अयोध्या के मतदाताओं ने लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा बजाए जा रहे भव्य राम मंदिर निर्माण, रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा, हिंदुत्व की अस्मिताओं का पोषण करते ‘अभूतपूर्व’ विकास और उसके रास्ते ‘त्रेता की वापसी’ के ढोल क्या फोड़े, उसके बाद से वहां से उसके लिए बुरी खबरों का ऐसा तांता लगा है, जिसे उसका शुभचिंतक मीडिया भी नहीं छिपा पा रहा. इसके चलते हालत यह हो गई है कि उसके द्वारा की जा रही हार की समीक्षा की कवायदों और डैमेज कंट्रोल के उपायों की बेलें भी मढ़े नहीं चढ़ पा रहीं.
सकारात्मक कदम
निस्संदेह, राम मंदिर की ओर जाने वाले राम पथ, जन्मभूमि पथ और भक्ति पथ के निर्माण व चौड़ीकरण के पिछले साल आरंभ हुए काम में दुकानों व प्रतिष्ठानों की तोड़-फोड़ से विस्थापित होकर समुचित पुनर्वास व पर्याप्त मुआवजे के अभाव में रोजी-रोटी का संकट झेल रहे जिन व्यवसायियों के आक्रोश को लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार का बड़ा कारण बताया जा रहा है, उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने चुनावी नतीजे के बाद अचानक सोते से जागकर उनकी सुध लेनी शुरू की तो उसे डैमेज कंट्रोल के उसके सबसे सकारात्मक कदम के रूप में देखा गया.
इस सिलसिले में पहले तो स्थानीय प्रशासन ने अपनी ओर से पहल कर यह जताने की कोशिश की कि तोड़-फोड़ के सारे प्रभावितों को बिना भेदभाव किए सम्यक मुआवजा दिया गया है, फिर विकास प्राधिकरण ने विस्थापित व्यवसायियों के पुनर्वास के लिए निर्मित दुकानों की कीमत (जिसे व्यवसायी अपने आर्थिक सामर्थ्य से बहुत ज्यादा बताते रहे थे) में तीस फीसदी छूट और शेष सत्तर प्रतिशत कीमत 20 साल में ब्याजरहित किस्तों में अदा करने की सुविधा देने की घोषणा कर दी. सरकार की ओर से यह भी बताया गया कि आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण पहले ये घोषणाएं नहीं की जा सकी थीं.
फिर वही बेढंगा राग!
लेकिन जब तक इन सबका सकारात्मक संदेश सुना जाता, भाजपा द्वारा एक स्थानीय अतिथि गृह में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चैधरी, प्रदेश सरकार के दो मंत्रियों (सूर्यप्रताप शाही व जयवीर सिंह), कई विधायकों, दूसरे जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों की उपस्थिति में की गई हार की समीक्षा से निकला बदमजगी भरा संदेश उस पर हावी हो गया.
पहले खबर आई कि समीक्षा बैठक में गुस्साए पार्टी कार्यकर्ताओं ने समीक्षकों को तेवर भी दिखाए और आईना भी. फिर खुद को ‘हिंदुत्व का खुदाई खिदमतगार’ बताने वाले हनुमानगढ़ी के महंत राजू दास ने जिलाधिकारी नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोलकर सारा ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लिया.
बताते हैं कि राजू दास ने पार्टी की हार के लिए ‘समाजवादी’ (पार्टी की) मानसिकता वाले जिले के अधिकारियों द्वारा अयोध्या में अकारण बार-बार लगाई जाती रहीं बंदिशों, भाजपा कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न और मनमानी को जिम्मेदार ठहराना शुरू किया तो उनकी वहां उपस्थित जिलाधिकारी से बहस हो गई. फिर तो विवाद इतना बढ़ गया कि जिलाधिकारी नीतीश कुमार ने उनके साथ बैठने तक से इनकार कर दिया.
‘2027 में देखिएगा’
ज्ञातव्य है कि ये राजू दास आमतौर पर अपनी बयानवीरता के लिए ही जाने जाते हैं. पिछले साल समाजवादी पार्टी (सपा) के तत्कालीन नेता स्वामी प्रसाद मौर्य से हुए विवाद में उन्होंने उनका सिर तन से जुदा करने वाले को 21 लाख रुपये का ईनाम देने तक का ऐलान कर डाला था. साथ ही, उन्हें गोली मार देने तक की हिमायत कर डाली थी. लोकसभा चुनाव में भाजपा के फैजाबाद सीट से हार जाने के बाद वे सारे अयोध्यावासियों के लिए अपमानजनक टिप्पणियों पर उतर आए थे. यह भी कहा था कि जब भाजपा के कार्यकर्ता कोतवाली तक में मारे-पीटे जाएंगे और उनकी सुनवाई नहीं होगी तो यही होगा. यह चेतावनी भी दी थी कि यह तो अभी ट्रेलर है, साल 2027 (यानी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव) में देखिएगा, क्या होता है.
बहरहाल, अब जिलाधिकारी ने उनके आपराधिक इतिहास के हवाले से यह कहते हुए उनकी सरकारी सुरक्षा छीन ली है कि कभी वे अयोध्यावासियों को बुरा भला कहते हैं, तो कभी प्रशासन को (कभी व्यक्तिगत रूप से कभी सामूहिक रूप से).
कभी राजू दास के पास तीन गनर हुआ करते थे, जिनमें से दो लोकसभा चुनाव के बाद हटा लिए गए थे और आखिरी को जिलाधिकारी से बहस के बाद हटा लिया गया है. अब वे अपनी हत्या की आशंका जता रहे हैं.
दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी भी इस विवाद में कूद पड़ी है. उसकी ओर से कहा जा रहा है कि भाजपा के अराजक तत्वों द्वारा अयोध्या के स्वच्छ छवि के ईमानदार व निष्पक्ष जिलाधिकारी नीतीश कुमार को पिछड़ी जाति का होने के कारण निशाना बनाया जा रहा है, और पीडीए यानी पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक व आधी आबादी उसे इसका जवाब देंगे. लेकिन राजू दास भाजपा को मुश्किल में डालने वाले अकेले संतवेशधारी नहीं हैं.
राम मंदिर के गर्भगृह में समस्या
इस बीच, कई अखबारों ने निर्माणाधीन राम मंदिर में विराजमान रामलला के एक पुजारी के हवाले से खबर दी है कि हजारों करोड़ रुपयों से बन रहे राम मंदिर की ‘भव्यता’ का हाल यह है कि उसके गर्भगृह में रामलला के स्नान व अभिषेक के समय फर्श पर गिरने वाले पानी की निकासी की कोई व्यवस्था ही नहीं है, जिससे बड़ी समस्या खड़ी हो रही है.
इस पुजारी (अखबारों के अनुसार वह अपना नाम सार्वजनिक नहीं करना चाहते) के अनुसार, रामलला के प्रतिदिन के श्रृंगार से पहले उन्हें पहले मधुपर्क (जिसमें दूध, दही, घी व शहद मिले होते हैं) से, फिर सरयू के जल से स्नान कराया जाता है. चूंकि, गर्भगृह से जलनिकासी की व्यवसथा ही नहीं है, इसलिए इस स्नान के क्रम में गिरने वाले पानी को फर्श पर गिरने से रोककर एक थाल में एकत्र किया जाता है और पौधों को अर्पित कर दिया जाता है. इसके बावजूद थोड़ा-बहुत पानी थाल के इधर-उधर गिर ही जाता है, जिसे सुखाना पड़ता है.
पुजारी ने आश्चर्य व्यक्त किया है कि मंदिर निर्माण में बड़े-बडे इंजीनियरों की संबद्धता के बावजूद गर्भगृह का निर्दोष निर्माण संभव नहीं हो पाया. ये इंजीनियर कुछ दूसरे मंदिरों के गर्भगृहों को देखकर उनकी जरूरतों का अध्ययन कर लेते तो ऐसा नहीं होता. लेकिन इसके विपरीत उन्होंने ऐसी व्यवस्था भी नहीं की है कि भीषण गर्मी में गर्भगृह को ठीक से वातानुकूलित किया जा सके.
यह समस्या कितनी बड़ी है, इसे यों समझ सकते हैं कि गर्भगृह में किसी भी नई व्यवस्था के लिए उसके निर्माण में प्रयुक्त पत्थर तोड़ने पड़ेंगे. इससे उन पर की गई नक्काशी और गर्भगृह की भव्यता प्रभावित होगी. जानकारों के अनुसार मंदिर में एक पत्थर से दूसरे पत्थर को इस तरह जोड़ा गया है कि उनसे कोई भी छेड़छाड़ तकनीकी रूप से आसान नहीं है.
लेकिन ‘दैनिक जागरण’ के अनुसार श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी डाॅ. अनिल कुमार मिश्र ने ऐसी किसी भी तरह की समस्या से इनकार किया और बताया है कि ट्रस्ट गर्भगृह में रामलला के मधुपर्क स्नान से निकले जल को जल नहीं, चरणामृत मानता है और उसे चरणामृत के रूप में संरक्षित करा रहा है.
उनके अनुसार, मंदिर परिसर में पौधरोपण और जलसंरक्षण भी किया जा रहा है. इसके बावजूद यह मामला मंदिर निर्माण का श्रेय लेने वाली भाजपा और ट्रस्ट की चिंता का सबब बना हुआ हे.
बंद हो रहीं विमान सेवाएं
लेकिन बात इतनी सी ही नहीं है. स्थानीय डाॅ. राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय तक से उसकी जमीन लेकर निर्मित और रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा से पहले भारी ताम-झाम से उद्घाटित महर्षि वाल्मीकि अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से शुरू की गई महत्वाकांक्षी विमान सेवाएं एक के बाद एक बंद हो रही हैं, क्योंकि उनके लिए यात्रियों का टोटा पड़ गया है. यह अयोध्या आने वाले श्रद्धालुओं की घटती संख्या का स्पष्ट संकेत है. हालांकि, सरकारी तौर पर इसे स्वीकार नहीं किया जा रहा.
ज्ञातव्य है कि गत एक फरवरी से स्पाइसजेट ने यहां से चेन्नई, अहमदाबाद, दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, जयपुर, पटना और दरभंगा के लिए उड़ानें शुरु की थीं और दो अप्रैल को इस सूची में हैदराबाद का नाम भी जोड़ दिया था. लेकिन अब वह दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद की विमान सेवाएं ही संचालित कर रही है. शेष सेवाएं यात्रियों की कमी के कारण बंद कर दी हैं.
इनमें सबसे पहले उसने पटना और दरभंगा की विमान सेवाए बंद की थीं. देहरादून की विमान सेवा तो बमुश्किल एक सप्ताह ही चली थी. जहां तक यात्रियों की बात है, उनकी संख्या मई में ही जनवरी के मुकाबले आधी रह गई थी, जिसके चलते कई दैनिक विमान सेवाओं को साप्ताहिक कर दिया गया था. तब हवाई अड्डे के अधिकारियों की ओर से कहा गया था कि विमानन कंपनियां निजी कारणों से ऐसा कर रही हैं. लेकिन अब तो यात्रियों का टोटा पूरी तरह साफ है.
आचार्य प्रमोदकृष्णम उवाच
अंत में एक और बात. गत फरवरी में छह साल के लिए कांग्रेस से निष्कासित होने के बाद भाजपा की शरण गह चुके संभल स्थित कल्कि धाम के पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम गत 20 जून को रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपालदास के जन्मोत्सव के अवसर पर आयोजित संत सम्मेलन में शामिल होने अयोध्या आए तो उन्होंने कहा कि किसी पार्टी की हार-जीत अयोध्या की हार-जीत नहीं है, अयोध्या न कभी हारी है, न हारेगी. वह हार गई तो सनातन हार जायेगा और सनातन हार नहीं सकता.
लेकिन उनके द्वारा इससे पहले ‘इंडिया टीवी’ से साक्षात्कार में कही गई यह बात अयोध्या में कहीं ज्यादा चर्चित हुई कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव में भगवान राम का नाम लिया था, इसलिए उसकी 240 सीटें आईं, वरना चुनाव में कुछ भी हो सकता था. उन्होंने यह भी कहा कि नरेंद्र मोदी भगवान राम की वजह से ही प्रधानमंत्री बने हैं. इस बाबत स्थानीय भाजपाइयों से पूछिए तो उनमें से ज्यादातर समझ ही नहीं पाते कि कैसे प्रतिक्रिया दें.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)