नए आपराधिक क़ानूनों पर रोक लगाकर हितधारकों से परामर्श करे केंद्र सरकार: तमिलनाडु सीएम

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा है कि तीन नए आपराधिक क़ानून लागू करने से पहले राज्यों को उनके विचार व्यक्त करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया और इन्हें विपक्षी दलों की भागीदारी के बिना संसद द्वारा पारित कर दिया गया.

​तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर केंद्र से कहा कि वह 1 जुलाई से प्रभावी होने वाले तीन आपराधिक कानूनों को स्थगित रखे और इन नए कानूनों पर सभी राज्यों और अन्य प्रमुख हितधारकों की राय ले.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, स्टालिन ने शाह से सभी राज्यों और अन्य प्रमुख हितधारकों के विचारों को ध्यान में रखने और पहले से अधिसूचित अधिनियमों को रोकने के लिए कहा है.

स्टालिन ने अपने पत्र में कहा है, ‘मैं आपके ध्यान में केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीन नए आपराधिक कानूनों के कार्यान्वयन में राज्य द्वारा सामना की जाने वाली कुछ आपत्तियों और मुद्दों को लाना चाहता हूं, जो मौजूदा भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संहिता 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 को निरस्त करते हैं और जिनके 1 जुलाई से लागू होने की संभावना है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘उपर्युक्त तीन अधिनियमों को पर्याप्त विचार-विमर्श और परामर्श के बिना जल्दबाजी में बनाया गया है.’

उन्होंने कहा, ‘ये अधिनियम भारतीय संविधान की सूची III – समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं और इसलिए राज्य सरकार के साथ व्यापक परामर्श किया जाना चाहिए था. राज्यों को अपने विचार व्यक्त करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया और नए कानून विपक्षी दलों की भागीदारी के बिना संसद द्वारा पारित कर दिए गए.’

तीनों अधिनियमों का नाम बदलकर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस)  2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) 2023 कर दिया गया है.

स्टालिन ने कहा, ‘सभी का नाम संस्कृत में है जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 348 का स्पष्ट उल्लंघन है.’ उन्होंने कहा, ‘यह अनिवार्य है कि संसद द्वारा पारित सभी अधिनियम अंग्रेजी में होंगे.’

उन्होंने कहा कि इन अधिनियमों में कुछ त्रुटियां हैं. उदाहरण के लिए, भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 103 में हत्या के दो अलग-अलग वर्गों के लिए दो उपधाराएं हैं, लेकिन उनमें एक ही सज़ा है. बीएनएसएस और बीएनएस में कुछ और प्रावधान हैं जो अस्पष्ट या परस्पर-विरोधाभासी हैं.

उन्होंने कहा कि इन नए कानूनों के क्रियान्वयन के लिए अकादमिक संस्थानों के साथ विचार-विमर्श और लॉ कॉलेज के छात्रों के लिए पाठ्यक्रम में संशोधन की आवश्यकता होगी, जिसके लिए पर्याप्त समय की आवश्यकता होगी. इसके अलावा न्यायपालिका, पुलिस, जेल, अभियोजन और फोरेंसिक जैसे हितधारक विभागों के लिए क्षमता निर्माण और अन्य तकनीकी आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त संसाधनों और समय की आवश्यकता होगी.

उन्होंने कहा कि हितधारक विभागों के परामर्श से नए नियम बनाना और मौजूदा फॉर्म और संचालन प्रक्रियाओं को संशोधित करना भी जरूरी है, जिसे जल्दबाजी में नहीं किया जा सकता.

स्टालिन ने कहा, ‘मैं केंद्र सरकार से अनुरोध करता हूं कि वह सभी राज्यों और अन्य प्रमुख हितधारकों के विचारों को ध्यान में रखते हुए नए अधिनियमों की समीक्षा करे और पहले से अधिसूचित उपरोक्त अधिनियमों को रोके.’