नई दिल्ली: आर्मी के सेवानिवृत्त सूबेदार और हरियाणा के झज्जर जिले के ढाकला गांव के निवासी मुरारीलाल का सपना था कि उनके पोते-पोतियों में से कोई एक डॉक्टर बने और दूसरा जज. उनके एक पोते ने इस साल न्यायपालिका की परीक्षा पास कर ली थी, लेकिन किसी गंभीर बीमारी की वजह से परिणाम आने के चार दिन पहले उसकी असामयिक मौत हो गई. मुरलीलाल का एक सपना पूरा होकर भी पूरा न हो सका.
उनके दूसरे सपने की बागडोर उनकी पोती ख़ुशी के हाथों में थी. खुशी ने बहुत कम उम्र से कड़ी मेहनत की और दिल्ली के एम्स में एडमिशन का सपना देखने लगी.
इस वर्ष खुशी ने नीट की परीक्षा में 720 में से 711 अंक हासिल किए. दिल्ली एम्स की 45 सीटों पर दाखिले के लिए इतने अंक हर साल पर्याप्त रहते थे. लेकिन इस साल नीट की परीक्षा में हुई कथित धांधली के कारण उन्हें दिल्ली एम्स में दाखिला नहीं मिल पाएगा.
‘दोनों बच्चों ने खूब मेहनत की थी, लेकिन एक बच्चा अपनी सफलता देखने के लिए इस दुनिया में ही नहीं रहा, और दूसरे को दाखिला मिलता है कि नहीं, यह भी नहीं पता,’ मुरारीलाल कहते हैं, और चश्मे के पीछे से डबडबाती आंखों से आपको ताकते हैं.
खुशी ने बारहवीं तक की पढ़ाई झज्जर के संस्कारम पब्लिक स्कूल से की थी. उसके बाद एक साल तक सीकर के एक कोचिंग संस्थान में नीट की तैयारी की.
खुशी के पिता पवन कुमार आर्मी के सेवानिवृत्त हवलदार हैं और इन दिनों हरियाणा पुलिस में स्पेशल पुलिस ऑफिसर के पद पर कार्यरत हैं. उन्होंने कहा, ‘मुझे अपनी बच्ची पर गर्व है. आगे क्या होता है ये हमारे हाथ में नहीं है.’
ख़ुशी चाहती हैं कि पूरी परीक्षा दोबारा न हो, क्योंकि वह आश्वस्त नहीं हैं कि इस बार वह उतना ही बेहतरीन प्रदर्शन कर पाएंगी.
उनका कहना है कि सिर्फ़ ग्रेस अंक वाले छात्रों की परीक्षा फिर से होनी चाहिए. उन्हें उम्मीद है कि इस परीक्षा के बाद वह शुरू के चालीस-पचास अभ्यर्थियों में आ जाएंगी और उन्हें एम्स में दाखिला मिल जाएगा.
इसके विपरीत एक अन्य छात्र हैं 24 वर्षीय सुधांशु रंजन. बिहार के जहानाबाद जिले के अमैन गांव के निवासी सुधांशु रंजन का यह नीट परीक्षा का छठा प्रयास था. उन्हें इस बार 570 अंक प्राप्त हुए.
अमूमन इतने अंकों में बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी (बीडीएस) के लिए दाखिला मिल जाता है. लेकिन कथित गड़बड़ियों के कारण कट ऑफ नंबर इस बार इतना अधिक चला गया है कि बीडीएस तो दूर, उन्हें बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी (बीएएमएस) कोर्स में भी दाखिला नहीं मिल सकता है.
सुधांशु के पिता बिहार के एक उच्च माध्यमिक सरकारी विद्यालय में शिक्षक हैं. सुधांशु पटना में रहकर नीट की तैयारी करते हैं. पिछले वर्षों में नीट की परीक्षा के बाद उन्हें इतने अंक प्राप्त हो जाते थे कि वह गैर सरकारी कॉलेजों में आसानी से दाखिला ले सकते थे. लेकिन उनके पास गैर-सरकारी मेडिकल कॉलेजों की महंगी फीस के पैसे नहीं थे.
इस बार उन्हें बीडीएस में दाखिला मिल सकता था, लेकिन आज वह अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं और अभी तय नहीं कर पा रहे हैं कि एक साल और तैयारी करेंगे या नहीं. वह चाहते हैं कि नीट की परीक्षा को रद्द कर दोबारा से परीक्षा ली जाए.
इस तरह नीट के परिणामों पर अभ्यर्थियों के दो तरह के विचार सामने आ रहे हैं. एक जिन्होंने परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन किया है और चाहते हैं कि परीक्षा रद्द न की जाए, क्योंकि यह तय नहीं है कि वे फिर से वही प्रदर्शन दोहरा पाएंगे.
दूसरे, जिनके अपेक्षाकृत कम अंक आए और अब दोबारा परीक्षा चाहते हैं. लेकिन दोनों ही छात्र अपने भविष्य को लेकर तनावग्रस्त हैं. यानी नतीजा कुछ भी हो, निर्दोष छात्रों के ऊपर तलवार मंडरा रही है.