बार काउंसिल ने वकीलों के संगठनों से नए आपराधिक क़ानूनों का विरोध न करने को कहा

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि उसे भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के ख़िलाफ़ विभिन्न बार एसोसिएशन और काउंसिल से विरोध-पत्र प्राप्त हुए हैं.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रबर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने देश भर के विभिन्न बार एसोसिएशन से कहा है कि वे 1 जुलाई से लागू होने वाले तीन नए आपराधिक कानूनों के खिलाफ हड़ताल और विरोध प्रदर्शन न करें.

रिपोर्ट के मुताबिक, 26 जून को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में बीसीआई की ओर से कहा गया है कि उसे भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) के खिलाफ विभिन्न बार एसोसिएशन और काउंसिल से विरोध-पत्र प्राप्त हुए हैं. विज्ञप्ति पर बीसीआई के सचिव श्रीमंतो सेन के हस्ताक्षर हैं.

अगस्त 2023 में पेश किए गए इन विधेयकों के पहले मसौदों की संसदीय स्थायी समिति द्वारा समीक्षा की गई, जिसने 10 नवंबर 2023 को इन पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें इनकी सराहना की गई और इन्हें मंजूरी दी गई. जी. मोहन गोपाल ने द वायर पर लिखा था, ‘विधेयकों का चरित्र मूलतः लोकतंत्र विरोधी है.’

17वीं लोकसभा ने दिसंबर 2023 में तब इन कानूनों को पारित किया था, जब 97 विपक्षी सांसदों को सदन से निलंबित कर दिया गया था.

बार काउंसिल ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, मुकुल रोहतगी, विवेक तन्खा, पी. विल्सन, दुष्यंत दवे, इंदिरा जयसिंह और अन्य लोगों – जो इन कानूनों के लागू होने का विरोध कर रहे हैं – का नाम लेते हुए कहा, ‘इस बात पर चिंता जताई गई है कि इन नए कानूनों के कई प्रावधान जनविरोधी हैं, औपनिवेशिक काल के उन कानूनों से भी ज़्यादा कठोर हैं जिन्हें वे बदलने का इरादा रखते हैं, और नागरिकों के मौलिक अधिकारों के लिए गंभीर ख़तरा पैदा करते हैं.’

इन कानूनों का उद्देश्य भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में सुधार करना है. हालांकि, आलोचकों को यकीन नहीं है कि ये सुधार लाएंगे.

बार काउंसिल ने उल्लेख किया कि कई बार एसोसिएशन ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के नए सिरे से परीक्षण करने की मांग की है, और कहा है कि ‘ये कानून मौलिक अधिकारों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं.’

इसने आगे कहा है, ‘इन मांगों और चिंताओं पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद, बार काउंसिल ऑफ इंडिया सभी बार एसोसिएशन से अनुरोध करता है कि वे इस समय किसी भी तरह के आंदोलन या विरोध प्रदर्शन से दूर रहें.’

बीसीआई ने ‘कानूनी बिरादरी की चिंताओं से अवगत कराने’ के लिए केंद्रीय गृह मंत्री और कानून मंत्री के साथ चर्चा शुरू करने का वादा किया है.

इसने कहा है, ‘बीसीआई इस मामले में मध्यस्थता के लिए माननीय केंद्रीय पर्यावरण मंत्री श्री भूपेंद्र यादव, जो एक वकील हैं, से भी हस्तक्षेप की मांग करेगा.’

इसके अतिरिक्त, बीसीआई ने सभी बार एसोसिएशन और वरिष्ठ अधिवक्ताओं से अनुरोध किया है कि वे ‘सरकार के साथ सार्थक बातचीत को सुविधाजनक बनाने के लिए नए कानूनों के उन विशिष्ट प्रावधानों को प्रस्तुत करें जिन्हें वे असंवैधानिक या हानिकारक मानते हैं.’

बीसीआई ने कहा कि सुझाव प्राप्त करने के बाद वह इन नए कानूनों में आवश्यक संशोधनों का सुझाव देने के लिए ‘प्रसिद्ध वरिष्ठ अधिवक्ताओं, पूर्व न्यायाधीशों, निष्पक्ष सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों’ की एक समिति का गठन करेगी.

इसने सितंबर 2023 में बीसीआई के अंतर्राष्ट्रीय अधिवक्ता सम्मेलन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आश्वासन को याद दिलाया, ‘जहां यह कहा गया था कि सरकार इन कानूनों के किसी भी प्रावधान में संशोधन करने को तैयार है यदि वैध कारण और प्रशंसनीय सुझाव प्रस्तुत किए जाते हैं.’

बीसीआई ने आगे कहा कि तत्काल चिंता का कोई कारण नहीं है और ‘इस मुद्दे के संबंध में आंदोलन, विरोध या हड़ताल की तत्काल कोई जरूरत नहीं है.’