 गुना बढ़ा: रिपोर्ट

रेलवे के सुरक्षा श्रेणी के पद सीधे तौर पर रेलगाड़ियों के संचालन से जुड़े होते हैं. एक आरटीआई आवेदन के जवाब में रेल मंत्रालय ने बताया है कि सुरक्षा श्रेणी के करीब 10 लाख स्वीकृत पदों में से इस साल मार्च तक 1.5 लाख से अधिक पद रिक्त थे.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: सोशल मीडिया)

नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल के न्यू जलपाईगुड़ी के पास हाल ही में हुए कंचनजंघा एक्सप्रेस रेल हादसे के बाद देश में एक बार फिर रेल सुरक्षा पर सवाल उठने लगे हैं.

इसी बीच, समाचार एजेंसी पीटीआई ने बताया है कि भारतीय रेलवे में सुरक्षा श्रेणी (safety category) के करीब 10 लाख स्वीकृत पदों में से इस साल मार्च तक 1.5 लाख से अधिक पद रिक्त थे.

यह जानकारी रेल मंत्रालय ने खुद सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत एक आवेदन के जवाब में दी है.

पीटीआई के मुताबिक, रेलवे के सुरक्षा श्रेणी के पद सीधे तौर पर रेलगाड़ियों के संचालन से जुड़े होते हैं. इनमें ट्रेन चालक, निरीक्षक, चालक दल नियंत्रक, लोको प्रशिक्षक, ट्रेन नियंत्रक, पटरी का रखरखाव करने वाले, स्टेशन मास्टर, पॉइंट्समैन, इलेक्ट्रिक सिग्नल रखरखाव करने वाले और सिग्नलिंग सुपरवाइजर आदि शामिल हैं, जो रेलगाड़ियों के सुरक्षित संचालन के लिए महत्वपूर्ण हैं.

इस संबंध में रेल मंत्रालय में आरटीआई दाखिल करने वाले मध्य प्रदेश के आरटीआई आवेदक चंद्रशेखर गौड़ ने पीटीआई को बताया कि उन्हें आवेदन के जवाब से पता चला है कि रेलवे को सहायक चालकों के पद खाली होने की वजह से भी प्रभावित होना पड़ रहा है. सहायक चालकों के स्वीकृत कुल 57,551 पदों में से 4,337 पद खाली हैं.

लोको पायलट के 14,429 पद रिक्त 

मालूम हो कि मंत्रालय ने आरटीआई आवेदन के जवाब में कहा है कि भारतीय रेलवे की संरक्षा (सुरक्षा) श्रेणी में स्वीकृत, कार्यरत और रिक्त पदों की कुल संख्या 01.03.2024 (अनंतिम) तक उपलब्ध जानकारी के अनुसार क्रमशः 10,00,941, 8,48,207 और 1,52,734 है.

लोको पायलट (मेल/एक्सप्रेस/यात्री/माल/शंटिंग) के रिक्त पदों के बारे में आरटीआई आवेदन में पूछे गए एक सवाल का उत्तर देते हुए मंत्रालय ने कहा कि कुल स्वीकृत 70,093 पदों में से 14,429 पद रिक्त हैं.

आरटीआई आवेदन में गौड़ ने यह भी जानने कि कोशिश की कि पिछले चार सालों में भारतीय रेलवे में कितने नए पद सृजित किए गए और कितने पद ‘सरेंडर’ किए गए.

इस पर रेलवे ने जवाब दिया कि यह जानकारी इस कार्यालय में केंद्रीय रूप से नहीं रखी जाती है. यह अलग-अलग जगह बिखरी हुई है. यह एक से अधिक सार्वजनिक प्राधिकार यानी सभी क्षेत्रीय रेलवे और उत्पादन इकाइयों आदि से संबंधित है.

इस मामले पर गौड़ ने कहा, ‘मंत्रालय ने मुझे सलाह दी है कि ऐसी जानकारी संबंधित सार्वजनिक प्राधिकारों से आरटीआई अधिनियम के तहत अलग-अलग आवेदन प्रस्तुत करके प्राप्त की जा सकती है. मुझे लगता है कि ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी को केंद्रीय रूप से बनाए रखा जाना चाहिए.’

रेल मंत्रालय ने करीब दो साल पहले सभी संरक्षा श्रेणी के पदों का सृजन बंद किया

ज्ञात हो कि रेलवे ट्रेड यूनियन ने कर्मचारियों की कमी के कारण सुरक्षा श्रेणी में तैनात अधिकारियों और श्रमिकों पर बढ़ते तनाव का मुद्दा उठाया है. नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमैन के सहायक महासचिव अशोक शर्मा ने पीटीआई से कहा, ‘सुरक्षा श्रेणी में कर्मचारियों पर अत्यधिक दबाव है. उन्हें अपनी मानसिक और शारीरिक क्षमता से परे काम करना पड़ता है.’

उन्होंने दावा किया कि इस समय सबसे बड़ी समस्या यह है कि रेल मंत्रालय ने करीब दो साल पहले सभी संरक्षा श्रेणी के पदों का सृजन बंद कर दिया है और अब वित्त मंत्रालय की सहमति के बिना ऐसे पदों का सृजन नहीं किया जा सकता.

हालांकि रेलवे के अधिकारियों का कहना है कि ट्रेन की सुरक्षा उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है और रेलवे ने पिछले 10 वर्षों में इस मामले में महत्वपूर्ण निवेश किया है, साथ ही कई संरचनात्मक और प्रणालीगत सुधार भी किए हैं, जिनका सुरक्षित परिचालन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है.

पीटीआई से रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 2014-24 की अवधि में संरक्षा से जुड़ी परियोजनाओं में निवेश 1,78,000 करोड़ रुपये था, जो 2004-14 की अवधि में 70,273 करोड़ रुपये के निवेश से 2.5 गुना अधिक है. संरक्षा उपायों को और बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है. पटरी, सिग्नलिंग, लोकोमोटिव और ट्रेनों से जुड़े सुधार इस प्रयास का हिस्सा हैं.

अधिकारी ने यह भी कहा कि लोको पायलट, लोको इंस्पेक्टर और स्टेशन मास्टर को प्रशिक्षित करना भी सर्वोच्च प्राथमिकता है. इनके बेहतर प्रशिक्षण के लिए ‘सिम्युलेटर’ लाए जा रहे हैं.

बीते एक दशक में सुरक्षा संबंधी कार्यों पर खर्च 2.5 गुना बढ़ गया है

वहीं, टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार, रेल अधिकारियों का कहना है कि बुनियादी ढांचे के विकास और पिछले 10 वर्षों में किए गए तमाम उपायों के बावजूद ट्रेनों के सुरक्षित संचालन में इस समय मानवीय त्रुटि रेलवे के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है.

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि बीते एक दशक में सुरक्षा संबंधी कार्यों पर खर्च 2.5 गुना बढ़ गया है.

वर्ष 2004 से 2014 के दौरान जहां 70,273 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे. वहीं वर्ष 2014 से 2024 के दौरान यह खर्च 1.8 लाख करोड़ हुआ. ट्रैक के नवीकरण पर 2.33 गुना बजट बढ़ा. वर्ष 2004 से 2014 के बीच ट्रैक के नवीनीकरण पर 47018 करोड़ रुपये खर्च किए गए. वहीं वर्ष  2014 से 2024 के बीच 109659 करोड़ रुपये खर्च किए गए.

सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों और उनके नतीजे की जानकारी देते हुए अधिकारियों ने कहा कि वेल्डिंग में खराबी आने की घटनाएं 87 प्रतिशत कम हुई हैं, जहां 2013-14 में ऐसी 3699 से घटनाएं हुईं थीं. वहीं 2023-24 में इनकी संख्या घटकर 481 हो गईं.

इसी तरह रेल फ्रैक्चर 85 प्रतिशत  कम होकर 2,548 से 383 हो गए. लेवल क्रॉसिंग (एलसी) को हटाने का खर्च 6.4 गुना बढ़ा. वर्ष 2004 से 2014 तक इस काम में 5,726 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे. वहीं वर्ष 2014 से 2024 के दौरान कुल 36,699 करोड़ रुपये खर्च किए गए.

बताया गया है कि मानव रहित फाटकों की संख्या 100 फीसदी कम हुईं. 31 मार्च 2014 को इनकी संख्या 8,948 थी. वहीं 1 जनवरी 2019 तक इनकी संख्या शून्य हो गई.

रेल मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, इस दौरान इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (स्टेशनों) की संख्या 3.5 गुना बढ़ी. वर्ष 2004 से 2014 के के बीच इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग की कुल संख्या 837 थी. वर्ष 2014 से 2024 के बीच इनकी संख्या 2,964 हो गई.