महाराष्ट्र: शिवसेना (उद्धव गुट) नेता ने नई इमारतों में मराठियों के लिए 50% कोटे की मांग की

शिवसेना (यूबीटी) के एमएलसी अनिल परब ने नए आवासीय भवनों में मराठी लोगों के लिए 50% आरक्षण की बात की है. उनकी मांग है कि यदि नई बन रही सोसाइटी में उक्त कोटे की शर्त पूरी नहीं होती, तो बिल्डर पर 10 लाख रुपये जुर्माना और/या छह महीने की जेल की सज़ा का प्रावधान किया जाए.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Sriharsha/Flickr CC BY SA 2.0)

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए उत्साहित शिवसेना (उद्धव ठाकरे) (यूबीटी) ने मराठी लोगों के लिए इमारतों में अलग से कोटा तय करने की बात कही है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक,  विधानसभा चुनाव से महज़ कुछ महीने पहले शिवसेना (यूबीटी) के एमएलसी अनिल परब ने विधान परिषद में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश करने करने का फैसला किया है, जिसमें मुंबई के नए आवासीय भवनों में मराठी भाषी लोगों के लिए 50% आरक्षण की मांग की गई है.

इस बिल को सदन में पेश करने के लिए फिलहाल उपसभापति की मंजूरी का इंतजार है.

बिल में मांग की गई है कि यदि नई बन रही सोसाइटी में 50 फीसदी मराठी लोगों के कोटे की शर्त पूरी नहीं की जाती, तो बिल्डर पर 10 लाख रुपये का जुर्माना और/अथवा छह महीने तक की जेल की सजा का प्रावधान किया जाए.

मालूम हो कि यह विधेयक के गुरुवार (27 जून) से शुरू होने वाले विधानमंडल के मानसून सत्र के दौरान पेश किए जाने की संभावना है.

आंकड़ों के गणित को देखें, तो  78 सदस्यीय विधान परिषद में शिवासेना (यूबीटी) के नौ सदस्य हैं. वहीं 288 सीटों वाली विधानसभा में पार्टी के 15 विधायक हैं. विपक्षी गुट महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के पास विधानसभा में 75 और परिषद में 29 सदस्य हैं, जबकि सत्ता पर काबिज महायुति गठबंधन के पास विधानसभा में 212 और परिषद में 28 सदस्य हैं.

मराठी भाषी लोगों को पहचान और खानपान के चलते घर नहीं मिल रहा: शिवसेना नेता

इस बिल को पेश करने के पीछे की मंशा बताते हुए शिवसेना (यूबीटी) के नेता अनिल परब ने आरोप लगाया कि मराठी भाषी लोगों को पहचान और खानपान के चलते आवास से वंचित किया जा रहा है. इस संबंंध में उनके सामने ऐसे कई मामले आए हैं, जिसके चलते उन्होंने इस बिल को पेश करने का फैसला किया है.

उन्होंने कहा, ‘धर्म या भोजन संबंधी प्राथमिकताओं के आधार पर कोई भी भेदभाव असंवैधानिक है.’

अनिल परब ने विले पार्ले के एक मामले का हवाला देते हुए कहा कि वहां एक बिल्डर ने मराठी लोगों को उनकी खाने की पसंद के आधार पर एक कॉम्प्लेक्स में घर देने से मना कर दिया था. इस पर मराठी लोगों ने विरोध किया, लेकिन सरकार ने इस मुद्दे पर कोई संज्ञान नहीं लिया. जब मामले ने मीडिया में तूल पकड़ा, तब डेवलपर ने माफी मांगी.

उन्होंने इसे चिंताजनक बताते हुए कहा कि मुंबई में मराठी भाषी लोगों की संख्या अब कम हो गई है.

गौरतलब है कि एक प्राइवेट मेंबर बिल किसी भी सदन के सदस्य द्वारा अपनी व्यक्तिगत क्षमता में एक नए कानून या मौजूदा क़ानून में बदलाव की मांग के लिए पेश किया जा सकता है.