किसानों की नाराज़गी से कई उत्तर भारतीय राज्यों में भाजपा को नुकसान पहुंचा: सीएसडीएस-लोकनीति

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के लोकनीति प्रोग्राम के तहत लोकसभा चुनाव के बाद किए गए सर्वे से पता चलता है कि हरियाणा में 61% से अधिक किसानों ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले 'इंडिया' गठबंधन को वोट दिया था.

शंभू बॉर्डर पर प्रदर्शनकारी किसान (फोटो: विवेक गुप्ता/द वायर)

नई दिल्ली: सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के लोकनीति प्रोग्राम के तहत चुनाव बाद किए गए सर्वे से पता चला है कि किसानों के गुस्से ने कई उत्तर भारतीय राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को नुकसान पहुंचाया है. ऐसा माना जाता है कि अन्य कारकों के साथ-साथ इस कारण भी भाजपा को लोकसभा में बहुमत नहीं मिल पाया.

उदाहरण के लिए हरियाणा में किए गए सर्वे के निष्कर्षों से पता चला है कि 61% से अधिक किसानों ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले ‘इंडिया’ गठबंधन को वोट दिया था, जबकि 35% ने भाजपा को वोट दिया. ध्यान रहे कि पंजाब के साथ-साथ हरियाणा भी मोदी सरकार के खिलाफ किसानों के विरोध का केंद्र बना हुआ था.

यही वजह रही कि कृषक समुदाय (जिसमें जाटों का वर्चस्व है) ने कांग्रेस का साथ दिया और आम चुनावों में वह राज्य की दस लोकसभा सीटों में से पांच पर जीतने में कामयाब हुई. यह 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन से कहीं बेहतर है. पिछले आम चुनाव में कांग्रेस हरियाणा में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी और 2014 के चुनावों में उसे सिर्फ एक सीट मिली थी.

इस बार कांग्रेस ने जिन पांच सीटों पर जीत हासिल की है उनमें से तीन सीटें हिसार, रोहतक और सोनीपत हैं, जिन पर जाट मतदाताओं का दबदबा है. इसके अलावा कांग्रेस के पक्ष में दलितों के एकजुट होने के कारण उसे दो आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में भी जीत मिली.

किसानों के विरोध के संभावित कारणों पर राजनीतिक विश्लेषक और सीएसडीएस-लोकनीति के सह-निदेशक संजय कुमार ने द वायर को बताया कि बहुत स्पष्ट है कि आम चुनाव से पहले पंजाब और हरियाणा में किसान आंदोलन पर भाजपा सरकार के कड़े रूख के चलते किसानों ने भाजपा के खिलाफ वोट दिया.

हरियाणा और पंजाब ही नहीं, राजस्थान में भी हुआ नुकसान

मुख्य रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी के लिए फरवरी में पंजाब और हरियाणा के किसानों ने ‘दिल्ली चलो’ का आह्वान किया था. लेकिन मोदी सरकार ने भाजपा शासित हरियाणा सरकार की मदद से किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए राष्ट्रीय राजमार्गों को अवरुद्ध करने और आंसू गैस के गोले छोड़ने सहित सभी साधनों का इस्तेमाल किया था. बाद में, उन्हें शंभू और खनौरी में पंजाब-हरियाणा सीमा पर रोक दिया गया, जहां वे पिछले पांच महीने से अधिक समय से जमे हुए हैं.

पंजाब में लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा को सबसे ज्यादा किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा. उनके सभी 13 उम्मीदवारों को चुनाव के दौरान गांवों में प्रचार करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

यदि सीएसडीएस-लोकनीति सर्वे की मानें तो लोकसभा चुनाव के दौरान पंजाब में 15% से अधिक किसानों ने भाजपा को वोट नहीं दिया. इसके विपरीत, सर्वे के निष्कर्षों से पता चला कि 50% से अधिक किसान मतदाता सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) के पक्ष में गए, जिसने हालिया किसान आंदोलन के दौरान किसानों को समर्थन दिया था. किसान समुदाय के 25 प्रतिशत वोट कांग्रेस को मिले.

पंजाब में कांग्रेस (सात) और आप (तीन) को 13 में से दस सीटों पर जीत मिली, जबकि भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली. सर्वे में बताया गया है कि कांग्रेस और आप का वोट शेयर लगभग बराबर था, लेकिन हिंदुओं और दलितों के समर्थन से कांग्रेस को राज्य की सभी प्रमुख शहरी सीटों पर जीत हासिल करने में मदद मिली, जिससे आप की सीटों की संख्या कम हो गई.

दूसरी ओर, भाजपा का पूर्व गठबंधन सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) सिर्फ एक सीट जीत सका, जिससे पता चलता है कि भारत की दूसरी सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी अभी भी किसानों और सिखों के बीच अपना पुराना समर्थन वापस पाने के लिए संघर्ष कर रही है.

सीएसडीएस-लोकनीति सर्वे से पता चलता है कि किसानों के गुस्से ने राजस्थान में भाजपा को भी नुकसान पहुंचाया है. सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 46% किसानों ने कांग्रेस को वोट दिया, जबकि 45% ने भाजपा को वोट दिया. संभवतः इसी कारण भाजपा ने राज्य में खराब प्रदर्शन किया. इस बार 25 में से 14 सीटें जीतकर भाजपा दस सीटों से पीछे रह गई, जबकि कांग्रेस आठ सीटों पर आगे निकल गई.

‘बातचीत के लिए तैयार लेकिन एमएसपी की कानूनी गारंटी जरूरी’

पंजाब-हरियाणा सीमा पर चल रहे विरोध प्रदर्शन में प्रमुख किसान नेताओं में से एक सरवन सिंह पंढेर ने द वायर से बात करते हुए कहा कि वे भाजपा के नेतृत्व वाली नवगठित एनडीए सरकार के साथ बातचीत के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा, ‘लेकिन जब तक केंद्र सरकार उन्हें एमएसपी की कानूनी गारंटी का आश्वासन नहीं देती, तब तक विरोध समाप्त नहीं होगा.’

सर्वेक्षण में कहा गया है कि हालिया लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने किसानों के बीच अपनी जमीन खो दी है, इस पर उन्होंने कहा कि ऐसा होना तय था. पंढेर ने कहा, ‘लोग उस सरकार को कैसे वोट देंगे जो राष्ट्रीय राजधानी में विरोध करने के उनके लोकतांत्रिक अधिकार को छीन लेती है, शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले छोड़ती है और यहां तक कि उन्हें मार भी देती है?’ पंढेर ने कहा कि जब तक भाजपा उनकी मांगों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं देती, तब तक उनका भाजपा के प्रति विरोध जारी रहेगा.

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