नई दिल्ली: ब्रिटेन का सबसे अमीर हिंदुजा परिवार, जिसकी जड़ें भारत से भी जुड़ी हुई हैं, इस वक्त देश-विदेश की सुर्खियों में बना हुआ है. इस परिवार के चार सदस्यों को उनके ही घर में काम करने वाले भारतीय कर्मचारियों का शोषण करने के आरोप में जेल की सज़ा सुनाई गई है.
हिंदुस्तान टाइम्स ने अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस (एपी) के हवाले से बताया है कि स्विट्जरलैंड की कोर्ट ने प्रकाश और कमल हिंदुजा सहित उनके बेटे अजय और बहू नम्रता को शोषण और अवैध तरीके से रोज़गार देने का दोषी पाया है. अदालत से प्रकाश हिंदुजा और उनकी पत्नी कमल हिंदुजा को साढ़े चार साल की सजा, जबकि उनके बेटे अजय और बहू नम्रता को चार साल की सजा सुनाई है.
इस मामले में हिंदुजा परिवार के मैनेजर जीब जियाजी को भी 18 महीने की सजा हुई है. हालांकि, मानव तस्करी के आरोप से कोर्ट ने हिंदुजा परिवार को बरी कर दिया है.
हिंदुजा परिवार की तरफ से कोर्ट में केस लड़ रहे वकीलों का कहना है कि वे इस फैसले के खिलाफ़ अपील करेंगे.
क्या है पूरा मामला?
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, हिंदुजा परिवार स्विट्जरलैंड में दशकों से रह रहा है. इससे पहले भी प्रकाश हिंदुजा को 2007 में ऐसे ही आरोपों में लेकिन हल्की धाराओं में दोषी पाया गया था. बावजूद इसके उन्होंने बिना उचित दस्तावेजों के स्टाफ को भर्ती करना जारी रखा.
इस बार हिंदुजा परिवार पर भारत से ले जाए गए तीन कर्मचारियों ने आरोप लगाया था कि इस परिवार ने उन्हें दिन में 18 घंटे काम करने के लिए सिर्फ सात पाउंड का भुगतान किया, जबकि स्विस कानून के मुताबिक कर्मचारियों को इसके लिए कम से कम 70 पाउंड दिए जाने चाहिए थे.
घर में काम करने वाले इन सहायकों ने ये भी आरोप भी लगाया था कि इस परिवार द्वारा उनके पासपोर्ट रख लिए गए थे और उनके कहीं आने-जाने पर पाबंदियां लगा दी थीं. इसके अलावा इन्हें भुगतान स्विस फ्रैंक के बजाय भारतीय रुपयों में दिया जाता था, ताकि वे बाहर जा कर कुछ खरीदारी न कर सकें. इन्हें न नौकरी छोड़ने की इजाजत थी और न घर से बाहर निकलने की अनुमति.
ब्लूमबर्ग के अनुसार, सरकारी वकील य्वेस बेरतोसा ने कोर्ट में कहा कि हिंदुजा परिवार ने अपने एक कुत्ते पर एक घरेलू सहायक से से ज्यादा खर्च किया. अधिकारी ने बताया कि एक आया ने एक दिन में 18 घंटे काम किया था और उन्हें सिर्फ़ $7.84 मिले थे, जबकि दस्तावेज़ बताते हैं कि इस परिवार ने अपने एक कुत्ते के रखरखाव और खाने पर सालाना 10 हज़ार अमेरिकी डॉलर खर्च किए.
उधर, हिंदुजा परिवार ने उन पर लगे सभी आरोपों से इनकार किया है. उनका कहना है कि वे खुद स्टाफ की हायरिंग नहीं करते थे. भारत की एक कंपनी उनकी हायरिंग करती है. इसलिए उन पर मानव तस्करी और शोषण के आरोप गलत हैं.
इसके साथ ही हिंदुजा परिवार का दावा था कि सरकारी वकीलों ने मामले की पूरी सच्चाई नहीं बताई है. उनके विला में स्टाफ के लिए भोजन की पर्याप्त व्यवस्था की गई थी. उनके रहने के लिए घर भी दिया गया था और उनके कहीं आने-जाने पर पाबंदियां नहीं लगाई थीं.
बीबीसी के मुताबिक, हिंदुजा परिवार भारत से ही निकला है और इसी नाम से एक कारोबारी घराना भी चलाता है, जो कई सारी कंपनियों का एक समूह है. इसमें कंस्ट्रक्शन, कपड़े, ऑटोमोबाइल, ऑयल, बैंकिंग और फाइनेंस जैसे सेक्टर भी शामिल हैं.
हिंदुजा ग्रुप के संस्थापक परमानंद दीपचंद हिंदुजा अविभाजित भारत में सिंध के प्रसिद्ध शहर शिकारपुर में पैदा हुए थे. उन्होंने 1914 में भारत की व्यापार और वित्तीय राजधानी, बॉम्बे (अब मुंबई) की यात्रा की. फिर ईरान और यूरोप में व्यापार का प्रसार किया. हिंदुजा परिवार ने यूनाइटेड किंगडम में कई सारी कीमती संपत्ति खरीदी है. फिलहाल हिंदुजा परिवार ब्रिटेन से अपना कारोबार चलाता है.
भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े और नवदीप सिंह सूरी पर भी उठे थे सवाल
गौरतलब है कि भारत से जुड़े लोगों द्वारा घरेलू साहयकों के उत्पीड़न और कम वेतन देने के मामले पहले भी प्रकाश में आए हैं.
साल 2013 के आखिर में अमेरिका में तैनात भारतीय विदेश सेवा की अधिकारी देवयानी खोबरागड़े पर वीज़ा धोखाधड़ी और न्यूयॉर्क में अपनी घरेलू कर्मचारी को कम मेहनताना देने के आरोप लगा था.
संघीय अदालत के दस्तावेज़ों के अनुसार, खोबरगाड़े ने वीज़ा आवेदन में दावा किया था कि वो अपनी सहायक संगीता रिचर्ड को 4,500 डॉलर (करीब पौने तीन लाख रुपये) प्रतिमाह का वेतन देंगी. श्रम क़ानूनों के मुताबिक वह वहां की न्यूनतम मज़दूरी है. हालांकि, अमेरिकी जांचकर्ताओं के अनुसार, संगीता रिचर्ड को 573 डॉलर प्रतिमाह के हिसाब से भुगतान किया गया था.
मामले के तूल पकड़ने के बाद देवयानी खोबरागड़े भारत लौट आई थीं और इन आरोपों को ‘झूठा और निराधार’ बताया था. आख़िरकार, एक अमेरिकी अदालत ने राजनयिक छूट का हवाला देते हुए उन पर लगे आरोपों को ख़ारिज कर दिया था. इसके बाद खोबरागड़े को 2020 में कंबोडिया में भारत की राजदूत के रूप में नियुक्त किया गया.
बीते साल 2023 में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया था, जब ऑस्ट्रेलिया की एक अदालत ने कैनबरा में भारत के पूर्व उच्चायुक्त नवदीप सिंह सूरी को अपनी पूर्व घरेलू कर्मचारी को हजारों डॉलर मुआवजे के तौर पर देने का आदेश दिया है. महिला कर्मचारी ने सूरी पर अनुचित कामकाजी परिस्थितियों में काम कराने का आरोप लगाया था.
ऑस्ट्रेलियाई मीडिया एबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, संघीय अदालत की न्यायाधीश एलिजाबेथ रैपर ने सूरी को 60 दिन के भीतर सीमा शेरगिल, उनकी घरेलू सहायिका को 1,36,000 डॉलर और ब्याज का भुगतान करने का आदेश दिया था. अदालत को बताया गया था कि शेरगिल ने सप्ताह में सात दिन, प्रतिदिन 17.5 घंटे काम किया था.