नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा है कि उसके कर्मचारियों के प्रिंट मीडिया में लेख लिखने और रेडियो प्रसारण में उनकी उपस्थिति को विनियमित करने वाले मौजूदा नियम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, डिजिटल समाचार आउटलेट और समाचार चैनलों पर भी लागू होते हैं.
बुधवार (19 जून) को राज्य के सभी अतिरिक्त मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों और सचिवों को जारी एक सरकारी आदेश में उनसे अपने अधीन काम करने वाले कर्मचारियों को मौजूदा नियमों की इस नई व्याख्या के बारे में सूचित करने को कहा गया.
आदेश में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियम-1956 प्रिंट मीडिया और रेडियो से संबंधित है, लेकिन यह ‘उल्लेखनीय है कि वर्तमान समय में मीडिया के स्वरूपों का विस्तार हुआ है’.
इसमें कहा गया है कि समाचार चैनल, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (जिनमें फेसबुक, एक्स, वॉट्सऐप और इंस्टाग्राम शामिल हैं) और डिजिटल समाचार पोर्टल आज मीडिया का हिस्सा हैं, इसलिए 1956 के नियम इन पर और मीडिया के सभी संभावित प्रचलित रूप पर भी लागू होते है.
1956 के नियम 6 के अनुसार, सरकारी कर्मचारी सरकार की अनुमति के बिना समाचार पत्रों या आवधिक प्रकाशनों के मालिक नहीं रह सकते, न ही संचालन, संपादन या प्रबंधन कर सकते हैं. न ही वे रेडियो प्रसारण कर सकते हैं, समाचार पत्रों या पत्रिकाओं को लेख भेज सकते हैं, या बिना अनुमति के गुमनाम रूप से या छद्म नाम का उपयोग करके प्रकाशनों को लिख सकते हैं.
इसका अपवाद यह है कि जब ऐसे कार्यक्रम केवल सांस्कृतिक, कलात्मक या वैज्ञानिक मामलों से संबंधित हों तो अनुमति की आवश्यकता नहीं है.
द प्रिंट के मुताबिक, कुछ नौकरशाहों ने कहा कि वे वॉट्सऐप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सार्वजनिक और निजी बातचीत के बीच अंतर करने के बारे में चिंतित हैं.
यूपी के एक अनाम वरिष्ठ अधिकारी ने द प्रिंट को बताया, ‘अतीत में ऐसे उदाहरण हैं जहां लोगों ने किसी अधिकारी द्वारा किसी के साथ की गई निजी वॉट्सऐप बातचीत के स्क्रीनशॉट ले लिए और उसे उनकी राय के रूप में प्रसारित कर दिया.’
उन्होंने यह भी कहा, ‘यह आदेश केवल यह सुनिश्चित करने के लिए है कि सरकार की किसी भी तरह की आलोचना पर अंकुश लगाया जाए.’
द प्रिंट से एक अन्य अधिकारी ने कहा कि नौकरशाह सार्वजनिक रूप से अपनी राय व्यक्त नहीं कर सकते हैं और राज्य सरकार के अनुसार, ‘नौकरशाहों द्वारा सार्वजनिक रूप से अपने विचार व्यक्त करने से अराजकता फैल सकती है और सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.’
एक पूर्व मुख्यमंत्री के सचिव के रूप में काम कर चुके एक नौकरशाह ने बताया कि ऐसे कई उदाहरण हैं कि नौकरशाहों को अपने सहकर्मियों के वॉट्सऐप ग्रुपों पर किए गए पोस्ट के लिए सरकार की ओर से प्रतिकूल कार्रवाई का सामना करना पड़ा है.
एक सरकारी कर्मचारी ने द टेलीग्राफ को बताया कि यह आदेश राज्य में लोकसभा चुनाव में भाजपा के कमतर प्रदर्शन से जुड़ा है.
उन्होंने कहा, ‘यह वही सरकार है जो अपने कर्मचारियों और अधिकारियों को सरकार की योजनाओं का प्रचार करने के लिए टीवी शो और अन्य मीडिया कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए मजबूर करती थी. समाचार चैनलों पर कई विशेष शो होते थे जिनमें वर्दीधारी पुलिसकर्मी समेत अधिकारी भाग लेते थे और सरकार की प्रशंसा करते थे. लेकिन जैसे-जैसे भाजपा की लोकप्रियता कम होती जा रही है, वह अब उन कर्मचारियों को डरा रही है जो सरकार की योजनाओं और कार्यों के आलोचक रहे हैं.’
पिछले साल, यूपी सरकार ने एक आदेश जारी कर अधिकारियों को मीडिया आउटलेट्स द्वारा प्रकाशित ‘नकारात्मक’ समाचारों की जांच करने का निर्देश दिया था.
आदेश में कहा गया था कि यदि सरकार की छवि खराब करने के लिए कहानी में तथ्य ‘तोड़-मरोड़कर’ या ‘झूठे’ पाए जाते हैं, तो संबंधित अधिकारियों को मीडिया घरानों से स्पष्टीकरण मांगना चाहिए.
आदेश में उन झूठी या तोड़-मरोड़ कर पेश की गई खबरों का जिक्र नहीं किया गया है, जो सरकार को अच्छी छवि में चित्रित करती हैं.