नई दिल्ली: वरिष्ठ अधिवक्ता और जम्मू कश्मीर की हाईकोर्ट बार एसोसिएशन (एचसीबीए) के अंतिम निर्वाचित अध्यक्ष मियां कयूम को आतंकवाद की साजिश के मामले में गिरफ्तार किए जाने के कुछ दिनों बाद, जम्मू कश्मीर प्रशासन ने वकीलों के संगठन के भीतर चुनावों पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिसके पीछे ‘शांति भंग’ होने की आशंकाओं का हवाला दिया गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, मंगलवार (25 जून) को एक आदेश (2024 के 08 डीएमएस) में श्रीनगर के जिला मजिस्ट्रेट बिलाल मोहिउद्दीन भट ने कहा कि एक ऐसी आकस्मिक स्थिति थी जिसमें अगर जम्मू कश्मीर एचसीबीए निर्धारित चुनावों के साथ आगे बढ़ता तो शांति भंग और सार्वजनिक व्यवस्था बाधित हो सकती थी.
एसोसिएशन द्वारा 11 जून को जारी अधिसूचना के अनुसार, एचसीबीए का चुनाव, जो 2020 से नहीं हुआ था, 1 जुलाई को निर्धारित किया गया था.
कयूम, जिन्हें 2019 में विवादास्पद सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत एक साल के लिए हिरासत में लिया गया था, को इस सप्ताह की शुरुआत में 2020 में वकील बाबर कादरी की उनके श्रीनगर स्थित आवास पर हुई सनसनीखेज हत्या में कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किया गया था.
लोगों के समूहों में इकट्ठा होने पर रोक
आदेश में कहा गया है, ‘मैं, जिला मजिस्ट्रेट श्रीनगर, धारा 144 सीआरपीसी के तहत मुझे दी गई शक्तियों के आधार पर आदेश देता हूं कि बटमालू के मुमीनाबाद स्थित जिला न्यायालय परिसर या किसी भी स्थान पर जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन श्रीनगर के चुनावों के लिए अगले आदेश तक चार या अधिक व्यक्तियों के एकत्र होने की अनुमति नहीं दी जाएगी.’
प्रशासन ने श्रीनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) को आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने और ‘किसी भी संभावित कानून और व्यवस्था की स्थिति को बिगड़ने से रोकने’ का निर्देश दिया है, साथ ही चेतावनी दी है कि आदेश के किसी भी उल्लंघन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत दंडात्मक कार्रवाई होगी.
धारा 188 कहती है, ‘यदि अवज्ञा से मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा को खतरा होता है या होने की संभावना है, या दंगा भड़कता है या हंगामा होता है, तो अपराधी को छह महीने तक की कैद या एक हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है.’
प्रतिबंध को उचित ठहराते हुए श्रीनगर के डीएम ने कश्मीर एडवोकेट्स एसोसिएशन (केएए) के एक पत्र का हवाला दिया है, जो एक समानांतर वकीलों का संगठन है, जिसे 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद स्थापित किया गया था और व्यापक रूप से माना जाता है कि इसे सरकार का समर्थन प्राप्त है. 15 जून को लिखे गए पत्र में एचसीबीए पर जम्मू कश्मीर में ‘अलगाववादी विचारधारा’ का प्रचार करने का आरोप लगाया गया था.
एसएसपी श्रीनगर द्वारा 24 जून को डीएम को सौंपी गई रिपोर्ट में भी यह कहा गया था कि एचसीबीए ‘अलगाववादी विचारधारा रखता है और इसका कानूनी बिरादरी के सदस्यों और अन्य लोगों को डराने-धमकाने का रिकॉर्ड है, जो इसके सदस्यों की विचारधारा पर नहीं चलते हैं और यह राष्ट्र-विरोधी तत्वों को मुफ्त कानूनी सहायता भी प्रदान करता है.’
एचसीबीए से स्पष्टीकरण मांगा
जेकेएचसीबीए के संविधान में कहा गया है, ‘कश्मीर मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान के बड़े मुद्दे सहित आम जनता से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए तरीके और साधन खोजना, जरूरी कदम उठाना, और इस उद्देश्य के लिए सेमिनार, सम्मेलन आयोजित करना, अपने सदस्यों को भारत के भीतर और बाहर विभिन्न स्थानों पर भेजना, अन्य एसोसिएशन, निकायों या मंचों का सदस्य बनना जो एसोसिएशन के साथ समान दृष्टिकोण रखते हों.’
डीएम ने कहा कि पिछले साल एचसीबीए अध्यक्ष और इसकी चुनाव समिति को ‘कश्मीर मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान’ के मुद्दे पर एक नोटिस भेजा गया था. उन्होंने कहा, ‘एचसीबीए से इस विषय पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा गया था, क्योंकि उपरोक्त रुख भारत के संविधान के अनुरूप नहीं है, जिसके अनुसार जम्मू कश्मीर देश का अभिन्न अंग है और इस पर कोई विवाद नहीं है, और यह अधिवक्ता अधिनियम 1961 के साथ भी टकराव में है.’
अधिवक्ता अधिनियम राज्य बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया के कामकाज और शर्तों को नियंत्रित करता है. अधिनियम के तहत, बार काउंसिल कंपनी अधिनियम-2013 की धारा 2(11) के तहत एक निगमित निकाय या कानूनी इकाई होगी, जिसके पास संपत्ति अर्जित करने और रखने का अधिकार होगा.
डीएम के आदेश में कहा गया है कि जेकेएचसीबीए से इसके पंजीकरण के मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. पंजीकरण कराना ‘किसी भी ऐसे संगठन के लिए बुनियादी कानूनी आवश्यकता है’ और एचसीबीए का संविधान ‘देश की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ है.’
आदेश में कहा गया है कि कश्मीर के सोसायटी रजिस्ट्रार के एक पत्र से पता चलता है कि जेकेएचसीबीए एक पंजीकृत निकाय नहीं है.
जांच एजेंसी का दावा- एचसीबीए के ख़िलाफ़ नए सबूत मिले
एचसीबीए पर प्रतिबंध इसके पिछले निर्वाचित अध्यक्ष 80 वर्षीय कयूम, जो कश्मीर के सबसे प्रमुख वकीलों में से एक हैं, को वकील कादरी की हत्या के सिलसिले में राज्य जांच एजेंसी (एसआईए) द्वारा ‘मुख्य संदेही’ करार दिए जाने और गिरफ्तार किए जाने के कुछ दिनों बाद लगाया गया है.
गिरफ्तारी के बाद जम्मू की एक अदालत ने बुधवार को कयूम को 1 जुलाई तक पुलिस हिरासत में भेज दिया.
श्रीनगर स्थित वकील की 24 सितंबर 2020 को उनके श्रीनगर स्थित आवास पर अज्ञात बंदूकधारियों ने हत्या कर दी थी, जो उनके संभावित मुवक्किलों के वेश में आए थे.
श्रीनगर के लाल बाजार पुलिस थाने में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम 1967, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 और शस्त्र अधिनियम की धारा 7 और 27 के तहत मामला दर्ज किया गया था और मामले के सिलसिले में पांच लोगों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया गया था.
एसआईए ने दावा किया है कि जांच के दौरान उसे ‘नए सबूत’ मिले हैं, जिनके सहारे ‘इस हत्या में साजिश के हिस्से को उजागर करने की संभावना है.’
एसआईए, जिसे 2019 में जम्मू कश्मीर के दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन के बाद स्थापित किया गया था, ने बाद में कहा कि कयूम के खिलाफ ‘पर्याप्त सबूत’ हैं, जो पूर्व हुर्रियत नेता सैयद अली गिलानी के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक हैं.
कादरी की हत्या के बाद एसआईए ने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में एक आवेदन दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि कश्मीर में कोई भी वकील इस मामले में राज्य को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए तैयार नहीं है.
अदालत ने मामले को जम्मू स्थानांतरित करते हुए फैसला सुनाया था, ‘किसी आपराधिक मामले की निष्पक्ष और निष्पक्ष सुनवाई के लिए यह जरूरी है कि गवाह स्वतंत्र और प्रतिकूल माहौल में गवाही देने की स्थिति में हों.’