दिल्ली: एलजी ने सरकार के थिंक टैंक को अस्थायी तौर पर भंग किया, ‘आप’ ने कहा- ओछी राजनीति

डीडीसीडी को दिल्ली सरकार का थिंक टैंक माना जाता है. इसकी शुरुआत दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने साल 2016 में की थी. इस आयोग की भूमिका दिल्ली सरकार के लिए योजनाएं बनाने, उसे लागू करने से लेकर उसके अमल पर नज़र रखने से संबंधित थी.

विनय कुमार सक्सेना. (फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने दिल्ली संवाद एवं विकास आयोग (डीडीसीडी) को अस्थायी रूप से भंग करने और इसके गैर-आधिकारिक सदस्यों की सेवा समाप्त करने को मंजूरी दे दी है. ये आयोग तब तक भंग रहेगा, जब तक इसके उपाध्यक्ष और सदस्यों के रूप में संबंधित कार्यक्षेत्र में अनुभव रखने वाले विशेषज्ञों का चयन करने के लिए व्यवस्था तैयार नहीं कर ली जाती.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, राजनिवास के अधिकारियों ने गुरुवार (27 जून) को इस आयोग को भंग करने की जानकारी दी, जिसके बाद उपराज्यपाल के इस कदम की आलोचना करते हुए दिल्ली के कैबिनेट मंत्री और आम आदमी पार्टी नेता सौरभ भारद्वाज ने उन पर ‘ओछी राजनीति’ करने का आरोप लगाया.

दिल्ली के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में प्रतिक्रिया देते हुए लिखा, ‘एलजी साहब के द्वारा डीडीसीडी को भंग किया जाना ओछी राजनीति है. एलजी साहब बताएं कि उनकी अपनी नियुक्ति के लिए केंद्र ने कहां इश्तिहार निकाला था. एलजी साहब का टेस्ट और साक्षात्कार किसने लिया जो उन्हें नियुक्त किया गया.’

उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्यों में आयोग और बोर्ड में हमेशा इसी तरह नियुक्ति होती है. राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग के अध्यक्ष अभी नियुक्त किए गए हैं जो  भाजपा के नेता हैं.’

गौरतलब है कि डीडीसीडी को दिल्ली सरकार का थिंक टैंक माना जाता है. इसकी शुरुआत दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आठ साल पहले साल 2016 में की थी. इस आयोग की भूमिका दिल्ली सरकार के लिए योजनाएं बनाने, उसे लागू करने से लेकर उसके क्रियान्वयन पर नज़र रखने तक से संबंधित थी. हालांकि इसे लेकर समय-समय पर विवाद भी सामने आते रहे हैं.

उधरदिल्ली के मुख्य सचिव को भेजी गई फाइल में उपराज्यपाल (एलजी) ने कहा है कि मौजूदा सरकार द्वारा डीडीसीडी बनाने की पूरी कवायद केवल वित्तीय लाभ पहुंचाने और कुछ खास राजनीतिक व्यक्तियों को संरक्षण देने के लिए थी.

इसमें कहा गया है, ‘स्पष्ट रूप से, आयोग का गठन योजना आयोग/नीति आयोग की तर्ज पर नीति निर्माण की विचारक संस्था के रूप में किया गया था जिसके संचालन की जिम्मेदारी प्रावधान के तहत संबंधित कार्यक्षेत्र में अनुभव रखने वाले विशेषज्ञों की होनी चाहिए, ताकि सरकार को जरूरी जानकारी मिल सके.’

टिप्पणी में आगे ये भी कहा गया है कि इसका उद्देश्य अपने चहेते लोगों, अनिर्वाचित मित्रों या राजनीतिक रूप से पक्षपाती लोगों को समायोजित करना नहीं था.

उपराज्यपाल के अनुसार, ‘हालांकि, प्रारंभ में ये पद मानद थे, लेकिन बाद में इन्हें उच्च वेतन और सुविधाओं वाले पदों में परिवर्तित कर दिया गया, जैसे कि डीडीसीडी के उपाध्यक्ष को जीएनसीटीडी के मंत्री के समकक्ष रैंक, वेतन और सुविधाएं दी गईं तथा गैर-सरकारी सदस्यों को भारत सरकार के सचिव के समकक्ष रैंक, वेतन और सुविधाएं दी गईं.’

डीडीसीडी को भंग करने की संभावना तलाशने के संबंध में सेवा विभाग का प्रस्ताव स्वीकार

उन्होंने आगे कहा कि दिल्ली सरकार के योजना विभाग के अनुसार, डीडीसीडी के सदस्यों के बीच कोई कार्य आवंटन नहीं है. इसलिए, गैर-आधिकारिक सदस्यों का पद पर बने रहना, जिनकी नियुक्ति बिना किसी प्रक्रिया का पालन किए मनमाने तरीके से की गई थी और जो भारी वेतन प्राप्त कर रहे हैं, न केवल अवांछनीय है, बल्कि स्पष्ट रूप से अवैध भी है. कम से कम यह कहा जा सकता है कि यह सभी नियमों की घोर अवहेलना करते हुए भाई-भतीजावाद और पक्षपात का एक स्पष्ट और स्पष्ट मामला है. इसलिए, गैर-सरकारी सदस्यों के नियुक्ति आदेश को रद्द करने के सेवा विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी दी जाती है.

इसमें आगे ये भी कहा गया है कि इसके अतिरिक्त, अंतरिम उपाय के रूप में डीडीसीडी को भंग करने की संभावना तलाशने के संबंध में सेवा विभाग का प्रस्ताव भी स्वीकृत किया जाता है.

पत्र में उपराज्यपाल सक्सेना ने 29 अप्रैल, 2016 की अधिसूचना का हवाला देते हुए कहा है कि गैर-सरकारी सदस्यों की नियुक्ति मुख्यमंत्री द्वारा भारत सरकार के सचिव के समकक्ष रैंक, वेतन और सुविधाओं पर की जाती है या जैसा कि मुख्यमंत्री द्वारा निर्धारित किया जा सकता है. हालांकि, सभी सदस्यों को भारत सरकार के सचिव के बराबर रैंक और वेतन का भुगतान किया गया, जबकि उनके वेतन का निर्धारण मुख्यमंत्री द्वारा किए जाने का कोई विकल्प नहीं था.

उपराज्यपाल ने वित्त विभाग से डीडीसीडी के गैर-आधिकारिक सदस्यों को दिए गए वेतन की वसूली की संभावना तलाशने को भी कहा है.

मालूम हो कि साल 2022 में डीडीसीडी के उपाध्यक्ष जैस्मीन शाह को उनके कर्तव्यों का निर्वहन करने से प्रतिबंधित कर उनके कार्यालय को सील कर दिया गया था, एलजी द्वारा जारी आदेश के बाद उन्हें मिलने वाली सुविधाएं भी वापस ले ली गई थीं.

‘उपराज्यपाल का फैसला अवैध, असंवैधानिक और उनके कार्यालय के अधिकार क्षेत्र का खुला उल्लंघन’

इस मामले पर एक बयान जारी कर आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने कहा है कि डीडीसीडी को भंग करने और इसके तीन गैर-आधिकारिक सदस्यों को हटाने का उपराज्यपाल का फैसला ‘अवैध, असंवैधानिक और उनके कार्यालय के अधिकार क्षेत्र का खुला उल्लंघन’ है.

बयान में कहा गया है कि डीडीसीडी मुख्यमंत्री के अधीन आता है और केवल उनके पास ही इसके सदस्यों पर कार्रवाई करने का अधिकार है.

पार्टी ने आरोप लगाया गया है कि डीडीसीडी को भंग करने का उपराज्यपाल का एकमात्र उद्देश्य दिल्ली सरकार के सभी कामों को रोकना है, जो कि उनके पदभार ग्रहण करने के बाद से दिल्ली के शासन में उनका एकमात्र योगदान रहा है.

आप ने कहा, ‘हम एलजी के इस अवैध आदेश को अदालतों में चुनौती देंगे. डीडीसीडी का गठन 29.04.2016 के राजपत्र अधिसूचना द्वारा किया गया था, जिसे दिल्ली के तत्कालीन एलजी ने मंजूरी दी थी. अधिसूचना की धारा 3 और 8 को पढ़ने से स्पष्ट है कि डीडीसीडी के गैर-आधिकारिक सदस्यों की नियुक्ति पूरी तरह से मुख्यमंत्री के निर्णय से होती है और केवल उनके पास ही किसी भी सदस्य को उनके कार्यकाल पूरा होने से पहले हटाने का अधिकार है.’

बयान में आगे कहा गया है, ‘हालांकि, मौजूदा नियमों और कानूनों के साथ-साथ अपने पूर्ववर्तियों के फैसलों की खुलेआम अवहेलना करते हुए एलजी विनय सक्सेना ने सेवा विभाग के अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके अपने कार्यालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर डीडीसीडी पर कार्रवाई करके दिल्ली के निर्वाचित मुख्यमंत्री की शक्तियों को हड़पने की कोशिश की है. यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि डीडीसीडी के उपाध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया भारत भर में सभी राज्य सरकारों, जिसमें भाजपा सरकारें भी शामिल हैं, में सार्वजनिक आयोगों के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के समान है.’

बयान में ये भी कहा गया है कि डीडीसीडी ने सरकार की कई प्रमुख नीतियों और कल्याणकारी योजनाओं को आकार देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जैसे कि दिल्ली  इलेक्ट्रिक ह्वीकल नीति 2020, दिल्ली सौर नीति 2016 और रोजगार बाजार पहल 2024.